अरुण देव ::








(Astrid Preston, "Thirsty Sun,")









तुम्हारे जन्म दिन पर::  

तुम्हारे सुर्ख होंठों के लिए गुलाब
तुम्हारे सयाह लम्बे बालों के लिए लम्बी रातें तारों से भरी टिमटटिमाती हुई
तुम्हारे आगोश की नर्म घास पर ओस का गीलापन

तुम्हारी आँखों के लिए ...
नहीं..... नहीं
उस जैसा कुछ भी तो नहीं

तुम्हारे कांपते ज़िस्म को ढक लेता हूँ                                 
अपनी चाहत की चादर से

तुम्हारी देह के लिए
मेरी देह मदिर और उत्सुक

तुम्हारे लिए
इस जन्म दिन पर
मैं जलाना चाहता हूँ अधिकतम १८ मोमबतियां
तुम्हारी उम्र मेरे लिए वही कहीं आस – पास ठहर गई है..        

१८ की उस याद के लिए
वह आइसक्रीम .
देखो अब यह जितनी भी रह गई है समय की आंच से पिघलती हुई

तुम्हारी नर्म हथेलिओं के लिए
मैं खरगोश बन जाता हूँ


अपनी चमकीली आँखों से तुम्हें निहारता हुआ वह लड़का
तुम्हें याद है
अपनी एटलस साइकिल से जो कई चक्कर लगा लेता था तुम्हारे घर का
रोज़ ही
तुम्हारे घर के सामने से तेज़ घंटी बजाता हुआ

इस जन्म दिन पर
क्यों न केवल तुम रहो


सिर्फ तुम

और मैं अपने मैं को छोड़ कर बैठा रहूँ तुम्हारे पास
जब तक बुझ न जाएँ तारें.....





मित्रता::


देह पर एक जैसी शर्ट
एक उसके पास

चाहे उड़ जाए रंग
घिसकर कमजोर पड़ जाए धागा
फट जाए जेब
और दिखे कपड़े के पीछे का बदरंग चेहरा
पर जिद कि आत्मा की उसी रौशनी में झिलमिलाए मन

बढ़ा कर छू लें 
नदियोँ.पहाड़ों और रेगिस्तानों के पार
उसके जीवन के वे हिस्से
जिसमें सघनता से रहते हैं दो प्राण

ईर्ष्या मोह में डूबे दो अलग संसार को
जोड़ने वाला
हिलता हुआ यह पुल.

 (क्या तो समय-२००४)








:: काश 


काश मैं हवा होता 
बरसों अदृश्य रह तुम्हारे साथ रहता.. 
तुमसे लिपटा हुआ हमेशा
तुम्हारी उदप्त सांसों में 

काश मैं जल होता तुम्हारे मनघर में रहता
कभी न निकलता आँसू बनकर 

मैं गंध होता 
भटका करता तुम्हारे केशों के घने वन में 
उन्हें और मादक बनाता हुआ 

बसंत बन कर ठहर जाता 
चमकता तुम्हारे तन पर किसलय की तरह

अगर मैं चाँद होता 
रौशनी के सहारे उतर आता हर रात तुम्हारे पास 
तुम्हारे चेहरे की आभा में धीरे धीरे घुलता हुआ..
और कभी न होती अमावस 

मुझे तारा होना चाहिए.. असंख्य 
तुम्हें निहारता हुआ अपने हज़ार आँखों से 

कम से कम मुझे एक अमरुद ही हो जाने दो 
की तुम जब उसे खाओ तो पाओ 
मीठा और स्वादिष्ट

और मैं उसका एक बीज 
तुम्हारे दांतों के बीच फंसा हुआ.


:: टार्च 


उजाले में यों ही पड़ा था आंखें बंद किए
जैसे वह कुछ हो ही नहीं
उसे तो जैसे  अंधेरे की प्रतीक्षा भी नहीं 
कि रौशन हो सके उसका होना

हां अगर अंधेरा घिर आए
सूझे न रास्ता 
उजाले तक न पहुंच पाए हाथ 
वह आ जाता है खुश-खुश
और तब भी दिखती है रौशनी  
वह कहां दिखता है

कभी-कभी फोकस ठीक करना होता है 
काटनी होती है कालिमा
नहीं तो बिखर जाता है प्रकाश 
धुंधला पड़ जाता है लक्ष्य

वह है वहां अब भी जहां चमक-दमक कम है
अंधेरी रात में उसके सहारे
किसी पगडंडी पर चल कर देखो
तब दिखता है उसका होना .


