[ राग-बिराग
प्रियतम !
तेरी पहली दृष्टि, गूँज उठे जीवन में राग
तेरी छुअन से चमक उठा माथे पर रक्ताभ सुहाग
मन भर कर सोहर सुनते थे, जी भर गाए हमने फाग
छलिया ! तेरा छल भी सुंदर
हमको हुआ बिराग
तेरी पहली दृष्टि, गूँज उठे जीवन में राग
तेरी छुअन से चमक उठा माथे पर रक्ताभ सुहाग
मन भर कर सोहर सुनते थे, जी भर गाए हमने फाग
छलिया ! तेरा छल भी सुंदर
हमको हुआ बिराग
रे प्रियतम !
नींद नगरिया संग चले तुम बने हमारी जाग
सजनवा !
हमको हुआ बिराग ]
नींद नगरिया संग चले तुम बने हमारी जाग
सजनवा !
हमको हुआ बिराग ]
छल
चुनरी के कच्चे रंगों पर इतरा जाती हैं
आँखें मूँदें टिक जातीं कच्ची दीवारों पर
वो बावरी लड़कियाँ
कच्ची उम्र के चूल्हे में पूरी पक जाती हैं
आँखें मूँदें टिक जातीं कच्ची दीवारों पर
वो बावरी लड़कियाँ
कच्ची उम्र के चूल्हे में पूरी पक जाती हैं
वो बेशरम लड़कियाँ
पीस देतीं कच्ची रातें सिल पर
पक्के रंग पाने की ख़ातिर
कच्चे आम की फाँक जैसे
इच्छाएँ चखतीं आँखें मिचकाते
दाँत खट्टे कर बैठती प्रेम के रस से
पीस देतीं कच्ची रातें सिल पर
पक्के रंग पाने की ख़ातिर
कच्चे आम की फाँक जैसे
इच्छाएँ चखतीं आँखें मिचकाते
दाँत खट्टे कर बैठती प्रेम के रस से
वो बेसुरी लड़कियाँ
छोटी कच्ची सड़कों पर निकल पड़तीं
लम्बे-लम्बे गीत गाते जीवन के
एक मोड़ पर आ कर ख़त्म हो जाती सड़कें
उनके गीत नहीं चुकते
कच्ची टहनियों पर बाँध बिरही राग सारे
लौट आतीं घरों को
सूरज ढलने के पहले
बुजुर्ग कहते हैं
कि सुबह का भूला साँझ घर लौट आए
तो उसे भूला नहीं कहते
छोटी कच्ची सड़कों पर निकल पड़तीं
लम्बे-लम्बे गीत गाते जीवन के
एक मोड़ पर आ कर ख़त्म हो जाती सड़कें
उनके गीत नहीं चुकते
कच्ची टहनियों पर बाँध बिरही राग सारे
लौट आतीं घरों को
सूरज ढलने के पहले
बुजुर्ग कहते हैं
कि सुबह का भूला साँझ घर लौट आए
तो उसे भूला नहीं कहते
वो बेसुध लड़कियाँ
भूल जातीं तोते की तरह रटे जीवन के सबक
भूलें दोहरातीं
कच्चे कानों पर रख देतीं पक्के वादे
भूल जातीं तोते की तरह रटे जीवन के सबक
भूलें दोहरातीं
कच्चे कानों पर रख देतीं पक्के वादे
वो बुद्धू लड़कियाँ
गीता का दूसरा अध्याय नहीं बाँचतीं
उन्हें मतलब नहीं इस बात से
कि आत्मा को न काटा जा सकता है
न मारा जा सकता है
न जलाया जा सकता है न ही सुखाया जा सकता है
गीता का दूसरा अध्याय नहीं बाँचतीं
उन्हें मतलब नहीं इस बात से
कि आत्मा को न काटा जा सकता है
न मारा जा सकता है
न जलाया जा सकता है न ही सुखाया जा सकता है
वो बेज़ुबान लड़कियाँ
छलनी आत्मा के टुकड़े जोड़ती-सहेजती
जानती हैं खूब
छलनी आत्मा के टुकड़े जोड़ती-सहेजती
जानती हैं खूब
कि आत्मा को छला जा सकता है
लोभ
( शबनम नानी के लिए )
( शबनम नानी के लिए )
नानी एक कथा कहती थीं, जिसमें एक लड़की की सच्चाई से प्रसन्न होकर देवताओं ने वरदान दिया था. वरदान यह था कि गाँव के तालाब में वो एक डुबकी लगाएगी तो सुंदर हो जाएगी. बहुत मन करे तो एक और डुबकी लगा ले, और सुंदर हो जाएगी पर तीसरी डुबकी पर प्रतिबन्ध था.
