tag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post7195514702944025721..comments2023-10-01T07:46:51.599-07:00Comments on पथ के साथी : प्रभात रंजन ::अपर्णा मनोजhttp://www.blogger.com/profile/03965010372891024462noreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-6912391165933491082015-09-27T05:26:04.919-07:002015-09-27T05:26:04.919-07:00अंतिम कविता अच्छी पंक्तियाँ।मन से सच जुडी हुई हैं ...अंतिम कविता अच्छी पंक्तियाँ।मन से सच जुडी हुई हैं कवितायेँ यह तो जरूर पता चलता है।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/07682322782282322595noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-50091498844632806682012-11-02T20:10:30.643-07:002012-11-02T20:10:30.643-07:00तुमने दूर से कहा था
मैंने उस दिन तुमको
सबसे पास जा...तुमने दूर से कहा था<br />मैंने उस दिन तुमको<br />सबसे पास जाना था<br />कितनी दूरी हो गई है<br />कि बरसों बरस चलने पर भी<br />पास नहीं आए<br />न तुम न प्यार<br />दूर होते गए<br />कि कभी प्यार के साथ<br /> <br />वापस आयेंगे... <br /><br />बेहतरीन ...देर से ही सही , एक बार पुनः बधाई स्वीकारें रामजी तिवारी https://www.blogger.com/profile/03037493398258910737noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-44533935153920283032012-11-02T17:26:38.447-07:002012-11-02T17:26:38.447-07:00सहज कविताएं, किंतु कहीं-कहीं तो असहज कर देने वाली।...सहज कविताएं, किंतु कहीं-कहीं तो असहज कर देने वाली। अत्यंत संवेदित कर देने वाली जीवंत रचनाएं.. कवि को बधाई और आपका आभार.. Shyam Bihari Shyamalhttps://www.blogger.com/profile/02856728907082939600noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-14969577999580615662011-11-06T06:43:35.323-08:002011-11-06T06:43:35.323-08:00’कवी’ प्रभात रंजन को पढ़ना एक अलग ही अनुभव दे रहा ह...’कवी’ प्रभात रंजन को पढ़ना एक अलग ही अनुभव दे रहा है मुझे....प्रेम की बारिश उनपर अनवरत होती रहे...<br />ढेरों बधाईयां...प्रशान्तhttps://www.blogger.com/profile/11950106821949780732noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-13307195879786390312011-11-05T09:00:57.473-07:002011-11-05T09:00:57.473-07:00इस भागती-दौड़ती दुनिया में
क्या कोई आकर मन में ठहर ...इस भागती-दौड़ती दुनिया में<br />क्या कोई आकर मन में ठहर गया है<br /><br />न न किसी से न कहना<br />आजकल किसका भरोसा बचा है<br /><br />फिर ये किसका भरोसा बढ़ता जा रहा है<br />कितना भी टूट जाए समय का भरोसा<br /><br />भरोसा फिर भी बढ़ता जा रहा है bahut sundarकल्पना पंतhttps://www.blogger.com/profile/03378819247407268207noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-3709485418509565752011-11-03T23:15:24.889-07:002011-11-03T23:15:24.889-07:00....अपने आप से भी...बेहतर तरीके से बातें की जा सकत.......अपने आप से भी...बेहतर तरीके से बातें की जा सकती हैं...कहा जा सकता है ख़ुद को .... किसी और को कहते हुए ... समझा जा सकता है सब कुछ .... बिना समझाए... सच है ... कहा कैसे जा सकता है..!राजेश चड्ढ़ाhttps://www.blogger.com/profile/13615403040017262901noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-37189576087883950732011-11-03T23:12:29.714-07:002011-11-03T23:12:29.714-07:00वाह... वाह..