:: हमारी दुनिया


अभी-अभी गाय के थन से लौटा हूं
न संशय 
न आभार

भगौने में उबल रही है बछड़े की प्यास

धूप में कुलाचें भर रहा है बछड़ा
न शिकायत
न आक्रोश

ऐसी न जाने कितनी क्रूरताओं पर टिकी है
हम मनुष्यों की दुनिया.


:: इंकार               


दरवाजे पर इंकार की ठोकर
बढे हुए हाथ के प्रतिउत्तर में खींच लिया उसने अपना हाथ

वह हथेली जिस पर चोट और घाव की महीन लकीरें हैं
जिस पर मैल है मनुष्यता की
अपमान और धोखा की चुभती हुई पपड़ी 

वहां नफरत के इतने पर्यायवाची हैं 
कि सबका विलोम ढूंढने में मेरी हथेली को समय लग रहा है

हर सख्त हथेली पहले चुभती क्यों है. 

 (चित्र इस लिंक से लिया गया है। http://rajcritic.wordpress.com/2012/04/03/status-of-art-and-the-e-after-fifty-years/)


:: वैराग्य


मेरी सारंगी से जो बजता है वह राग नहीं 
मैं विराग हूँ

संसार में रहते हुए भी असंसार हूँ 
मटमैले चादर में अपनी थकी काया लपेटे
धीरे-धीरे बढाता हूँ कदम 

मैं किसी दौड़ में शामिल नहीं
यहाँ तक की धीरे चलकर पीछे रह जाने के किसी आत्मदया में भी नहीं रहना मुझे

मेरे चेहरे की जो उदासी है 
उसे हर खुशी के अंतिम छोर पर तुम हमेशा पाओगे

अभी अभी अपनी युवा पत्नी से भिक्षा लेकर लौटा हूँ
अपनी माँ के सामने अडिग मैंने घोषणा की है 
कोई नहीं मेरी माँ, मेरा पिता, मेरा प्रजापति
कोई धर्म ग्रन्थ मेरा नहीं 
जीवन की सारी परिपाटियो को आज अस्वीकर करता हूँ मैं

मेरा कोई देश नहीं
व्याकरण के जल्लाद और मीमांसा के धर्माधिकारी सुन लें  
अब मुझे नहीं रहना भाषा के घर में भी 

मनुष्यता के महाजंगल में 
तुम्हारी क्रूरता और कपट के इतने विष वृक्ष हैं 
की अब मैं एक जानवर की तरह भी नहीं रह सकता यहाँ.





40 टिप्‍पणियां:

  1. अगर मैं चाँद होता
    रौशनी के सहारे उतर आता हर रात तुम्हारे पास
    तुम्हारे चेहरे की आभा में धीरे धीरे घुलता हुआ..
    और कभी न होती अमावस

    अद्भुत बिम्ब हैं, बहुत अच्छी कविताएँ, अरुण जी को बधाई और आपका आभार अपर्णा जी.

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  2. आपको पढ़ना
    हमेशा अच्छा लगा है ..

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  3. prem se vairagya tak sab racnaaye adbhut hai.. hamesha ki tarah arunji ko badhai aur aparnaji ko aabhaar

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  4. कल्‍पनाएं जितनी सरल उससे कहीं अधिक विरल... मन में संजोकर रख लेने लायक कविताएं... बहुत उम्‍दा... बधाई...

