tag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post1022470965265194854..comments2023-10-01T07:46:51.599-07:00Comments on पथ के साथी : बाबुषा ::अपर्णा मनोजhttp://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-50465328454515306062015-01-15T04:42:21.784-08:002015-01-15T04:42:21.784-08:00इतनी अच्छी कविताओं के लिए बाबुषा को बधाई। अपर्णा द...इतनी अच्छी कविताओं के लिए बाबुषा को बधाई। अपर्णा दी आपका बहुत धन्यवाद।Sumita Ojhahttps://www.blogger.com/profile/10731326225887478383noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-11271088838557976832015-01-14T21:33:41.461-08:002015-01-14T21:33:41.461-08:00बयानगी की बेजोड़ कला है बाबुषा की कविताओं और उनकी क...बयानगी की बेजोड़ कला है बाबुषा की कविताओं और उनकी काव्य-भाषा में, तकलीफ को इतने भीतर उतर कर हूबहू उकेर देना कोई इस बेतकल्लुफ बयानगी से सीखे। " आख़िर शान्ति और सन्नाटे में कोई तो फ़र्क होता है" कितनी गहरी व्यंजनाएं छिपी हैं इन उक्तियों में - " सन्नाटे न तोड़े गए तो जम्हाई आती है कि बत्तीस साल बहुत से सवालों की उम्र होती है." या कि "वो इने- गिने ही रास्ते हैं, जिन पर सांसें सरपट दौडती हैं. मौत हज़ारों-हज़ार तरीक़े से अपनी ओर रिझाती है." जीओ बाबुषा।नंद भारद्वाजhttps://www.blogger.com/profile/10783315116275455775noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-88104203481967722582015-01-14T08:05:22.435-08:002015-01-14T08:05:22.435-08:00ज़माने की पीड़ा को छाती से लगाये वह प्रचंड आत्मविश्व...ज़माने की पीड़ा को छाती से लगाये वह प्रचंड आत्मविश्वास के सूर्य की तरह अंधियारे को ललकारती इस अंधकार-सागर में कूद पड़ी है ! ...बाबुषा को हार्दिक बधाई !अरुण अवधhttps://www.blogger.com/profile/15693359284485982502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-16407518483922581872015-01-14T08:03:16.817-08:002015-01-14T08:03:16.817-08:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.अरुण अवधhttps://www.blogger.com/profile/15693359284485982502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-24118564005600170302015-01-13T19:35:04.479-08:002015-01-13T19:35:04.479-08:00पहले जला
फिर सूरज बना
तुम सूरज बनकर जलना चाहते ह...पहले जला <br />फिर सूरज बना <br />तुम सूरज बनकर जलना चाहते हो <br />तुम्हारे विद्रोह का अंदाज़ निराला है <br />खोना कम और पाना ज्यादा चाहते हो |humhttps://www.blogger.com/profile/03071439145886409350noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-15819025597290773642014-01-28T04:53:18.143-08:002014-01-28T04:53:18.143-08:00दीदी,
आदर, प्यार. :-)दीदी, <br /><br />आदर, प्यार. :-)बाबुषाhttps://www.blogger.com/profile/05226082344574670411noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-33623006441691240692014-01-25T01:36:36.153-08:002014-01-25T01:36:36.153-08:00सशक्त और प्रभावशाली प्रस्तुती....
सशक्त और प्रभावशाली प्रस्तुती....<br />विभूति"https://www.blogger.com/profile/11649118618261078185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-55306876332690438172014-01-24T22:25:24.009-08:002014-01-24T22:25:24.009-08:00बहुत सुंदर कविताएँ। बधाई बाबूषा जी कोबहुत सुंदर कविताएँ। बधाई बाबूषा जी को‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-67412730447153012522014-01-24T07:17:50.965-08:002014-01-24T07:17:50.965-08:00मंज़िल न दे , चराग़ न दे , हौसला तो दे ...... :)मंज़िल न दे , चराग़ न दे , हौसला तो दे ...... :)Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/14690927064104317592noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-27608555277535934952014-01-24T07:11:41.344-08:002014-01-24T07:11:41.344-08:00aatmiya aur aatma ko bedhati hui kavitayen.aatmiya aur aatma ko bedhati hui kavitayen.Kalawanti Singhhttps://www.blogger.com/profile/11965638321560234721noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-21661362396641680412014-01-24T06:00:21.850-08:002014-01-24T06:00:21.850-08:00# बाहर
_aharnishsagar# बाहर <br /><br />_aharnishsagarAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-42981116771854058852014-01-24T05:59:16.701-08:002014-01-24T05:59:16.701-08:00विस्मय, आवेश और प्रेम से लबरेज कविताएं बार-बार भरी...विस्मय, आवेश और प्रेम से लबरेज कविताएं बार-बार भरी बाल्टी कि तरह कुए से बहार आता हूँ और खाली होकर फिर तलहटी में गिरता हूँ। <br /><br />_AharnishsagarAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-74242548939611270642014-01-24T01:35:15.685-08:002014-01-24T01:35:15.685-08:00आख़िर शान्ति और सन्नाटे में कोई तो फ़र्क होता है... ...आख़िर शान्ति और सन्नाटे में कोई तो फ़र्क होता है... यह कविताएँ इस फर्क की तमीज सिखाती हैं... सुंदर कविताएँ... बधाई.Manojhttps://www.blogger.com/profile/14754629355835097765noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-33092972963056263762014-01-24T00:01:01.055-08:002014-01-24T00:01:01.055-08:00ये कविताऍं बहुत उम्दा है.ये कविताऍं बहुत उम्दा है.संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-61320334609748531882014-01-23T21:48:47.953-08:002014-01-23T21:48:47.953-08:00बहुत उम्दा !बहुत उम्दा !सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-9456365263618676142014-01-23T21:29:57.906-08:002014-01-23T21:29:57.906-08:00बाबु इसे पढ़कर मन अवसाद से भर गया. दुःख की अति ऐसे ...बाबु इसे पढ़कर मन अवसाद से भर गया. दुःख की अति ऐसे आत्महंता कदम उठाने के लिए बाध्य कर देती है. बहुत से जान -पहचान के लोगों को असमय जाते देखा है. मन की गुत्थियाँ सुलझाना बहुत कठिन है. जो जितना संवेदनशील होता है जीना उसके लिए उतना ही कठिन होता है. तुमने मौत को कविता बना दिया है जिसमें टूटती सांसों का छंद है.sarita sharmahttps://www.blogger.com/profile/03668592277450161035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-51351751182218485472014-01-23T21:20:55.711-08:002014-01-23T21:20:55.711-08:00किसी को इतने रतजगे न दो कि वो पक्की नींद का पता ढू...किसी को इतने रतजगे न दो कि वो पक्की नींद का पता ढूंढें...सवालों से मात खाने, दिन उगने की राह तकने के बजाय स्वयं सूर्य बन कर जल उठने का साहस देती कविताएँ..परमेश्वर फुंकवालhttps://www.blogger.com/profile/18058899414187559582noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-10098965170423381432014-01-23T18:58:09.881-08:002014-01-23T18:58:09.881-08:00अपने समकालीन युवाओं से बहुत अलग हैं ये कविताऍं। बध...अपने समकालीन युवाओं से बहुत अलग हैं ये कविताऍं। बधाई बाबूशा ।ओम निश्चलhttps://www.blogger.com/profile/12809246384286227108noreply@blogger.com