"प्यार ही प्यार बस हर सिम्त नज़...वाह... वाह.. <br />"प्यार ही प्यार बस हर सिम्त नज़र आता है"गीता पंडितhttps://www.blogger.com/profile/17911453195392486063noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-79304559485373469132011-08-28T03:49:41.567-07:002011-08-28T03:49:41.567-07:00मैंने दूर घर की तरफमैंने दूर घर की तरफMosaic Tileshttp://tilelocator.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-18300132530480590292011-07-28T13:32:57.223-07:002011-07-28T13:32:57.223-07:00प्रेम को सहज उष्णता के साथ सरल मगर छू जाने वाले शब...प्रेम को सहज उष्णता के साथ सरल मगर छू जाने वाले शब्दों, अभिव्यक्तियों में बयां करती ये कविताएँ दिल में सीधे उतर गयीं, आशा है कि प्रभात भाई की कहानियों के साथ-साथ सुंदर कविताएँ भी पढ़ने को मिलती रहेंगी.KESHVENDRA IAShttps://www.blogger.com/profile/08624176577796237545noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-8739155153661986542011-06-27T07:45:38.476-07:002011-06-27T07:45:38.476-07:00प्रिय महोदय अपने बहुत अच्छा लिखा है.
भगवान आपका भल...प्रिय महोदय अपने बहुत अच्छा लिखा है.<br />भगवान आपका भला करे हमेशा.<br />Frasat vajihAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-88829355269025827382011-06-27T03:50:40.587-07:002011-06-27T03:50:40.587-07:00अच्छी कविताएं हैं, प्रभात को हार्दिक शुभकामनाएं।अच्छी कविताएं हैं, प्रभात को हार्दिक शुभकामनाएं।सुमन केशरीnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-81329693280393431352011-06-26T10:16:02.498-07:002011-06-26T10:16:02.498-07:00मैंने कब चाहा था
बरसों पुरानी यादों की धुंध
के पी...मैंने कब चाहा था<br /><br />बरसों पुरानी यादों की धुंध<br />के पीछे से निकलकर<br />कोई सामने आ जाए<br /><br />करीब…<br /><br />करीब…<br />बहुत करीब...<br /><br />मुबारक़ और शुक्रिया भी... इतनी दिलकश कविताओं के लिएTRIPURARIhttps://www.blogger.com/profile/10949468977733466263noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-29460991949397037202011-06-26T09:56:24.478-07:002011-06-26T09:56:24.478-07:00तुमने मेरी ओर देखा
मैंने दूर घर की तरफ
+++
मन में ...तुमने मेरी ओर देखा<br />मैंने दूर घर की तरफ<br />+++<br />मन में कितना कुछ ठहरा था<br />मौन पसरा था...<br />प्यार में सिर्फ कहना नहीं<br /> <br />सुनना भी पड़ता है<br /><br />बहुत ही गहरी अनुभूति है भाई!नवनीत पाण्डेhttps://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-46482632488033855762011-06-26T09:31:14.571-07:002011-06-26T09:31:14.571-07:00प्रेम के स्वीकार और नकार के बीच ,किसी विलक्षण स्थि...प्रेम के स्वीकार और नकार के बीच ,किसी विलक्षण स्थिति को सूक्ष्मता से पहचानने का गंभीर प्रयास करती हैं ये रचनाएँ ! अद्भुत ! बधाई प्रभात जी !अरुण अवधhttps://www.blogger.com/profile/15693359284485982502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-53084407334690183212011-06-26T06:52:27.994-07:002011-06-26T06:52:27.994-07:00sir bahut he sundar kavita hai bahut he sundarsir bahut he sundar kavita hai bahut he sundarmukulhttps://www.blogger.com/profile/11633173149692552785noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-79249556132472216012011-06-26T06:12:38.358-07:002011-06-26T06:12:38.358-07:00अरुण जी से सहमत :)बधाई प्रभात रंजन जी .बहुत अच्छी ...अरुण जी से सहमत :)बधाई प्रभात रंजन जी .बहुत अच्छी कवितायेँवंदना शुक्लाhttps://www.blogger.com/profile/16964614850887573213noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-70924094684613875902011-06-26T05:24:02.729-07:002011-06-26T05:24:02.729-07:00प्रभात रंजन को एक कहानीकार के रूप में जानता था .. ...प्रभात रंजन को एक कहानीकार के रूप में जानता था .. ये कविताएँ विस्मित करती हैं. ऐसे लगता है हर रचनाकार मूल में कवि होता है.बधाई.arun devnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-52999678116015790632011-06-26T03:34:50.454-07:002011-06-26T03:34:50.454-07:00bahut hi sunder kriti