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  5. काश मैं जल होता तुम्हारे मनघर में रहता
    कभी न निकलता आँसू बनकर(काश)

    कभी-कभी फोकस ठीक करना होता है
    काटनी होती है कालिमा
    नहीं तो बिखर जाता है प्रकाश
    धुंधला पड़ जाता है लक्ष्य(टार्च)


    भगौने में उबल रही है बछड़े की प्यास

    धूप में कुलाचें भर रहा है बछड़ा
    न शिकायत
    न आक्रोश(हमारी दुनिया)

    वहां नफरत के इतने पर्यायवाची हैं
    कि सबका विलोम ढूंढने में मेरी हथेली को समय लग रहा है(इंकार)

    मनुष्यता के महाजंगल में
    तुम्हारी क्रूरता और कपट के इतने विष वृक्ष हैं
    की अब मैं एक जानवर की तरह भी नहीं रह सकता यहाँ.(वैराग्य)

    .....बस..इतना ही कह लूँ. सुहानी हो गयी आज की सुबह...गुजर कर इन कविताओं से...

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  6. 'अभी-अभी गाय के थन से लौटा हूं
    न संशय
    न आभार

    भगौने में उबल रही है बछड़े की प्यास

    धूप में कुलाचें भर रहा है बछड़ा
    न शिकायत
    न आक्रोश

    ऐसी न जाने कितनी क्रूरताओं पर टिकी है
    हम मनुष्यों की दुनिया'
    क्या कह देते हैं आप अरुण जी... देर तक आप आसपास रहते हैं...

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  7. भगौने में उबल रही है बछड़े की प्यास

    adhbhut.

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  8. मनुष्यता के महाजंगल में
    तुम्हारी क्रूरता और कपट के इतने विष वृक्ष हैं
    की अब मैं एक जानवर की तरह भी नहीं रह सकता यहाँ.

    सामाजिक विसंगतियों मै संघर्षमय वैराग्य का अंकुरण ,और वृक्ष बन जाना .सत पथ गमन या जीवन से विमुखता ....?

    सभी रचनाये नविन आभास कराती है ....बधाई

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  9. हमारी दुनिया


    अभी-अभी गाय के थन से लौटा हूं
    न संशय
    न आभार

    भगौने में उबल रही है बछड़े की प्यास

    धूप में कुलाचें भर रहा है बछड़ा
    न शिकायत
    न आक्रोश

    ऐसी न जाने कितनी क्रूरताओं पर टिकी है
    हम मनुष्यों की दुनिया.
    men ni shabd is aap ki abhivyakti ke aage ....mahut jabrdast ukera hai aap ne is insani ada ko !!!!!!!!!!sadar

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  10. सभी कविताएं बहुत अच्छी हैं। जीवन के राग विराग से निकली और मनुष्यता के संसार के सच की परतें उधेड़तीं...

    मैं किसी दौड़ में शामिल नहीं
    यहाँ तक की धीरे चलकर पीछे रह जाने के किसी आत्मदया में भी नहीं रहना मुझे

    मेरे चेहरे की जो उदासी है
    उसे हर खुशी के अंतिम छोर पर तुम हमेशा पाओगे

    अच्छी कविताओं के लिए बहुत आभार....

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  11. ''मैं किसी दौड़ में शामिल नहीं
    यहाँ तक की धीरे चलकर पीछे रह जाने के किसी आत्मदया में भी नहीं रहना मुझे''अद्भुत .....हमेशा की तरह खूबसूरत...

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  12. अरुणदेव की कविताओं का पाठ जितना सहज है, उनपर कुछ लिखना उतना ही चुनौतीपूर्ण. सहज प्रेम की गंभीर कविताएँ, पाठक को, आलोचक को और स्वयं रचनाकार को चुनौती देती हुई कविताएँ. मुझे पूरा विश्वास है कि रचनाकार स्वयं जब जब अपनी इन रचनाओं को देखता होगा, विस्मित होता होगा कि उसने क्या रच दिया है. बधाई अरुण जी! बधाई अपर्णा जी!! अपर्णा जी, आपको जन्मदिन की भी बधाई!!

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  13. aapke blog per aane se kuchh khuli hawa me jhumte thahre se pal mil jate hain.

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  14. bahut sunder !Blog per ghumna sukhad laga.
    Aaj ki is kavita per meri tippani -"yeh BHAWA aur VIDROH dono ki kavita hai.Mitha aur teekha dono swad hain yenha aur bhawana jaise gagar men sagar ho". Meri shubhkamnayen hain !