देवताओं ने बार- बार कहा था कि किसी भी हाल में तीसरी डुबकी मत लगाना.
देवताओं ने बार- बार कहा था कि किसी भी हाल में तीसरी डुबकी मत लगाना.
और ये बदतमीज़ लड़कियाँ
कथा को दरकिनार कर तीसरी डुबकी ज़रूर लगाती हैं
वो खो देती हैं सारा अर्जित सौंदर्य
ज़्यादा पाने के लोभ में नहीं करतीं वो देवताओं के वरदान की अवहेलना
उठाती हैं ख़तरे प्रतिबन्ध के रोमांच में
अंजान गलियों में ढूँढ़ती सही पते
तालाब की गहराइयों में खोजतीं मोती
मिले शायद कहीं जो आँखों से छिटक के गिरा था
इस बात से बेफ़िकर कि यह दुस्साहस सारा सौंदर्य नष्ट कर देगा
कथा को दरकिनार कर तीसरी डुबकी ज़रूर लगाती हैं
वो खो देती हैं सारा अर्जित सौंदर्य
ज़्यादा पाने के लोभ में नहीं करतीं वो देवताओं के वरदान की अवहेलना
उठाती हैं ख़तरे प्रतिबन्ध के रोमांच में
अंजान गलियों में ढूँढ़ती सही पते
तालाब की गहराइयों में खोजतीं मोती
मिले शायद कहीं जो आँखों से छिटक के गिरा था
इस बात से बेफ़िकर कि यह दुस्साहस सारा सौंदर्य नष्ट कर देगा
अह !
कैसा दुर्भाग्य कि दुनिया गहरे उतरने को लोभ परिभाषित करती है
कैसा दुर्भाग्य कि दुनिया गहरे उतरने को लोभ परिभाषित करती है
मैं बेशऊर पूछती
नानी, तुम काली क्यों हो ?
तेरे चेहरे पर ये काला धब्बा कैसा, नानी ?
माँ कहती है वो तुम्हारी जैविक नानी नहीं
फिर भी देखो ! एक गुण कितना मिलता जुलता
कि तुम दोनों जिस क़िस्से पर हँस देती हो
ठीक उसी क़िस्से को कहते रो पड़ती हो
नानी, तुम काली क्यों हो ?
तेरे चेहरे पर ये काला धब्बा कैसा, नानी ?
माँ कहती है वो तुम्हारी जैविक नानी नहीं
फिर भी देखो ! एक गुण कितना मिलता जुलता
कि तुम दोनों जिस क़िस्से पर हँस देती हो
ठीक उसी क़िस्से को कहते रो पड़ती हो
थोड़ा बड़ी हुई तब फिर से याद किया नानी का चेहरा
काले रंग पर एक दाग उजला
सोचती हूँ
कितने तंग हाथों से देता है पुरुष
कि तीसरी ही डुबकी में सौतेला हो जाता है
काले रंग पर एक दाग उजला
सोचती हूँ
कितने तंग हाथों से देता है पुरुष
कि तीसरी ही डुबकी में सौतेला हो जाता है
पुरुष तालाब है
नानी कहती थी
कि आसमान तकते लोग आख़िर में सितारे बन जाते हैं
कि आसमान तकते लोग आख़िर में सितारे बन जाते हैं
वो बेअदब लड़कियाँ
आख़िर में ज़रूर कमल बन जाती होंगी
ये जानते हुए भी कि बाहर तख़्ती लगी है
कि सख़्त मनाही है तीसरी डुबकी की
वो तीन नहीं तीन सौ बार डूबती होंगी
आख़िर में ज़रूर कमल बन जाती होंगी
ये जानते हुए भी कि बाहर तख़्ती लगी है
कि सख़्त मनाही है तीसरी डुबकी की
वो तीन नहीं तीन सौ बार डूबती होंगी
यह जानने के लिए
कि तालाब के भीतर आख़िर क्या छुपा था
कि तालाब के भीतर आख़िर क्या छुपा था
मोह
कि जैसे उसके जूते के तस्मे में मन बाँध देना.