adbhut
aap bhi aaiye
Naazbahut hi sunder kriti<br />adbhut<br /><br />aap bhi aaiye<br /><br />NaazMridula Ujjwalhttps://www.blogger.com/profile/01352684031308418370noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-4863973395976433392011-06-26T02:16:20.336-07:002011-06-26T02:16:20.336-07:00"प्यार में सिर्फ कहना नहीं
सुनना भी पड़ता है&q..."प्यार में सिर्फ कहना नहीं<br />सुनना भी पड़ता है" जीवन की गति अपनी तेज रफ़्तार के साथ चलती जा रही है ....जीवन में कुछ पाने की चाह ,,कुछ अधिक पाने की चाह में, कुछ सामाजिक परिस्तिथियों के कारन और कुछ वेक्तिवादी आत्ममंथन के बीच हम अपनी कुछ खुशिया पीछे छोड़ आते है. "धुंधली पड़ती<br />स्याही दमकने क्यों लगी है<br />मैंने तो नहीं चाहा था...<br />अक्षर हैं कि तुम्हारी आँखें<br />गोल-गोल" ....और वही आगे हमारी स्मृतियों में आकर हमें जकझोर देती है,,, इसका बड़ा सूछ्म वर्णन इनकी कविताओ मिलता है ...अविनाश सिंहबिहार टॉकीज (BIhar Talkies)https://www.blogger.com/profile/14686650491664231946noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-58649049439875603112011-06-25T23:24:02.209-07:002011-06-25T23:24:02.209-07:00कि हवा तक चुपचाप थी
पत्तों की आवाज़ भी नहीं सुनाई ...कि हवा तक चुपचाप थी<br />पत्तों की आवाज़ भी नहीं सुनाई देती थी<br />मैं मौन था<br />कि कह रहा था प्यार....<br />vaah<br /><br />ki pyaar door rahne se badhta hai. ....<br />man ke bheetar utrti chali jaati hai ye maun samvednaayen..kavitaaye.लीना मल्होत्राhttps://www.blogger.com/profile/07272007913721801817noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-28358507679498025422011-06-25T23:16:53.760-07:002011-06-25T23:16:53.760-07:00"न न किसी से न कहना
आजकल किसका भरोसा बचा है
..."न न किसी से न कहना<br />आजकल किसका भरोसा बचा है<br /><br />फिर ये किसका भरोसा बढ़ता जा रहा है<br />कितना भी टूट जाए समय का भरोसा<br /><br />भरोसा फिर भी बढ़ता जा रहा है"<br />* <br />कामनिकालू समय की तेज बेरहम धार संबंधों को चाहे जितनी सफाई से काट दे, इंसान सम्बन्धहीन जीवन जी नहीं सकता. और ऐसी स्थिति को ये पंक्तियाँ खूब उजागर कर रही हैं.सत्यानन्द निरुपमhttps://www.blogger.com/profile/05694207260363095796noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-89463996291218792862011-06-25T22:25:04.071-07:002011-06-25T22:25:04.071-07:00पारस्परिकता का गहरा आत्मीय स्वर इन कविताओं की अ...पारस्परिकता का गहरा आत्मीय स्वर इन कविताओं की अपनी खूबी है, आत्मिक लगाव, आशाएं, उम्मीदें और विश्वास प्रभात की कविता के केन्द्रीय भाव हैं, अपने समय के बाह्य यथार्थ और मानवीय संबंधों पर पड़ने वाले असर के प्रति भी वे सचेत हैं, यही सजगता इन कविताओं को वृहत्तर सरोकारों से भी जोड़ती हैं। अच्छी कविताएं हैं, प्रभात को हार्दिक शुभकामनाएं।नंद भारद्वाजhttps://www.blogger.com/profile/10783315116275455775noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-14939418618781925242011-06-25T22:22:53.681-07:002011-06-25T22:22:53.681-07:00excellent! accentuating d vry abtruse subject so c...excellent! accentuating d vry abtruse subject so called love in a vry personal n natural mien............vry well written.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4502969014555076376.post-29854354304477135272011-06-25T22:00:47.323-07:002011-06-25T22:00:47.323-07:00वाह-वाह-वाह...इश्क सबको कवि बना देता है...चाहे कहा...वाह-वाह-वाह...इश्क सबको कवि बना देता है...चाहे कहानीकार हो या आलोचक! प्रभात भाई को ढेरों शुभकामनाएँ...लगता है अब आप वीरेंद्र जी को निराश करके ही मानेंगे :)Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.com