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  15. ''
    अगर मैं चाँद होता
    रौशनी के सहारे उतर आता हर रात तुम्हारे पास
    तुम्हारे चेहरे की आभा में धीरे धीरे घुलता हुआ..
    और कभी न होती अमावस ''
    !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!उफ्फ !!!

    जवाब देंहटाएं
  16. अगर मैं चाँद होता
    रौशनी के सहारे उतर आता हर रात तुम्हारे पास
    तुम्हारे चेहरे की आभा में धीरे धीरे घुलता हुआ..
    और कभी न होती अमावस

    प्रेम की इतनी रेशमी चाहत ..उम्दा ...

    हमारी दुनिया में मनुष्य के द्वारा एक बच्चे जानवर / बछड़े का अपने माँ / गाय के दूध से अधिकार छिनना ..बड़ा दर्द भरा लगा...

    वैराग्य भी बड़ी जबरदस्त लगी... अरुण जी की लेखनी को सलाम ..अपर्णा जी को आभार...

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  17. अरुण देव जी , मुझे आपकी पहली कविता को छोड़ कर बाकी सारी कवितायेँ बेहद अच्छी लगी हैं !पहली कविता के विषय में बस यह कहूँगा कि -' न जाने किन भावनात्मक विवशताओं के आग्रह के कारन मुझे दैन्य भाव अच्छा नहीं लगता ! शायद इसी लिए मुझे भक्ति -भाव भी नहीं रुचता ! इसे अहम् न समझें ,यह केवल अपनी उपस्थिति को बनाये और बचाए रखना है !'

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  18. bahut achchhi kavitaye hai arun ji...

    अभी अभी अपनी युवा पत्नी से भिक्षा लेकर लौटा हूँ
    अपनी माँ के सामने अडिग मैंने घोषणा की है
    कोई नहीं मेरी माँ, मेरा पिता, मेरा प्रजापति
    कोई धर्म ग्रन्थ मेरा नहीं
    जीवन की सारी परिपाटियो को आज अस्वीकर करता हूँ मैं

    जवाब देंहटाएं
  19. भगौने में उबल रही है बछड़े की प्यास

    धूप में कुलाचें भर रहा है बछड़ा
    न शिकायत
    न आक्रोश

    ऐसी न जाने कितनी क्रूरताओं पर टिकी है
    हम मनुष्यों की दुनिया.

    बहुत ही अद्भुत भावाभिव्यक्ति है...

    जवाब देंहटाएं
  20. आद। अरुण जी की सभी कविताएं बहुत अच्छी लगीं।

    सादर

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  21. चिंतन परक कविताओं में संवेदना की अद्धभुत छुअन .... एक तरफ़ मीरां जैसा... समर्पण का भाव और दूसरी तरफ़ तथा-कथित मनुष्यता की परिभाषा...शुक्रिया और शुभाकामनाएं भी...!

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  22. अहा........ ये कविताएं हैं कि जीवन से भरा अहसासों का कटोरा ? कोई मुझे बताए. ...गजब की और सरल-सी कविताएं हैं....ये पंक्तियां सौ कवितओं के बराबर है .....अभी-अभी गाय के थन से लौटा हूं
    न संशय
    न आभार

    भगौने में उबल रही है बछड़े की प्यास

    धूप में कुलाचें भर रहा है बछड़ा
    न शिकायत
    न आक्रोश

    ऐसी न जाने कितनी क्रूरताओं पर टिकी है
    हम मनुष्यों की दुनिया.

    इसी तरह प्रेम के अहसासों से भरी कवितों में ....ये पंक्ति पसंद आ गई काश मैं हवा होता
    बरसों अदृश्य रह तुम्हारे साथ रहता..
    तुमसे लिपटा हुआ हमेशा
    तुम्हारी उदप्त सांसों में .........वह भाई अरुण देव...बधाई

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  23. बहुत ख़ूब अरुण भाई। कविता का आनन्द पाया।

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  24. अमरूद का बीज....बहुत मौलिक अभिव्यक्ति अरुण. बढ़िया हैं सारी कवितएँ.

