tag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post5257283097889587965..comments2023-10-01T07:46:51.599-07:00Comments on पथ के साथी : बाबुषा ::अपर्णा मनोजhttp://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comBlogger28125tag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-10350358881091233752013-05-30T04:13:18.552-07:002013-05-30T04:13:18.552-07:00बाबू गजब की कवितायेँ हैं.प्रेम को अपना वजूद होने क...बाबू गजब की कवितायेँ हैं.प्रेम को अपना वजूद होने का कारण बना लिया है.इसे फ्रेंच में 'रेजों ड'एत्र' कहते हैं.प्रेम जादू,पाप, पुण्य,बंधन और मुक्ति सब कुछ है.आंसुओं से भरी राह पीडाओं की नाव में सफ़र कराती रहती है.किसी के आने की आहट मन के द्वार पर आ रही है .सपनों से बुनी गयी इन मार्मिक प्रेम कविताओं में संवेदना कोमलता से अभियक्त की गयी है.बाबु का स्वर और अंदाज औरों से बिलकुल भिन्न और मौलिक है.sarita sharmahttps://www.blogger.com/profile/03668592277450161035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-15640144664659844092013-05-15T01:49:23.284-07:002013-05-15T01:49:23.284-07:00behut bejod rachnaaye ...saari kavitaaen umda ...behut bejod rachnaaye ...saari kavitaaen umda <br />पिरुल...( संदीप रावत )https://www.blogger.com/profile/15610770498413867572noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-82830055133515890422011-12-07T01:02:49.715-08:002011-12-07T01:02:49.715-08:00अवचेतन से निकली और कल कल बहती मुक्ति और बंधन की अद...अवचेतन से निकली और कल कल बहती मुक्ति और बंधन की अद्भुत कवितायेँ.' स्वप्न हूँ भ्रम हूँ मरीचिका मैं सत्य हूँ सागर हूँ मैं अमृत'...<br /> बाबु की कवितायेँ रहस्य ,मृत्यु और प्रेम के आसपास घूमती हैं खुद के होने की घोषणा करके खुद को ख़ारिज कर देने के भाव के साथ. इन्हें पढ़कर अजीब सी बेचैनी महसूस होती है जो कहीं न कहीं औरतों की भीतरी दुनिया की आवाज है.sarita sharmahttps://www.blogger.com/profile/03668592277450161035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-14238369471933791672011-12-07T01:01:19.214-08:002011-12-07T01:01:19.214-08:00अवचेतन से निकली और कल कल बहती मुक्ति और बंधन की अद...अवचेतन से निकली और कल कल बहती मुक्ति और बंधन की अद्भुत कवितायेँ.' स्वप्न हूँ भ्रम हूँ मरीचिका मैं सत्य हूँ सागर हूँ मैं अमृत'...<br /> बाबु की कवितायेँ रहस्य ,मृत्यु और प्रेम के आसपास घूमती हैं खुद के होने की घोषणा करके खुद को ख़ारिज कर देने के भाव के साथ. इन्हें पढ़कर अजीब सी बेचैनी महसूस होती है जो कहीं न कहीं औरतों की भीतरी दुनिया की आवाज है.sarita sharmahttps://www.blogger.com/profile/03668592277450161035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-86518154585248000302011-12-05T23:46:06.403-08:002011-12-05T23:46:06.403-08:00baat jab dil se nikalti hai to dil tak pahu_nchati...baat jab dil se nikalti hai to dil tak pahu_nchati hai.........bahut hi sundar kaviaye_n.amitabh sharmahttps://www.blogger.com/profile/14187211303771462411noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-39860276752162425272011-11-23T14:38:36.076-08:002011-11-23T14:38:36.076-08:00बहुत ही सुन्दर कवितायेंबहुत ही सुन्दर कवितायेंजयकृष्ण राय तुषारhttps://www.blogger.com/profile/09427474313259230433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-12094209263919891452011-11-12T11:30:13.955-08:002011-11-12T11:30:13.955-08:00बहुत पसंद आई... ख़ास कर यह...
