मनीषा जैन ::

























एक स्पर्श प्रेम




तुम्हारी आँखों का स्पर्श..

लिपटता है देह से..

और मैं काँप जाती हूँ..

सोचती हूँ..

कितना अलग होता यूँ सिहरना प्रेम में..

जैसे गर्मी की अलसाई दोपहर में

थक कर लेटी नदी पर..

दरख्तों ने साज़िश कर..

एक किरण

और मुट्ठी भर हवा

बिखेर दी हो...!!


लिखती हूँ प्यार..
अनकहा





मैं कब लिखती हूँ प्यार..

यूँ मेरा प्यार लिख पाना

उतना ही मुश्किल..

जितना तुम्हारा उसे कह पाना..

उसे तो मैंने सुना था..

जब बहुत असहज हुए थे तुम..

उन अस्त व्यस्त से कुछ क्षणों में..

साहस किया था..

और चुरा लायी थी..

तुम्हारा अनकहा प्यार..

अब जब भी लिखने को होती हूँ..

तुम पास आ जाते हो..

धीरे से..कन्धों पर मेरे रख देते हो..

अपनी दोनों हथेलियाँ..

प्रतीक्षा करने लगते हो..

कब लिखूंगी..

तुम्हारा अनकहा प्यार..







प्रेम 


जब देह से परे मिली तुम्हें..

तुमने गहन स्वर में

आकाश थाम कर कहा

प्रेम..

और मेरा पूरा जीवन

एक मौन प्रार्थना हो गया..



तुम्हें सोचना अक्सर  यूँ 



तुम्हें सोचना अक्सर कुछ यूँ करता है..

आँखें उठा कर देखती हूँ..

तुम्हारे नाम का इन्द्रधनुष

खिंचने लगता है आकाश में..

किनारे बहकने लगते हैं

और उनींदी नदी..

आँखें खोल देती है..

आँगन के ज़रा और किनारे

आ लगती है धूप..

मैं पहन कर तुम्हारी खुशबू..

भीगने लगती हूँ..

तुम्हें सोचना मुझे हमेशा

वक़्त के फ्रेम में जड़ देता है.. 



तुम्हारी आवाज़





तुम्हारी आवाज़ के बियाबान में भटकते

कभी मांग नहीं पायी उन्मुक्त आकाश..

उस भटकन में स्वच्छंद रही..

जी लिया एक भरपूर प्यार..

और घूँट भर पी लिया

तुम्हारी आवाज़ का पंचामृत..




17 टिप्‍पणियां:

  1. एक स्पर्श प्रेम और नदी कविता आपस में मिल गयी क्या? प्रेम के स्पर्श में भी नही थक कर लेटी है

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना ...मन भर आया ... स्त्री कोमलता का प्रतीक और पुरुष....??? प्रेम को भी चुरा लेने की विवशता अंतर्मन को स्पर्श कर गयी.....नारी मन की कोमलता को अभिव्यक्त करने हेतु आपका कोटि कोटि अभिनन्दन....

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  3. और घूँट भर पी लिया

    तुम्हारी आवाज़ का पंचामृत...
    !!!!!!!!!!!!!!!
    lajawaab !!!

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  4. सुन्दर रचनाएँ ,
    जैसे कोई बात एक मौन में ठहर जाये ,
    फिर उस मौन में कुछ रेखाएं उभरें,
    और कुछ रंग-से बिखर जाएँ !

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  5. तुमने गहन स्वर में/आकाश थाम कर कहा/प्रेम../और मेरा पूरा जीवन/एक मौन प्रार्थना हो गया..
    कविताएं....प्रेम-प्रार्थना हो गयीं ....जैसे सहजता को ही व्यक्त कर दिया...शुभकामनाएं

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  6. Waqt tahar sa gaya tha padne me sristi, jyot; sab tahar gai in phulon ka ehsas karne men..

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  7. रचनायें मन की कोमलतम अनुभूतियों से ओत -प्रोत हैं ,बार -बार पढने का मन करता है ,
    कलम जैसे दिल की दीवारों पर प्रियतम का चित्र खींच कर उसे सामने बिठा देती है...

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  8. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (17-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  9. तुम्हारी आवाज़ के बियाबान में भटकते
    कभी मांग नहीं पायी उन्मुक्त आकाश..
    उस भटकन में स्वच्छंद रही..
    जी लिया एक भरपूर प्यार..
    और घूँट भर पी लिया
    तुम्हारी आवाज़ का पंचामृत.. वाह ...इस पंचामृत ...में कही तरह का रस जीवन का ....और ...पञ्च अमृत वेसे भी दीर्धायू का सूचक कही ....सो एक घूंट उस पल से जीवन बिताने का संकल्प ....बहुत कशमकश जीवन की !!!!!!!

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  10. ये अनंत गाथा है रिश्तों की जो सदियों से खामोश धडकते हैं. बात अनुभव की है इसलिये कोई तर्क नहीं चलता बस भीतर-भीतर एक अहसास बहता रहता है जो यहां शब्दों के कंपन में ढल गया है और बूंद-बूंद मन को भिगो रहा है..... बेहद खूबसूरत....

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  11. बहुत कोमल अहसासों को जड़ा है इन प्रेमपूरित कविताओं मे ..हर कविता मे प्यार की गहराई... सुन्दर रचनाएं मनीषा जी की ... अपरना जी धन्यवाद इन्हें हम तक पहचानें के लिए...

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  12. बहुत ही सुन्दर रचना...!
    आपका अभिनन्दन...!!

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  13. सारी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक ...खूबसूरती से उकेरे हैं एहसास

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  14. bhav/shabd syonjan aur prvah ke lihaj se ye kavitayen bahut akrshit karne wali hain

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