रंजना जायसवाल ::






















प्रेम – तत्व::

१.
कच्ची मिटटी था
गढ़ा पकाया
समर्पण और विश्वास की आंच पर
रिश्ता
पका हुआ 

सौंप दिया तुम्हें अब कहते हो तुम कि
पकी फसल की तरह होता है
पका रिश्ता


घड़ा
कच्चा था
उतरी थी
जिसके सहारे
दरिया में
डूबना
ही
था


एक आकाश था
एक नदी थी
मिलना मुश्किल था
हालाँकि
पूरा का पूरा आकाश नदी में था


खो गये हम
भूल -भुलैया में
मैं ढूँढती रही तुम्हें
कि शायद
ढूँढ़ रहे होगे तुम भी
कोई रास्ता
मुझ तक पहुँचने का


कैसे इतना
उलट -पलट जाता है सब कुछ
प्रेम में
प्रेम करके जाना
कि प्रेम एक क्रांति है
एक आश्चर्य
विलीन हो जाता है अहंकार
एक पवित्र औदात्य में
शब्द अपने अर्थों का केंचुल उतर
धारण कर लेते हैं नये
अनछुए अर्थ
खुद हम हो उठते हैं इतने नए कि
मुश्किल हो जाये पहचान
अपनी ही
कैसे तमाम बड़ी -बड़ी बातें भी
बेमानी लगने लगती हैं
रूमानी बातों के आगे
यह जान सकता है
कोई
प्रेम करके ही



सपने और प्रेम::
१.
किसी ने कहा
सपनों का मर जाना खतरनाक है
तुमने कहा - प्रेम करना
मैं करती रही प्रेम
बिना जाने तुम्हारा मन
मैंने कोशिश की जितनी
पास आने की
उतने ही दूर हुए तुम
तुमने बढ़ाई दूरी जितनी
करीब हुई मैं
तुम जग रहे थे
इसलिए नहीं देख सके सपना
मैं सपने में थी
जग न सकी
दोनों ने नहीं जाना वह
जो जानना कभी खतरनाक नहीं होता

२.
मैंने कल
चाँद को देखा
और रात -भर
याद करती रही
एक
चेहरा

३.
मेरा मन
स्वच्छ ताल
उभरती है जिसमें
तुम्हारी परछाईं

४.
अपनेपन की छुअन
चाहता है मन
आजीवन

५.
रात भर महकती है रातरानी
झरते हैं हरसिंगार
पलते हैं दाने छीमियों में
सीपी के मन में उमड़ता है सागर
होता है जन्म
एक नये दिन का

६.

हजारों के बीच
अपने -आप को तलाशते जाना
कितना अजीब है
अजीब है कितना
पा लेने पर सोचना कि
जिसकी तलाश थी
वह मैं नहीं तुम थे
तुम





10 टिप्‍पणियां:

  1. एक आकाश था
    एक नदी थी
    मिलना मुश्किल था
    हालाँकि
    पूरा का पूरा आकाश नदी में था ...
    pranvan rachna. ..

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  2. घड़ा
    कच्चा था
    उतरी थी
    जिसके सहारे
    दरिया में
    डूबना
    ही
    था ............. बहुत संकेतात्मक पंक्ति . सभी कविताएं गहरे सूर में डूबी हुई .... रंजना जी बधाई

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  3. रंजना जी हिंदी की महत्वपूर्ण कवयित्री हैं. अपनी नारीवादी रुझान के लिए पर्याप्त ख्यात हैं. इधर इनकी कविताओं में प्रेम और प्रकृति की वापसी हुई है.
    ये कविताएँ ओंस की बूंदों की तरह तरल और भारहीन हैं.
    इस सुंदर पोस्ट के लिए अपर्णा को बधाई.
    रंजना जी की कुछ कविताएँ यहाँ भी देखी जा सकती हैं.
    http://samalochan.blogspot.com/2011/06/blog-post_23.html

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  4. कैसे इतना
    उलट -पलट जाता है सब कुछ
    प्रेम में
    प्रेम करके जाना
    कि प्रेम एक क्रांति है
    एक आश्चर्य
    विलीन हो जाता है अहंकार
    एक पवित्र औदात्य में
    शब्द अपने अर्थों का केंचुल उतर
    धारण कर लेते हैं नये
    अनछुए अर्थ
    खुद हम हो उठते हैं इतने नए कि
    मुश्किल हो जाये पहचान
    अपनी ही
    कैसे तमाम बड़ी -बड़ी बातें भी
    बेमानी लगने लगती हैं
    रूमानी बातों के आगे
    यह जान सकता है
    कोई
    प्रेम करके ही

    बेह्तरीन प्रस्तुतिकरण्।

    जवाब देंहटाएं
  5. चुनिन्दा मोती सी हर एक कविता ..बहुत बधाई ..इस नए पन्ने के लिए .. रंजना जी की कविताओं से सजा ..

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  6. तुमने बढ़ाई दूरी जितनी
    करीब हुई मैं
    तुम जग रहे थे
    इसलिए नहीं देख सके सपना
    मैं सपने में थी
    जग न सकी
    दोनों ने नहीं जाना वह
    जो जानना कभी खतरनाक नहीं होता
    ****
    हृदय की अतल गहराइयों में डूबी संवेदित करनेवाली अनुभूतियों वाली कविताएं

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  7. रंजना जी की प्रेम-कविताओं में प्रेम की व्यंजना में जितनी सघनता है, उतना ही खुलापन भी. यहाँ प्रेम की रंजना की गयी है, अतिरंजना नहीं. पहले कभी लिख चुका हूँ की रंजना जी को पढ़ना, बहुत कुछ देखने जैसा है, आज फिर उसी बात को दुहराता हूँ.

    रंजना जी को बधाई और अपर्णा जी को भी.

    जवाब देंहटाएं
  8. रंजना जी की प्रेम-कविताओं में प्रेम की व्यंजना में जितनी सघनता है, उतना ही खुलापन भी. यहाँ प्रेम की रंजना की गयी है, अतिरंजना नहीं. पहले कभी लिख चुका हूँ की रंजना जी को पढ़ना, बहुत कुछ देखने जैसा है, आज फिर उसी बात को दुहराता हूँ.

    रंजना जी को बधाई और अपर्णा जी को भी.

    जवाब देंहटाएं
  9. एक आकाश था
    एक नदी थी
    मिलना मुश्किल था
    हालाँकि
    पूरा का पूरा आकाश नदी में था

    आभार इतनी बढ़िया कविताएं पढवाने के लिये

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  10. दोनों ने नहीं जाना वह
    जो जानना कभी खतरनाक नहीं होता

    bahut sundar !

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