tag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post6419878389139773891..comments2023-10-01T07:46:51.599-07:00Comments on पथ के साथी : मनीषा कुलश्रेष्ठ ::अपर्णा मनोजhttp://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-68202894811916419762015-10-19T00:07:39.923-07:002015-10-19T00:07:39.923-07:00सभी कविताएं बहुत अच्छी है!सभी कविताएं बहुत अच्छी है!कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-86695523004910039812011-11-22T06:54:42.007-08:002011-11-22T06:54:42.007-08:00सभी कविताएं विशिष्ट भावलोक लिए हैं । "अपनी दे...सभी कविताएं विशिष्ट भावलोक लिए हैं । "अपनी देह में / अपनी आज़ादी की तरह ...अपने भीतर उगते वन-कमल की/ कसैली गंध में डूब जाना चाहती हूँ / अब मैं गूँथकर सूर्य का अग्निपुष्प/ अलकों में ...मैं प्रेम में 'ना' कहना चाहती हू..." इतनी सुन्दर पंक्तियाँ ! अद्भुत !!ashwini kumar vishnuhttps://www.blogger.com/profile/09230520703715185203noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-84328676767712312512011-11-21T21:32:25.558-08:002011-11-21T21:32:25.558-08:00सभी कविताएं पढ़कर अच्छा लगा !मन करता है आपकी डायरी...सभी कविताएं पढ़कर अच्छा लगा !मन करता है आपकी डायरी चुरा लूँ !सीमांत सोहलhttps://www.blogger.com/profile/12198992892160243373noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-56908220642472241312011-08-28T22:33:58.549-07:002011-08-28T22:33:58.549-07:00अरुण देव, कविता संग्रह छपवाने के लिए उत्साह जगाने ...अरुण देव, कविता संग्रह छपवाने के लिए उत्साह जगाने का शुक्रिया. यही एक चीज़ है जिससे मैं झिझकती हूँ. हर कथाकार पहले कवि होता है, फिर कथाकार होकर कविता की तरफ लौटते झिझकता है, कविता का अनुशासन भूलने लगता है या लोग टोक - टोक कर भुलवा देते हैं. वैसे इस दोहरे संधान को साधना कठिन है. बहुत कम लोग इसे सफलता पूर्वक साधते हैं. कोई एक सिरा छूट जाता है. विनोद कुमार शुक्ल जी का कवितापाठ सुनकर प्रेरणा जगी थी. देखो.. समॆटती हूँ कुछ कविताएँ फिर छपवाऊँगी.manishahttps://www.blogger.com/profile/10156847111815663270noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-82857440488385491062011-08-18T04:55:40.728-07:002011-08-18T04:55:40.728-07:00किस तरह
मेरे शब्द उतर जाते हैं
तुममें
चुपचाप, गहरा...किस तरह<br />मेरे शब्द उतर जाते हैं<br />तुममें<br />चुपचाप, गहराई तक!<br />वाह ! <br />सच में गहराई तक उतर जाती हैं ये पंक्तियाँ.कृष्णधर शर्माhttps://www.blogger.com/profile/01562935399753407406noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-28635178165295929082011-08-15T02:03:11.782-07:002011-08-15T02:03:11.782-07:00मनीषा के पास निखरी भाषा और संवेदना का ताप है..
एक...मनीषा के पास निखरी भाषा और संवेदना का ताप है.. <br />एक स्त्री के खुद से उलझने और इस उलझन को इश्क के माध्यम से व्यक्त करने का हुनर इन कविताओं में दिखता है.. <br />अब कविता संग्रह आना ही चाहिए..<br />बधाई....अपर्णा को भी, कथाकार के अंदर से कवि को तलाशने के लिएarun dev https://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-32999983285572041952011-08-12T20:40:17.984-07:002011-08-12T20:40:17.984-07:00बहुत अच्छी प्रस्तुति है!
