महेश वर्मा ::
























1
लड़की और गुलाब के फूल

उन दिनों हमने शायद ही यह शब्द कहा हो - प्यार ! हम कुछ भी कहते टिफिन, हवा , दवाई ,

शहर , पढ़ाई ..सुनाई देता प्यार . प्यार से हम नफरत करते , चिढते और एक दूजे को खत्म करते .

प्यार से हम इतना दुःख देते कि मुंह मोड लेती सिसकी लेती हवा . हमें वह प्यार सुनाई देता - हवा का

सिसकी लेना .

एक अभिशप्त भविष्य का हम चित्र रचते प्यार में और उसे ज़हर बुझे लिफाफों में एक दूसरे

को भेंट करते . एक ज़हरीला संगीत जो हवा में गूंजता रहता , हम उसको सबसे पहले सुन लेते - पर हमें

वह प्यार सुनाई देता .

हम जुदाई की मेहंदी रचाते न आने वाली रातों के सपनों में , एक जली हुई सड़क हमारे सामने

होती तो कहते थोड़ी दूर चल लेते हैं साथ .

हमें अलग अलग समयों में जन्म लेना था कहने से पेश्तर एक बार कह लेना था प्यार .

गुलाब के फूलों का ज़िक्र और लड़की आने से छूट गए कैसे नामालूम इस अफ़साने में .


2
गिरने के बारे में एक नोट ...
जैसे ही कोई स्वप्न देखता वह उसको देख लेती और हँसने लगती , अगर सपने में मैं होता तो उसको

देख लेता कि वह देखती है इस सपने को भी और उसका हिस्सा नहीं है , अलबत्ता उसके हँसने की

वजह मुझको साफ़ होती और बड़ी प्रामाणिक मालूम पड़ती कि अजीब ढंग के बिना नाप के कपडे

पहने हास्यास्पद जबकि अपने बारे में मेरा यह गर्व कि कपड़ों के चयन और सिलाई के मामले में

काफी सावधान और सुरुचिसम्पन्न व्यक्ति हूँ .

... तो मेरे सपना देखते ही वह उसको देख लेती और उसकी इच्छा होती तो उस सपने में आती भी .

अपने आने में लेकिन वह मुझसे बेपरवाह रहती . अपने सपने वह मुझसे छुपाकर रखती रात के कोटर

में नहीं अपने स्त्री होने के रहस्य के भीतर ..बल्कि मेरे सामने तो वह कभी सोती ही नहीं . जागती

रहती और दूर से देख लेती थके कदमों से आती हुई मेरी नींद को . नींद जब मेरे लिए आ रहती तो वह

और निरपेक्ष हो जाती , यह जानता हुआ भी कि मेरे देखते ही वह मेरे सपने देख लेगी , मैं सो रहता.

.. एक बार तो यह सोचता अपने सपने में कि अगर वह दिखाई देगी दूर से मेरे सपनों को देखती तो

मैं बाहर जाकर उससे पूछूँगा उसके सपनों के बारे में - मैं सपने से गिर भी गया था ..