मत ढूंढो मुझे शब्दो...बहुत पसंद आई... ख़ास कर यह...<br /><br />मत ढूंढो मुझे शब्दों में <br />मैं मात्राओं में पूरी नहीं <br />व्याकरण के लिए चुनौती हूँ<br />न खोजो मुझे रागों में <br />शास्त्रीय से दूर आवारा स्वर हूँ<br />एक तिलिस्मी धुन हूँ<br />मेरे पैरों की थाप<br />महज कदमताल नहीं<br />एक आदिम जिप्सी नृत्य हूँ<br />अपने पैने नाखूनों को कुतर डालो<br />मेरी तलाश में मुझे मत नोचो<br />एक नदी जो सो रही है भीतर कहीं<br />उसे छूने की चाह में मुझे मत खोदो<br />मत चीरो फाड़ो <br />कि मेरी नाभि से ही उगते हैं रहस्य<br />इस सुगंध को पीना ही मुझे पीना है<br />मुझे पा लेना मुट्ठी भर मिट्टी पाने के बराबर है <br />मुझमें खोना ही अनंत आकाश को समेट लेना है<br />स्वप्न हूँ भ्रम हूँ मरीचिका मैं<br />सत्य हूँ सागर हूँ मैं अमृत ..TRIPURARIhttps://www.blogger.com/profile/10949468977733466263noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-85317954260659533832011-11-11T02:45:23.870-08:002011-11-11T02:45:23.870-08:00मेरी तलाश में मुझे मत नोचोमेरी तलाश में मुझे मत नोचोअजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-48986489050130729412011-11-03T21:17:25.674-07:002011-11-03T21:17:25.674-07:00बाबुषाजी ,,,आपके द्वारा लिखा हर लफ्ज़ इक जादू है,ज...बाबुषाजी ,,,आपके द्वारा लिखा हर लफ्ज़ इक जादू है,जिसे जितना पढों हर बार इक नयी परीभाषा देता है .बहुत सुन्दर लिखती है आप ,इस पागलपन को कभी कम मत होने देना .<br /> --अंजली कुलश्रेष्ठAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-13715819689922400012011-11-02T12:04:28.718-07:002011-11-02T12:04:28.718-07:00यहाँ तो फूलों का और कांटो का साथ है... बहुत सुंदर ...यहाँ तो फूलों का और कांटो का साथ है... बहुत सुंदर कवितायें!!neerahttps://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-74286430252264650752011-10-30T07:45:56.859-07:002011-10-30T07:45:56.859-07:00बाबुशा, सिर्फ बाबुशा कहीं कुछ दिखा इन कविताओं की भ...बाबुशा, सिर्फ बाबुशा कहीं कुछ दिखा इन कविताओं की भावनापूर्ण अविरल धारा में तो सिर्फ ....बाबुशा! एक सुखद एहसास इन कविताओं के साथ! वाकई आपका साथ साथ फूलों का! वाह!!Vipulhttps://www.blogger.com/profile/11560013974090733493noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-22551731339261533322011-10-30T06:29:36.015-07:002011-10-30T06:29:36.015-07:00मत ढूंढो मुझे शब्दों में
मैं मात्राओं में पूरी नह...मत ढूंढो मुझे शब्दों में <br />मैं मात्राओं में पूरी नहीं <br />व्याकरण के लिए चुनौती हूँ...वाह! बहुत ही सार्थक अभिवयक्ति....विभूति"https://www.blogger.com/profile/11649118618261078185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-29700404741520581102011-10-30T03:54:57.223-07:002011-10-30T03:54:57.223-07:00दिवाली के दूसरे दिन अपनी फेसबुकिया दीवार पर एक सुन...दिवाली के दूसरे दिन अपनी फेसबुकिया दीवार पर एक सुन्दर सरप्राइज़ देखा ! अपर्णा दीदी ने एक लिंक टंगा रखा था ..<br />मैंने उन्हें तुरंत लिखा कि एक सनकी और पागल की आधी रात की लिखाई को आप कविता कहती हैं दीदी ?<br /> जवाब में उन्होंने मुझे अपने प्रेम और आशीर्वाद से भिगो दिया.<br />मेरे ख़याल से आप लोगों को मेरा लिखा हुआ ठीक ठाक लग रहा है तो निश्चित ही ये आपकी ही कवितायें हैं ..बस मेरे माध्यम से बाहर आ गयीं .<br />सभी को आभार.बाबुषाhttps://www.blogger.com/profile/05226082344574670411noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-74391348815269580232011-10-30T01:28:57.334-07:002011-10-30T01:28:57.334-07:00"मैं अंधेरे कोने की ढिबरी नहीं