फिर इंतज़ार करना कि जब वो लौट आएगा और जूते खोलेगा तब अपनी चीज़ लेकर अपने देस लौट जाएँगे. वो किसी मन्दिर चला गया था. जब घर लौटा तो पाँव में किसी और के जूते थे. कहने लगा, जूता बदल गया यार ! पता नहीं किसका है यह.
जाने किसका मन मेरे पास ले आया. जाने मेरा मन कहाँ भटकता होगा. ऐसा लगता है जैसे हर कोई मंदिर के बाहर से ग़लत जूते पहन आया है.
कितना तो कोलाहल है संसार में
नासा वाले खोज रहे निर्जन द्वीपों में जीवन
बुद्ध खोजते थे जीवन में मृत्यु
शायद वॉन गॉग तलाशता रहा हो सूरजमुखी में सूरज
मैं ढूँढ़ती रहती उसके गुमे जूते संसार भर में
नासा वाले खोज रहे निर्जन द्वीपों में जीवन
बुद्ध खोजते थे जीवन में मृत्यु
शायद वॉन गॉग तलाशता रहा हो सूरजमुखी में सूरज
मैं ढूँढ़ती रहती उसके गुमे जूते संसार भर में
मन्दिरों के बाहर जूते बहुत तेज़ी से पाँव बदल रहे हैं
बेबस पाँव जूतों की आदत नहीं बदल पाते
बेबस पाँव जूतों की आदत नहीं बदल पाते
मन बेचारा !
जूतों के तस्मे में बँधा घूमता संसार भर में
जूतों के तस्मे में बँधा घूमता संसार भर में
कामना, क्रोध, समर्पण
हर आग का रंग नारंगी नहीं होता
कोई चिंगारी हरी भी होती है लपट के बीचों-बीच उठती
अलग-अलग होती है तासीर जलने की
कोई आग जला कर राख करती
तो कोई अपने ताप में गला कर कुंदन बना देती
कोई चिंगारी हरी भी होती है लपट के बीचों-बीच उठती
अलग-अलग होती है तासीर जलने की
कोई आग जला कर राख करती
तो कोई अपने ताप में गला कर कुंदन बना देती
कुछ जल्दबाज़ लोग जल्दी-जल्दी जीते हैं जीवन
जल्दी चलते हैं
जल्दी सुनते हैं
जल्दी में आधा सुनते हैं
उससे भी जल्दी कहते हैं
जल्दी चलते हैं
जल्दी सुनते हैं
जल्दी में आधा सुनते हैं
उससे भी जल्दी कहते हैं
आधा सुनने वाले लोग पूरा मतलब निकालने के विशेषज्ञ होते हैं
किसी निष्कलुष मन की आँच को
जल्दी से जल्दी
जंगल की आग की तरह फैला देते हैं
जल्दी से जल्दी
जंगल की आग की तरह फैला देते हैं
हाथों में थामे जलती हुई मशाल
सब कुछ जला देने तैयार
ये जलते हुए लोग नहीं समझ पाते मामूली- सी बात
सब कुछ जला देने तैयार
ये जलते हुए लोग नहीं समझ पाते मामूली- सी बात
कि किसी जंगल का दिल जला होगा
तब कहीं जाकर जंगल हरा हुआ होगा
तब कहीं जाकर जंगल हरा हुआ होगा
मुक्ति
सबका अपना-अपना मक्का होता है
सबकी अपनी काशी
सबकी अपनी काशी
बताया था मैंने
एक प्रेत रहता है मेरे भीतर
लिबास बदल-बदल कर सिर चढ़ जाता
नहीं भागता किसी जादू-टोने या मंतर से
स्याही की रौशनाई से बिचक कर भूत बन जाता है
एक प्रेत रहता है मेरे भीतर
लिबास बदल-बदल कर सिर चढ़ जाता
नहीं भागता किसी जादू-टोने या मंतर से
स्याही की रौशनाई से बिचक कर भूत बन जाता है
इन भूतों को भविष्य में तालियाँ मिल जाती हैं
उपहार और फूल मिलते हैं
कितनी सारी बदतमीज़ लड़कियाँ लिखती हैं
बेबाक चिठ्ठियाँ
"बाबुषा ! हमारे बंद होठों और बेबस मन को तुमसे आवाज़ मिलती है
यूँ ही भूत-प्रेत के तंत्र-मंत्र करती रहना "
उपहार और फूल मिलते हैं
कितनी सारी बदतमीज़ लड़कियाँ लिखती हैं
बेबाक चिठ्ठियाँ
"बाबुषा ! हमारे बंद होठों और बेबस मन को तुमसे आवाज़ मिलती है
यूँ ही भूत-प्रेत के तंत्र-मंत्र करती रहना "
सहेज लेती हूँ दूर-दराज से आई गीली चिठ्ठियाँ
