tag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post5398213809969684395..comments2023-10-01T07:46:51.599-07:00Comments on पथ के साथी : मनीषा कुलश्रेष्ठ::अपर्णा मनोजhttp://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-89370923768144254952013-01-10T10:10:05.130-08:002013-01-10T10:10:05.130-08:00इस आह मेँ भी,
एक राह निकलती है
जिसके मँजिल का पता
...इस आह मेँ भी,<br />एक राह निकलती है<br />जिसके मँजिल का पता<br />मुझे नहीँ पर,<br />तुम्हे है।<br />कितनी अनँत यात्रा है?<br />न कोई उद्देश्य न कोई<br />विधेय,<br />बस भटकना है<br />हर पल मुझे<br />किसी अज्ञात दिशा मेँअभिषेक शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/06009944798501737095noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-5901766753156256212012-07-22T19:54:37.144-07:002012-07-22T19:54:37.144-07:00एक ऊंचे आलाप पर
जाकर टूट गयी तान - सा .. छप गई ये...एक ऊंचे आलाप पर <br />जाकर टूट गयी तान - सा .. छप गई ये पंक्तियाँ दिलो दिमाग पर..लीना मल्होत्रा रावnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-66458756124738019972012-07-21T11:11:59.103-07:002012-07-21T11:11:59.103-07:00"जो लोग खण्डहर - खण्डहर इतिहास की
छाँव पल रहे..."जो लोग खण्डहर - खण्डहर इतिहास की<br />छाँव पल रहे होते हैं,<br />अजब रुमानियत उनमें रिस आती है..." बहुत गहरी बात आसान शब्दों में की है.<br />बादल छंटने के बाद आसमान ज्यादा नीला ओर चमकीला लगता है, बादल छटने के बाद धरती वसन उतार कर अपने सुंदरतम रूप में आकाश को निहारते हुए कहती है आकाश 'तुम इतने चुप चुप क्यों रहते हो'.बादल फिर घिर आते हैं. बादलों की खिडकी से खंडित आकाश बस मुस्कुरा देता है.<br />कुछ ऐसी ही अजब रुमानियत होती है खंडहर के पत्थरों में जो रिस रिस कर या तो निर्झर सी बहती है या आँखों की कोरों में चमकती है. सुंदर रचना के लिए बधाइयाँ ..Dr. M.l. Guptahttp://batiyate.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-46372118230948858922012-07-19T19:47:19.252-07:002012-07-19T19:47:19.252-07:00अर्थपूर्ण कवितायेँ....दिल को छूती हुयी....भीड़ में...अर्थपूर्ण कवितायेँ....दिल को छूती हुयी....भीड़ में मौजूद एकांत को परिभाषित करती ये कवितायेँ उस मुहावरे की तरह सामने आती हैं जिसमें रूमानियत के मायने वृहद् होते हैं.....मनीषा दी को और कवितायेँ लिखनी चाहिए.....बधाई......अंजू शर्माhttps://www.blogger.com/profile/13237713802967242414noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-61261066440080154832012-07-19T07:07:41.744-07:002012-07-19T07:07:41.744-07:00waqt lagega!waqt lagega!HemantSheshhttps://www.blogger.com/profile/14694725282954331603noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-82683139904483508472012-07-19T06:16:04.861-07:002012-07-19T06:16:04.861-07:00रुमानियत के अन्तरंग सपने इतिहास पलटने के ...रुमानि...रुमानियत के अन्तरंग सपने इतिहास पलटने के ...रुमानियत की उड़ान जींस के म्यूतेसन के साथ बखूबी जुडी ... रुमानियत की भाषा शब्दों से परे - हँसी हलकी जलन और विषय परिवर्तन ...बहुत खूब लगी.. तेंदुवे की आर्तनाद कराह को भी पकड़ लिया ... उम्दा मनीषा जी... अपर्णा दीदी धन्यवाद ..इन रचनाओं को साझा करने के लिए...आदर सहितडॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीतिhttps://www.blogger.com/profile/08478064367045773177noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-53754632060474355972012-07-19T05:51:46.446-07:002012-07-19T05:51:46.446-07:00badhiabadhiaVipin Choudharyhttps://www.blogger.com/profile/05090451479975418329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-76572393395989159322012-07-19T05:45:12.611-07:002012-07-19T05:45:12.611-07:00"वो धुँधलका /जिसमें ज़िन्दगी की रेत भी / पिघलत..."वो धुँधलका /जिसमें ज़िन्दगी की रेत भी / पिघलते सोने की नदी हो जाती है / उन्हें पता तक नहीं होता.../ कैसी अनंतता में / जीने का एक यकीन लिए / वो बड़े हो रहे हैं." अपनी रचनाशीलता के एकान्त में डूबकर रची गई बेहतरीन अभिव्यक्ति। बधाई।नंद भारद्वाजhttps://www.blogger.com/profile/10783315116275455775noreply@blogger.com