रक्षाबन्धन के पावन पर्व प...बहुत अच्छी प्रस्तुति है!<br />रक्षाबन्धन के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ!<br />स्वतन्त्रतादिवस की भी बधाई हो!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-81006536276958618712011-08-12T10:14:03.875-07:002011-08-12T10:14:03.875-07:00जब दुख उधेड़ रहा होता है
मेरा सुख.........लगा ......जब दुख उधेड़ रहा होता है<br /><br />मेरा सुख.........लगा ...तमाम कविताएं....जैसे....इसी के इर्द-गिर्द हों...बेहतरीन..राजेश चड्ढ़ाhttps://www.blogger.com/profile/13615403040017262901noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-398642622794993122011-08-12T09:45:54.232-07:002011-08-12T09:45:54.232-07:00मैं इन कविताओं को पढ़कर "अजीब मानसिकता" म...मैं इन कविताओं को पढ़कर "अजीब मानसिकता" में हूँ. "ध्वस्त हूँ" या आश्वस्त हूँ,कह नहीं सकता. कह सकता हूँ तो सिर्फ़ इतना कि मनीषा जी ने कुछ रोज़ पूर्व आज की हिंदी प्रेम कविताओं के रंग-रूप व कलेवर को लेकर एक नाराज़गी भरी शिकायत की थी. उनकी ये कवितायें, उनकी अपनी ही शिकायत को दूर करने का एक प्रयास जान पड़ती हैं. सभी कवितायें विशिष्ट हैं, परन्तु मुझे "सुर्ख-रु" सीरीज विशेष रूप से आकर्षित करती है खासतौर से नंबर १. <br /><br />बहुत सारी पंक्तियाँ याद रखने लायक हैं, यथा "वह मृत्यु तक दूसरों के बहाने खुद से प्रेम करते रहना चाहती है", "बौराता है बसंत में सारा वन/मैं जलते ग्रीष्म का केवड़ा होना चाहती हूँ/प्रेम में लिखते हैं सब प्रेम कविताएँ/मैं ‘चे गुएरा’ की ‘गुडबाय स्पीच’ पढ़ना चाहती हूँ", "अजीब मानसिकता में हूँ./ध्वस्त हूँ एक दीवार की तरह/जैसे कि/अब जो उठूंगी, बनूंगी/वही मैं होऊँगी/हाथ से निकल गया है मेरा मैं" आदि आदि.<br /><br />मनीषा जी के लेखन में उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल एक जादुई असर पैदा करता है परंतु ये भी सच है कि ये कविताएँ एक खास पाठक वर्ग की डिमांड करती हैं.Sayeed Ayubhttp://gmail.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-26017849412999203422011-08-12T07:50:12.078-07:002011-08-12T07:50:12.078-07:00आने और लौट जाने में फर्क होता है- अच्छी लगी कविताए...आने और लौट जाने में फर्क होता है- अच्छी लगी कविताएँ. बधाई मनीषा जी और अपर्णा दी आपका इनसे परिचय करवाने के लिए.prabhat ranjanhttps://www.blogger.com/profile/13501169629848103170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-89316992521689120482011-08-11T20:03:42.790-07:002011-08-11T20:03:42.790-07:00स्वयं में डूबकर अपने आत्म की तलाश करती हुई सघन क...स्वयं में डूबकर अपने आत्म की तलाश करती हुई सघन कविताएं। वाकई अपनी अभिव्यक्ति को अर्जित करना होता है। अच्छी कविताएं। बधाई।नंद भारद्वाजhttps://www.blogger.com/profile/10783315116275455775noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-35711191998593752642011-08-11T19:26:15.971-07:002011-08-11T19:26:15.971-07:00वह मृत्यु तक दूसरों के बहाने
खुद से प्रेम करते रह...वह मृत्यु तक दूसरों के बहाने<br /><br />खुद से प्रेम करते रहना चाहती है<br /><br /><br /><br />आने और लौट जाने के बीच<br /><br />कहीं जा गिरा एक टुकड़ा वज़ूद<br /><br />अब उठता नहीं बहुत भारी है<br /><br />तुम मेरे शब्द सहेजते हो<br /><br />जैसे बच्चे सहेजते हैं<br /><br />लाल वीरवधूटी अपनी डिबिया में<br /><br />मैं जानना चाहती हूँ<br /><br />वो तरकीब<br /><br />कि कई - कई दिन बाद<br /><br />उन शब्दों की स्पन्दित<br /><br />सुर्ख़ वीरवधूटियों को<br /><br />तुम जीवंत मेरे हाथ पर<br /><br />कैसे रख देते हो?<br /><br />निशब्द करती रचनाएँVandana Ramasinghhttps://www.blogger.com/profile/01400483506434772550noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-63522397871355777512011-08-11T18:22:48.619-07:002011-08-11T18:22:48.619-07:00pahali kavita itni khoobsurat hai ki agli kavitaon...pahali kavita itni khoobsurat hai ki agli kavitaon pr kednrit hi nahi hone de rahi hai. baawajood padh tou nhe bhi gaya par sach kahu sirf pahli ke prabhaw me unka padhna na padhna hi hua. ab baad me kabhi fir padhunga unhe. badhai rachnakar ko aur aabhar prostota ka.विजय गौड़https://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.com