3
किसी जगह

किसी भी वक्त तुम वहाँ से गुजरो-

तुम्हें मिलेगा धूप का एक कतरा

जो छूट गया था एक पुराने दिन की कच्ची सुबह से

और वहां गूंजता होगा एक चुंबन

बीतते जाते हैं बरस और

पुरानी जगहों पर ठिठका , रूका रहता है

समय का एक टुकड़ा

एक लंबे गलियारे के अंतिम छोर पर

हमेशा रखी मिलेगी एक धुंधली सांझ

और उसमें डूबता होगा एक चेहरा जो उसी समय

और उजला हो रहा था- तुम्हारी आत्मा के जल में

उतरती सीढ़ियों पर तुम्हें विदाई का दृश्य मिलेगा

जो ले जाता था अपने साथ

प्रतीक्षाओं का पारम्परिक अर्थ

कहीं और रखी होगी एक और सुबह

अनापेक्षित मिलन के औचक प्रकाश से चुंधियाई

और शायद इसी से शब्दहीन

किसी मौसम के सीने में शोक की तरह रखा होगा

कोई और कालखंड

और कितनी खाली जगह हमारा आंतरिक

जहां रखते हम ये ऋतुएँ,

ये बरस,

ये सुबह और

सांझ के पुराने दृश्य।


4
भूल

आम बात है प्रेम में शब्दों का भूल जाना

यहीं हम सीखते हैं विरामचिन्हों का महत्व , सुनते हुए

चुप की चीखती आवाज़

हमेशा हाथ लगता कोई ग़लत शब्द

आतुर उंगलियों से टटोलते ,

शब्दों के पुराने झोले को-प्रेम में

भूल जाते हम पुरातन शब्द और उतरन की मुद्राएँ

स्मृतियों के झुटपुटे में ऐसे ही रख छोड़ते, अस्त व्यस्त सी जगह पर

अटपटी भाषा और भंगिमाएँ प्रेम के समकाल की

वाक्य विन्यास और

शब्दों के सुन्दर चित्र भूल आए हम संसार की पुरानी मेज़ पर

और

भूल आये कोई थरथराता पुल - धूप में

व्यक्त भाषा के अंतरालों में बैठकर,

हंसते रहते प्रेम में भूले शब्द-

अवश भाषा की पगडंडियों पर जो उग आते
अनचीह्ने जंगली फूल -

इन्हें दोबारा नहीं देख पाएंगे।


5
मेरे पास

मेरे पास जो तुम्हारा ख़याल है

वह तुम्हारे होने का अतिक्रमण कर सकता है

एक चुप्पी जैसे चीरती निकल सकती हो कोलाहल का समुद्र

मैं एक जगह प्रतीक्षा में खड़ा रहा था

मैं एक बार सीढ़ियाँ चढ़कर वहाँ पहुंचा था

मैंने बेवजह मरने की सोची थी

मैंने एकबार एक फूल को और

एकबार एक तितली के पंख को ज़मीन से उठाया था

मैं दोपहरों से वैसा ही बेपरवाह रहा था जैसा रातों से

मैं रास्ते बनाता रहा था और

मैं रास्ते मिटाता रहा था - धूल में और ख़याल में

इन बेमतलब बातों के अंत पर आती रही थी शाम

तुम्हारा एक शब्द मेरे पास है

यह किसी भी रात का सीना भेद सकता है और

प्रार्थनाघरों को बेचैन कर सकता है

सिवाय अँधेरे के या गुलामी के पट्टे के

इसे किसी और चीज़ से नहीं बदलूँगा

इसे दोहराता हूँ

कि जैसे मांज के रखता हूँ चमकदार !



6
ढूढना-पाना

देह नहीं खोज रहे थे देह में

दुःख की जगहें तलाश रहे थे

एक दूसरे की

इसमें रुकावटें जो थीं

देह की नहीं थीं

एक हिचक थी पुराने किस्म की और भय था

बीच में रेत की नदियाँ थीं

जिनमें चमक आते थे तृष्णाओं के दृश्य

नेपथ्य में रोजमर्रा की आवाजें थीं

अगर संगीत था तो यही था

कुछ और आवाजें थीं जैसे रोशनी की तीखी किरनें कौन्धतीं

ये दुस्वप्नों की सलाखें थीं -

जागते नहीं थे डरकर सोते भी नहीं थे

इसी बीच में सबकुछ ढूँढना था

देह को नहीं ढूँढना था देह में

छुपी हुई जगहें तलाशनी थीं दुःख की .

14 टिप्‍पणियां:

  1. शब्दजाल यदि कम होता रचनायें ज्यादा सुन्दर होतीं...

    जवाब देंहटाएं
  2. एक अभिशप्त भविष्य का हम चित्र रचते प्यार में और उसे ज़हर बुझे लिफाफों में एक दूसरे

    को भेंट करते . एक ज़हरीला संगीत जो हवा में गूंजता रहता , हम उसको सबसे पहले सुन लेते - पर हमें

    वह प्यार सुनाई देता .

    बहुत सुंदर अनुभूति

    जवाब देंहटाएं
  3. और शायद इसी से शब्दहीन

    किसी मौसम के सीने में शोक की तरह रखा होगा

    कोई और कालखंड

    और कितनी खाली जगह हमारा आंतरिक

    जहां रखते हम ये ऋतुएँ,

    ये बरस,

    ये सुबह और

    सांझ के पुराने दृश्य।


    Wah....

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी रचनाएं समकालीन कविताओं के एक अलग धरातल पर व्यक्त होती है. एक नयापन एक ताजगी हर कविता में महसूस होती है. आपकी ज्यादातर कविताओं के कुछ शब्द, कुछ वाक्य पूरी कविता को साथ ले कर ज़हन में ठहर जाते हैं और ऐसा कविताओं की भीड़ में किसी और के साथ कम ही हो पा रहा है.
    इन शानदार कविताओं के लिये बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
    यहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके., हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
    मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (18-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  7. ..कमाल की लेखनी। ...ढूंढना पाना...सबसे अच्छा लगा।

    जवाब देंहटाएं
  8. wah...deh nahi khoj rahe the deh main dukh ki jagah talash rahe the....atisundar..........badhayi

    जवाब देंहटाएं
  9. कुछ अलग तरह की कवितायें मगर ताजगी से भरी हुई !

    जवाब देंहटाएं
  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  11. किसी भी वक्त तुम वहाँ से गुजरो-

    तुम्हें मिलेगा धूप का एक कतरा

    जो छूट गया था एक पुराने दिन की कच्ची सुबह से
    ....
    सभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं...कुछ पंक्तियाँ दिल को छू जाती हैं और मजबूर कर देती हैं लौटने को यादों के कोटर में..

    जवाब देंहटाएं
  12. आम बात है प्रेम में शब्दों का भूल जाना
    यहीं हम सीखते हैं विरामचिन्हों का महत्व , सुनते हुए
    चुप की चीखती आवाज़
    हमेशा हाथ लगता कोई ग़लत शब्द
    आतुर उंगलियों से टटोलते ,
    शब्दों के पुराने झोले को-प्रेम में...

    खूबसूरत! झील में झांकते सब हैं पर इतना साफ़ चेहरा कोई नहीं देख पाता.

    जवाब देंहटाएं