ज्योत्स्ना पाण्डेय

































कोई रिश्ता नहीं::

दिल की सुर्ख गलियों में ,
वो आज भी
धड़कता है ---

बंद आँखों में,
तस्वीर सा उभरता है ---

उसकी बातों की वो,
मीठी सी महक
.दर्द देने का
हुनर भी
खुदा ने बख्शा है ----

उसके हाथों की पकड़ ,
यादों को ,
जकड़ लेती हैं ---

फिर भी --
ये सच है कि -
उससे कोई रिश्ता नहीं----




चाँद को चख के देख लेना ज़रा::

जब कभी भी
रातों को तुम अकेले हो-
कोई बेचैनी जब
करवटें बदलने लगे,
चाँद को चख के देख लेना ज़रा
अगर मीठा लगे,
और चांदनी का दिल धडके
समझ लेना कि मैं हूँ,
तुम्हारे पास कहीं--
यकीं  न हो तो,
साँसे ज़रा आहिस्ता लो-
मेरी साँसों को
खुद कि साँसों में,
घुलता पाओगे--



पाषाण हृदया::




तुम----
सैकत-कणों पर
कोई हस्ताक्षर नहीं
जो वायु-वेग से उड़ जाओगे
या कि----
समुद्र की उठती उर्मियाँ,
तुम्हें मिटा देंगी----

हथौड़ी-सी चोट करते
तुम्हारे शब्द----
और छेनी की तरह बेधते
तुम्हारे व्यंग्य----
प्रस्तर पर शनैः - शनैः
तुम्हारा नाम लिखते रहे

बहुत बार सोचती हूँ
मिटा दूं,
धोती हूँ, अश्रु-जल से,
आर्द्र-प्रस्तर तुम्हारे नाम को
और अधिक स्पष्ट कर देता है,

अब तक जिनसे छिपा तुम्हारा नाम
ह्रदय में अंकित था,
वे भी पढ़ लेते हैं,

तुम सत्य कहते हो----
मैं हूँ "पाषाण हृदया!"



तुम्हारा प्रेम::



कनखियों के पैनेपन की

रक्ताभ खनक
जब आन्दोलित कर देती है स्पंदन
उच्छवासों की शिथिल वाष्प
बूँद-बूँद हो,
अंतस्थल भिगाती,
घिर जाती हूँ मैं,
परितः तुम्हारी देहगंध से,
तो, हो जाता है तुम्हारा प्रेम,
और भी मादक--

माथे पर तप्त लम्स

जब नमी छोड़ जाते,
अलकों से अठखेलियाँ करते
चम्पई अहसास,
बादलों पर झुलाते,
उन क्षणों में
जब "मैं" और "तुम"
शून्य हो जाते,
तो, हो जाता है तुम्हारा प्रेम,
सूफियाना--

लोन-तेल-लकड़ी के

सुरमई यथार्थ
जब खिंच आते हैं,
चेहरे पर झुर्रियाँ बन,
तुम्हारी धँस रही आँखे,
हो जाती हैं और गहरी,
देती हैं आश्वासन,
धूपऔर छाँव में साथ चलते रहने का,
तब, हो जाता है तुम्हारा प्रेम,
और भी गहरा और भी पावन--

नर्म मखमली और गुनगुने पल,

आपस में बिंध जाते हैं,
रक्ताभ, चम्पई और सुरमई
 ऊन के गोलों जैसे,
जीवन स्वतः बुन जाता है
खूबसूरत शॉल की तरह---
तब, एक अनुभूति
देती है मुझे संबल
तुम्हारी बाँहों की तरह---

15 टिप्‍पणियां:

  1. सहज बयानी के रूप में प्रेम के अन्‍तरंग भाव को साकार करती ये अच्‍छी कविताएं हैं। "चेहरे पर झुर्रियाँ बन,/तुम्हारी धँस रही आँखे,/हो जाती हैं और गहरी,/देती हैं आश्वासन,/धूपऔर छाँव में साथ चलते रहने का,/तब, हो जाता है तुम्हारा प्रेम,/और भी गहरा और भी पावन--" बहुत खूबसूरत और सार्थक अभिव्‍यक्ति है। बधाई ज्‍योत्‍स्‍ना।

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  2. umda our apne antar man ke aard bhaw ko darshati ye sundar rachnawaliya he
    badhaiya

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  3. बहुत अच्छी लगीं सभी रचनाएँ ... विशेष रूप से चाँद को चख कर देख लेना ज़रा

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  4. nij ka akash rachti ye komal anubhootiya sahaj hee prem ki vah abhivyakti ban jaati hai jinse koi achhoota nhi hai. aur ham sab is akash me apna apna kona talashne lagte hain. sundar.

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  5. चाँद को चख के देख लेना ज़रा...

    अच्छा लगा... सहज कविताएँ..

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  6. बहुत अच्छी कवितायेँ ,ज्योत्सना जी प्रेम की गहन अनुभूतियों ने शब्द पाए हैं रचनाओं में ! सहज और मौलिक !

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  7. चाँद का एक एक कतरा शबनमी शहद सा लगा आज .....

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  8. उसकी बातों की वो,
    मीठी सी महक
    .दर्द देने का
    हुनर भी
    खुदा ने बख्शा है ----

    साँसे ज़रा आहिस्ता लो-
    मेरी साँसों को
    खुद कि साँसों में,
    घुलता पाओगे--
    अब तक जिनसे छिपा तुम्हारा नाम
    ह्रदय में अंकित था,
    वे भी पढ़ लेते हैं,

    तुम सत्य कहते हो----
    मैं हूँ "पाषाण हृदया!"
    अच्छी लगी सभी रचनाएं

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  9. ''जब कभी भी
    रातों को तुम अकेले हो-
    कोई बेचैनी जब
    करवटें बदलने लगे,
    चाँद को चख के देख लेना ज़रा''....... वाह !!!!

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  10. यहाँ आकर मुझे प्रोत्साहित करने के लिए आप सभी विद्वतजनों का आभार!

    अपर्णा दी, धन्यवाद!

    -सादर

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  11. acchi kavita ............नर्म मखमली और गुनगुने पल,
    आपस में बिंध जाते हैं,
    रक्ताभ, चम्पई और सुरमई
    ऊन के गोलों जैसे,

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  12. सहजता से भावों को पिरोया है ……………सुन्दर रचनायें ।

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