वह दिया हूं न..."मैं अंधेरे कोने की ढिबरी नहीं <br />वह दिया हूं नन्हा-सा<br />जिससे रोशनी पाने रोज़ उग आता है सूरज...."<br /><br />आत्मविश्वास से भरपूर हैं बाबुषा की कविताएं.... उन्हें बधाई!प्रशान्तhttps://www.blogger.com/profile/11950106821949780732noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-14906045750318684912011-10-29T07:36:05.223-07:002011-10-29T07:36:05.223-07:00मैं अंधेरे कोने की ढिबरी नहीं
वह दिया हूं नन्हा-...मैं अंधेरे कोने की ढिबरी नहीं <br />वह दिया हूं नन्हा-सा <br />जिससे रोशनी पाने रोज़ उग आता है सूरज..<br /><br />सुन्दर भावप्रवण कविताएँ...बधाईसुमन केशरीnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-38631116898706812142011-10-28T09:53:26.747-07:002011-10-28T09:53:26.747-07:00आओ कि ख़त्म हो जाता है समय यहां
आओ कि अनंत में को...आओ कि ख़त्म हो जाता है समय यहां<br />आओ कि अनंत में कोई दूरी नहीं होती<br />सुन्दर!अनुपमा पाठकhttps://www.blogger.com/profile/09963916203008376590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-48317668569663577602011-10-28T07:50:25.344-07:002011-10-28T07:50:25.344-07:00"हथेली में लगा दिया है मैंने काला टीका
तकिये ..."हथेली में लगा दिया है मैंने काला टीका<br />तकिये के नीचे ताबीज़ रख दिया है<br />तुम्हारी पीडाएं<br />तुम्हारा ज्वर<br />और तुम्हारे आंसू<br />मैं पानी में घोल कर पी जाउंगी<br />मेरे नीले पड़ चुके कंठ को<br />मत देखो<br />देखो मेरी मुस्कान<br />जो आंख की पुतली और दृष्टि के अनंत तक फैली हुई है"..........आह कहूँ या वाह ???सुशीला पुरीhttps://www.blogger.com/profile/18122925656609079793noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-48553207306799677992011-10-28T07:06:00.805-07:002011-10-28T07:06:00.805-07:00उत्सव है यह
उड़ने का जुड़ने का खोने का होने का
आ...उत्सव है यह<br />उड़ने का जुड़ने का खोने का होने का<br /><br /><br />आओ कि ख़त्म हो जाता है समय यहां <br />आओ कि अनंत में कोई दूरी नहीं होती<br />आओ कि आ जाने की चाह से बड़ा बल क्या <br />आओ कि आने से ही छिलेगा तुम्हारी आत्मा का आवरण.................बाबुषा के पास भाषा का नया तेवर भी है और मौलिकता भी ....... कवितायेँ पढ़कर अच्छा लगा...pradeep sainihttps://www.blogger.com/profile/01713398453259407318noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-91496219437794617642011-10-28T04:41:30.013-07:002011-10-28T04:41:30.013-07:00बेहद गहन भावो का समावेश्।बेहद गहन भावो का समावेश्।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-48418334101701860712011-10-27T21:18:08.774-07:002011-10-27T21:18:08.774-07:00मत ढूंढो मुझे शब्दों में
