आहुति::
किया था कभी प्रेम भी
अब हररोज़ उस प्रेम का हवन कुंड बना कर
अपने अरमानों की आहुति अर्पित करती हूँ
यही बेहतर रस्म है
शायद
फिर से जीवन की दिशा में सकुशल लौट आने की.
पानी और प्यास::
मेरी प्रीत को पानी का नाम दे कर
वह चार-दीवारी के गहरे कुँए में
तब्दील हो गया.
उसके बाद कभी
फिर से मेरी प्यास ने
दरियाओं का रूख नहीं किया.
धरती आकाश::
जब तुम आकाश रच रहे थे उस वक़्त मैं व्यस्त थी
अपनी धरती की ऊष्मा बचाने के लिये
तुमने ढेर सारे मोती बिखेर दिए
और कहा, चुनो
तब पहली बार लगा था चुनना कितना कठिन होता है
तुमने हाथ जोड़कर कहा, मांगो
और मैंने कुछ न मांगते हुए भी
मांग लिया था पूरा जहान
एक बार कहा था तुमने
चीज़े छोटी नहीं
हमारी कामनाएँ बड़ी होती हैं
मैंने उसी वक़्त उस वाक्य को
संसार का अंतिम वाक्य मान लिया था
कई और चीजों की तरह तुम यह भी मुझसे बेहतर जानते थे की मुझे
हर उस चीज़ से प्रेम है
जो कुदरत ने मेरी नजरों के
सामने रखी दी है बिना किसी लाग लपेट के
फिर भी तुम मुझे एक अ-कुदरती रिश्ते मे बाँध ले जाना चाहते थे
उन ठोस दिनों की ये बातें
किसी भरोसे की शुरुआत की तरह थी
जो किसी भी सूरत मे ख़तम होने के लिये नहीं थी.
एक उदास चेहरा::
जीवन के तमाम आरोह -अवरोह के बीच
अवसाद की जो महीन झिर्रियाँ हैं
उन्हीं के पास खड़ा है
वह उदास चेहरा
मछली की फांस की तरह
देर तक अटका रहता है
मन के भीतर जो अनगिनत पोखर बन गए हैं
कभी वे उसकी उँगलियों के निशान थे
जो समय के साथ गहरे और गहरे धंसते गए
आत्मा के जल से बूंद- बूंद भर कर
पोखर मे तब्दील होते चले गए
इतनी आत्मीयता के बावजूद
उस उदास चेहरे ने कोई ऐसा तार भी नहीं छोड़ा था कि
मैं खींच लेती उसे अपने पास
हम दोनों की दूर- नज़दीक की सभी विडम्बनाएं अपने चरम पर थी
और इन विडम्बनाओं में ज़रा भी आपसी सामंजस्य नहीं था
छोड़ आयी उस उदास चेहरे को दूर कहीं
अकेले, असहाय
मुझे भी अकेले ही गुज़रना था
अपने फैसलों की सतही सड़क पर.
जीवन से काटी गयी कुछ बारीक कतरनें ::
१.
मेरी खामोशी जितना कह सकती थी,
कह गई
तुम्हारे शब्द मेरी खामोशी को सोखते रहे
पर सीले नहीं हुए
और सूखे-मरुस्थल से शब्दों में
कुछ भी तो नहीं अटकता।
२.
कहीं ओट एक आवाज़ आई और
मैं इस वक्त भी उसके साथ थी
यह बेहतर पसंद का मामला था
जो दोनों तरफ से एक साथ उठना था
पर न जाने कुछ बुरे धब्बों ने अपना असर
हमारी मुलाकात पर छोडना ही था।
३.
तेज़ हवा मेरे साथ थी और
एक दिन बासी स्मृतियाँ
इन स्मृतियों की घनी पत्तियों का रंग कुछ काला पड़ गया था
पर मुझे उन्हें सुर्ख रखने का
हर सम्भव यत्न करना था
अपने लहू का रंग देकर भी।
४.
एक ऊँची उठती अज़ान के आस-पास
ही उगे थे कुछ अहसास
कुछ जन्म ले रहा था कहीं
यह शुरूआत थी या अंत
या कोई सपना जो बिल्ली के बच्चे की तरह ही दबे पाँव आया और
उन्हीं नाज़ुक कदमों से लौट गया।
achhi kavitayen hain. raag-virag ka dwandwa.