सीली दराज में
गीले तकिये को फूँक मार कर सुखा देती हूँ
उन बेसुध, बावरी, बेज़ुबान लड़कियों को मिलती है आवाज़
मुझे माइग्रेन की ज़ंजीरों से मुक्ति मिलती है
सीली दराज में
गीले तकिये को फूँक मार कर सुखा देती हूँ
उन बेसुध, बावरी, बेज़ुबान लड़कियों को मिलती है आवाज़
मुझे माइग्रेन की ज़ंजीरों से मुक्ति मिलती है
प्रेम की चोट लगती है
कोई और प्रेम बन जाता है औषध
जीवन से भरोसा टूट जाए
कम्बख़्त ! कोई गोंद नहीं जोड़ पाती
प्रेत को भूत में बदलने का मंत्र साध चुके
भरोसे के तितर-बितर टुकड़ों को बो कर
भरोसे की फ़सल उगाने की किसानी अब तक न आई
कोई और प्रेम बन जाता है औषध
जीवन से भरोसा टूट जाए
कम्बख़्त ! कोई गोंद नहीं जोड़ पाती
प्रेत को भूत में बदलने का मंत्र साध चुके
भरोसे के तितर-बितर टुकड़ों को बो कर
भरोसे की फ़सल उगाने की किसानी अब तक न आई
गाहे-बगाहे गुनगुनाती हूँ कच्ची सड़कों पर जीवन के गीत
तालाब किनारे बैठे दोहराती हूँ नानी की कहानी
कभी सिखाऊँगी ये गीत अपनी बेटी को
मैं उसे तीन डुबकी की कथा सुनाऊँगी
तालाब किनारे बैठे दोहराती हूँ नानी की कहानी
कभी सिखाऊँगी ये गीत अपनी बेटी को
मैं उसे तीन डुबकी की कथा सुनाऊँगी
अब तलक काशी से मक्का तक ढूँढ़ती जूते तुम्हारे
जंगल के हरे को हरि जान कर पूजती
मैं जीवन के सारे अनुष्ठान करती हूँ
जंगल के हरे को हरि जान कर पूजती
मैं जीवन के सारे अनुष्ठान करती हूँ
शायद ऐसा होगा कभी
कि भूत-प्रेत के चक्करों से छुटकारा मिल जाएगा
कि भूत-प्रेत के चक्करों से छुटकारा मिल जाएगा
हरी-नारंगी आग से दहकते जंगल के बीचों बीच
उस तालाब के पानी पर एक दिन
तुम्हारा नाम लिखूँगी उँगलियाँ गड़ा कर
उस तालाब के पानी पर एक दिन
तुम्हारा नाम लिखूँगी उँगलियाँ गड़ा कर
सबका अपना-अपना मक्का
सबकी अपनी काशी
सबकी अपनी काशी
एक दिन मेरे भीतर हुड़दंग मचाते सारे प्रेत हो जाएँगे सन्यासी
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअपर्णा बाबु की ये कविताएं बहुत उद्विग्न करने वाली हैं. पाँच खंडों की इन कविताओं का राग-बिराग सीरीज़ मानीख़ेज़ है जहाँ मोह, लोभ, छल, कामना/अहंकार/समर्पण सारे तत्त्व हैं. नायिका लिखकर मुक्ति पाती है. वह इस संसार को असार बताती है और कहती है कि जिस तरह से कहते हैं ज्ञानी दुनिया है फ़ानी पानी पर लिखी लिखाई, उसी तरह एक दिन वह नायक का नाम पानी पर लिख कर इस राग रंग को फ़ानी कर देगी.
जवाब देंहटाएंइन कविताओं को पढ़कर लगता है इनमें एक पागलपन है ...फिर रूक कर सोचना पड़ता है ...फिर लगता है बात तो ठीक ही कही जा रही है ..इस समय में क्या यही पागलपन हमें बचाएगा ..या फिर इसे दबाके हम सभ्य लोगों में गिने जाना पसंद करेंगे ...
जवाब देंहटाएंएक प्रेम में पूरी तरह डूबी हुई स्त्री।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर कवितायेँ |
जवाब देंहटाएंDeewanagi hain ye kavitayen...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक ....... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। Nice article ... Thanks for sharing this !! :):)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर वाह
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