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  25. कभी-कभी फोकस ठीक करना होता है
    काटनी होती है कालिमा
    नहीं तो बिखर जाता है प्रकाश
    धुंधला पड़ जाता है लक्ष्य


    भगौने में उबल रही है बछड़े की प्यास

    मेरा कोई देश नहीं
    व्याकरण के जल्लाद और मीमांसा के धर्माधिकारी सुन लें
    अब मुझे नहीं रहना भाषा के घर में भी

    मनुष्यता के महाजंगल में
    तुम्हारी क्रूरता और कपट के इतने विष वृक्ष हैं
    की अब मैं एक जानवर की तरह भी नहीं रह सकता यहाँ.

    behtreen rachna sansaar hai aapka

    जवाब देंहटाएं
  26. संसारी होते हुए भी असंसारी हूँ "बहुत खूब |
    आशा

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  27. '' ........और मैं एक बीज
    तुम्हारे दांतों के बीच फंसा हुआ !''
    'हमारी दुनिया' भी मार्मिक है ,
    संवेदना से भरपूर रूमानी और सुन्दर कविताए !

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  28. kai dino ke baad achhi kavitayen padhin..badhai..Arun ji

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  29. sabhi kavitaaye bhaut hi acchi hai... bhaut khub shabdo ka sarjan hai... apka abhaar...

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  30. सभी रचनाएं एक से बढ़कर एक ...आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  31. अगर मैं चाँद होता
    रौशनी के सहारे उतर आता हर रात तुम्हारे पास
    तुम्हारे चेहरे की आभा में धीरे धीरे घुलता हुआ..
    और कभी न होती अमावस
    kas ki kavitaye yu hi utarti jiwan me vi. bhut sunder arun mere pas shabad nahi hai. ye aag jalti rahe . suvkanaye

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  32. सुन्दर कवितायेँ ! वैराग्य कविता पर देर तक ठहरा रहा! शुभकामनाएं !
    ~ amrendra nath tripathi

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  33. इतनी टिप्पणी आ चुकी है कि मै क्या कहूँ। आपको साधुवाद। बेहतरीन रचनायें मिली पढ़ने के लिये।
    कम से कम मुझे एक अमरुद ही हो जाने दो
    की तुम जब उसे खाओ तो पाओ
    मीठा और स्वादिष्ट

    और मैं उसका एक बीज
    तुम्हारे दांतों के बीच फंसा हुआ

    अभी-अभी गाय के थन से लौटा हूं
    न संशय
    न आभार

    भगौने में उबल रही है बछड़े की प्यास

    बहुत सुन्दर!

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  34. बहुत अच्छी कविताएं... वैराग्य ने देर तक नहीं छोड़ा।
    अपर्णा.. आपका शुक्रिया। अरुण जी को कोटिश: बधाई।

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  35. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  36. बहुत शानदार और अभिव्यक्तिपूर्ण कविताएं .............शिल्प और वस्तु का जो समयोजन अरुण की कविताओं में आता है वही इन्हें ना सिर्फ अभिव्यक्ति और संवेदना के स्तर पर विस्तृत करता है बल्कि कविता को किसी सुंदर पेंटिंग में भी तब्दील कर देता है .........मैंने पहले भी कहा है मूर्त बिम्बो का इतना प्रखर कवि हिंदी की युवा कविता में दूसरा कोई भी नहीं है ..........कवि यथार्थ की नंगी तस्वीरे ऐसे उकेरते हुए जुटे हैं जैसे सौंदर्य जीवन में कही बचा ही नहीं हो ............फॉर्म और कंटेंट दोनों कविता की अर्थवत्ता कैसे बढ़ाते हैं अरुण देव की कवितायेँ इसकी गवाह हैं.....कविता सिर्फ बयान और वार्तालाप नहीं होती ........युवा कवि थोड़ा इस पर भी ध्यान दे तो युवा कविता इतनी दयनीय और बेचारी नहीं रहेगी ..........अपर्णा जी आपको बधाई ऐसी कविताओं से पाठकों को गुजारने के लिए......

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  37. शानदार ,लाजवाब ,भावपूर्ण अभिव्यक्ति |कविता अपने जीवन्ता के साथ मौजूद है |

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