जवाब देंहटाएंजब तुम आकाश रच रहे थे उस वक़्त मैं व्यस्त थी
जवाब देंहटाएंअपनी धरती की ऊष्मा बचाने के लिये
तुमने ढेर सारे मोती बिखेर दिए
और कहा, चुनो
तब पहली बार लगा था चुनना कितना कठिन होता है
alag migag ki kavitaye. man ko chuti hai.
एक गहरी उदासी और रचनात्मक आवेग से रची गई ये कविताएं बहुत कुछ कह जाती हैं। प्रकृति की हर संरचना और रिश्ते से आत्मिक लगाव रखती रचनात्मक जिजीविषा से कैसे कोई यह अपेक्षा कर सकता है कि वह उसकी बिखेरी चीजों में से कुछ बटोर ले, या अपनी कामनाओं को ही छोटा कर ले। "मेरी खामोशी जितना कह सकती थी,/कह गई /तुम्हारे शब्द मेरी खामोशी को सोखते रहे
जवाब देंहटाएंपर सीले नहीं हुए" विपिन की काव्य-संवेदना वाकई प्रेम की एक वृहत्तर भाव की ओर संकेत करती है और गहरा असर छोड़ जाती हैं।
बेहद उम्दा रचनायें।
जवाब देंहटाएंवाह विपिन।
जवाब देंहटाएंजीवन के तमाम आरोह -अवरोह के बीच
जवाब देंहटाएंअवसाद की जो महीन झिर्रियाँ हैं
उन्हीं के पास खड़ा है
वह उदास चेहरा
................क्या कहूँ भूल गयी हूँ क्या कहना...
अच्छी भाव-परक कविताएं हैं। गहराइयों से निकल कर यथार्थ के धरातल पर फिसलती हुई सी मानवीय संवेदनाएं।
जवाब देंहटाएंमेरी प्रीत को पानी का नाम दे कर
जवाब देंहटाएंवह चार-दीवारी के गहरे कुँए में
तब्दील हो गया.
उसके बाद कभी
फिर से मेरी प्यास ने
दरियाओं का रूख नहीं किया.
बहुत ही गहन अनुभूति
एक ऊँची उठती अज़ान के आस-पास
जवाब देंहटाएंही उगे थे कुछ अहसास
कुछ जन्म ले रहा था कहीं
यह शुरूआत थी या अंत
या कोई सपना जो बिल्ली के बच्चे की तरह ही दबे पाँव आया और
उन्हीं नाज़ुक कदमों से लौट गया।
एक अवसाद भरती है ये कविताएं. लगता है कि इनसे निकला जाए और जीवन को जीवन के ही नाना फूलों से सजाया जाए.
जवाब देंहटाएंगहरे अवसाद और स्मृतियों के घटाटोप में उपजी इन कविताओं में विपिन का सर्जक मन बहुत ही शानदार ढंग से अभिव्यक्त हुआ है... बधाई...यह रचनात्मकता और नए आयाम छूए, यही कामना है.
जवाब देंहटाएंMarm ko choo jaati hain.
जवाब देंहटाएंGreat!
ACHI KAVITA HAI KYA LAKIN ESAME PREM BHANG PAR BAHUT HAI
जवाब देंहटाएंachi hai
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविताएँ...
जवाब देंहटाएंप्रेम और अवसाद की गहरी अनुभूतिपरक कविताएं हैं… मन को स्पर्श करती हैं…
जवाब देंहटाएंWah!Apni bhawnaaon ko vyakt karne ka kavita bhi ek behatreen maadhyam hai...apki rachnaayein bahut had tak dil ko chhooti hain...Best..
जवाब देंहटाएंसुंदर गहरे भाव सजोये हैं आपकी कविताएँ।
जवाब देंहटाएंपढ़वाने का आभार।
विपिन की कविता में अनुभूति के आवेग से भरी विचार की लय है, जो कहीं कहीं एक प्रच्छन्न उदास, अवसादभरे, अँधेरे में जीवन की तलाश की एक दीप्त रेखा की तरह उद्दाम हो जाती है. सर्वत्र बिखरी हुई है एक हारे हुए मौन के संगीत की मद्धिम अनुगूंज, जो मंच-सज्जा-रौशनी के वृत्त में फिर से मुखर होना चाहती है ... कवि के रचना-समय का बौद्धिक और वैचारिक सौंदर्य मर्म को छू कर अपनी पहचान इंगित कर देता है... साधुवाद ....
जवाब देंहटाएंसुनील श्रीवास्तव, ५ जून २०११, ८:०० प्रातः
बहुत अच्छी कविताएँ
जवाब देंहटाएंDharti-Aakash sabse achchi lagi hai ye kavita. saari kavitaayein bohot achchi hain.
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