मैं मात्राओं में पूरी नह...मत ढूंढो मुझे शब्दों में <br />मैं मात्राओं में पूरी नहीं <br />व्याकरण के लिए चुनौती हूँ<br />न खोजो मुझे रागों में <br />शास्त्रीय से दूर आवारा स्वर हूँ<br />एक तिलिस्मी धुन हूँ.........बाबू की हर कविता में रची बसी होती है बाबू की गंध, उसे सूंघते, महसूस करते हुए एक और परत हट जाती है, हर बार एक नया एहसास ऑंखें बंद कर खुद को एक पंख से सहलाने जैसा अहसास, अहसास हवा में उड़ने का, अहसास जाड़ें में आंच तपने जैसा.......अंजू शर्माhttps://www.blogger.com/profile/13237713802967242414noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-55896727758387500972011-10-27T20:49:14.341-07:002011-10-27T20:49:14.341-07:00बाबुषा कवितायें लिखती नही कविताये बुनती है|उन्हें ...बाबुषा कवितायें लिखती नही कविताये बुनती है|उन्हें इस बात का पता होता है कि उनके शब्द कितनी गरमाहट देगें,कितना पानी ,कितनी रोशनी, कितना धुंआ, कितनी राख,कितनी धूप और कितनी धूल होगी |यकीन मानिए उन्हे पढ़ते हुए यूँ लगता है जैसे किसी तिलिस्म से होकर गुजर रहे हैं |इस बात पर यकीन करना मेरे लिए कठिन होता है कि कोई इंसानी अंगुलियाँ ये सब लिख रही है मानो कोई है जो सिर्फ कवितायें बुनने के लिए ही इस धरती पर आता है और फिर ओझल हो जाता है |Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16315054585574087560noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-61151486551784993542011-10-27T15:50:27.642-07:002011-10-27T15:50:27.642-07:00भावों की उमडती नदी का नाम है बाबुषा.प्यार तिलिस्म ...भावों की उमडती नदी का नाम है बाबुषा.प्यार तिलिस्म और उन्माद से भरी सुन्दर कवितायेँ जहाँ चाँद संतूर बजाता है और समुद्र घर और मन में बहता हैं प्रेम बनकर. स्वप्न हूँ भ्रम हूँ मरीचिका मैं<br />सत्य हूँ सागर हूँ मैं अमृत.यही नहीं और भी बहुत कुछ हो.बहुत बड़ा रहस्य जिसे जानने के लिए यह उम्र कम पड जाए<br />.sarita sharmahttps://www.blogger.com/profile/03668592277450161035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-78277741484156070142011-10-27T10:33:53.713-07:002011-10-27T10:33:53.713-07:00बाबुषा की तुलना बाबुषा से ही संभव है. विचार, अनुभव...बाबुषा की तुलना बाबुषा से ही संभव है. विचार, अनुभव, भाषा कैसे गुंथ जाते हैं आपस में ! और पाठक को अपनी गिरफ़्त में ले ही नहीं लेते, बल्कि जकड़े रहते हैं.मोहन श्रोत्रियhttps://www.blogger.com/profile/00203345198198263567noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-82775766051989603022011-10-27T09:40:40.433-07:002011-10-27T09:40:40.433-07:00मेरी तलाश में मुझे मत नोचो
एक नदी जो सो रही है भीत...मेरी तलाश में मुझे मत नोचो<br />एक नदी जो सो रही है भीतर कहीं<br />उसे छूने की चाह में मुझे मत खोदो<br />मत चीरो फाड़ो <br />कि मेरी नाभि से ही उगते हैं रहस्य<br />इस सुगंध को पीना ही मुझे पीना है... कविताओं में आवेग है.. जो साथ बहा ले जाता है.. इसीलिए पसंद है मुझे बाबुषा..leena malhotra raohttp://वww.facebook.com/leena.m.r.noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-43702500329041870842011-10-27T09:23:51.051-07:002011-10-27T09:23:51.051-07:00Dil se nikle huye anokhe jazbaat...Dil se nikle huye anokhe jazbaat...Anonymousnoreply@blogger.com