दूरी ::
तेरे मेरे बीच की दूरी को
यूँ पाटता क्यों है?
रहने दे न इसे
यूँ ही..
कि अगर
किनारे मिल गए
तो हमारे इश्क की नदी
कहाँ जाएगी
बता???
भरोसा ::
सबने चेताया था मुझे
उसकी उँगलियों में
गांठें हैं....
सब रेत की तरह
सरक जाया करता है
उसकी मुट्ठी से......
फिर भी मैं अपने सपने उसकी
हथेली में रख आई.
मुझे मालूम है-
उसके मन में गांठें नहीं हैं...
इसलिए वह मेरे सपने सम्हाल लेगा.....
"साथ" ::
महामिलन-
धरती और अम्बर का
पीड़ा और अनुभूति का
ममत्व और सामर्थ्य का
दीखता है दूर कहीं
धुंधलके में छिपी
क्षितिज की बारीक सी रेखा में
सोचती हूँ
यह प्रणया पृथ्वी
चिर तृषित
क्षुब्ध
समर्पिता....
और वह
प्रियतम आकाश
चिर अव्यय
मधुमय सा...
बातें तो करते हैं
आपस में
समर्पण की मौन भाषा में...
उसके आवेगों के सावन में
इसका प्लावित होना
इसकी पीड़ा की गर्द से
उसका ह्रदय पसीजना
यदि प्रतीक है
सच्चे प्रेम का
तो इनका मिलना
क्षितिज की सूक्ष्मता में पूर्ण कैसे?
पर शायद...
स्थूल नहीं होता
संबंधों की पूर्णता का पर्याय
मन के बंधे लोग
साथ साथ चल सकते हैं
समानांतर रेखाओं पर
नदी के दो किनारों की तरह
बातें करते
लहरों की ध्वनि प्रतिध्वनि में
सांस ले सकते हैं
युगों तक एकसाथ
धरती और आकाश की तरह....
सांध्य गीत ::
सिन्दूरी यह सांझ अकेली आयेगी जब
शब्द-शब्द में पंक्ति-पंक्ति में प्रणय गीत बन
कुछ रंग चुराकर उस से अपनी
चुनर लाल रंगूँगी; पिय तेरी राह तकूंगी
सुनो, अगर तुम आ न सको यदि आज सांझ तो
भेज गन्धवह के संग प्रीत संदेसा देना
सांझ सुनहरी के आँगन में झर बिखरे जो
बस पलाश की दो पंखुरियां भिजवा देना
आँखों में विश्वास सजाकर, हाथ जोड़कर
आज साँझ मंदिर में दीप जला आउंगी
और देव से मांग सुफल सौभाग्य तुम्हारा
वही पलाश की पंखुरियां बिखरा आउंगी
राधा :: (१)
वह, जो चला गया था
किसी गुरुतम उद्देश्य के लिए
मुझे छोड़,
उसके रंग-रस से
कितनी भरी-लसरी हूँ अबतक...
या रिक्त प्राण हूँ कितनी-
उसके बिना...
क्या ऐसा कुछ कह पाना संभव होगा
(क्या चुप रहना संभव होगा?)
आज अगर वह मिल जाये
तो क्या कहूँगी उस से...
राधा :: (२)
वह ज्ञाता है
जानता तो होगा
कि वक़्त ने किये होंगे ही
मेरी काया पर भी
दस्तखत अपने
फिर भी डरती हूँ अपनी परछाई देख....
अस्थि-मज्जा-रक्त की देह यह
कितनी बड़ी अड़चन है....ओह!
राह में
आज अगर वह मिल जाये
तो क्या पहचान लेगा मुझे...
राधा :: (३)
तुम चले गए कृष्ण !
लो मैं और लसर गयी तुममें...
अब इस यमुना की लहरों के बीच
खड़ी मैं...
भीतर श्याम छबि तुम्हारी
और बाहर श्यामल यमुना यह
(जैसे नदी में घट,
जल से भरा हुआ कोई)
मुझ सी बौरायी को
दूर कैसे करोगे खुदसे......
कैसे नकारोगे
मेरी जीवट तुच्छ व्यापकता?
इस फागुन ::
वह टेसू के फूल ले आयेगा
किसी आदिवासी प्रेमी युवक की तरह
जंगल की सी ध्वनी में सना
एक मुक्त गीत गायेगा - तुम्हारे लिए
तुम महावर लगे पैरों के अंगूठे से
धरती कुरेदते हुए
खड़ी रहना चुप
किसी अबोली प्रेम कविता की तरह
और मेहंदी से ललछांह हाथों को
ओड़ देना
उसके समक्ष
वह टेसू से फागुन लिखना चाहता है
देह से लेकर मन तक के सभी पन्नों पर
वह टेसू के फूल ले आयेगा
किसी आदिवासी प्रेमी युवक की तरह
जंगल की सी ध्वनी में सना
एक मुक्त गीत गायेगा - तुम्हारे लिए
तुम महावर लगे पैरों के अंगूठे से
धरती कुरेदते हुए
खड़ी रहना चुप
किसी अबोली प्रेम कविता की तरह
और मेहंदी से ललछांह हाथों को
ओड़ देना
उसके समक्ष
वह टेसू से फागुन लिखना चाहता है
देह से लेकर मन तक के सभी पन्नों पर
'मैं चाहती हूँ तुम्हे' ::
जाने कैसे
'मैं चाहती हूँ तुम्हे'
यह कहना भर
जोड़ देता है
मेरे मन को
तुम्हारी इच्छाओं से
मेरे हाथों की रेखाओं को
तुम्हारी हथेलियों से
मेरी देह को
तुम्हारी छाया से....
और पीपल के पत्ते सी
डोलने लगती है मेरी कायनात
जैसे डोलती है पृथ्वी
प्यासे आकाश के लिए
चषक में भरकर
अपने आंच की तराई....
बोलो
क्या तुम्हे भी इसी तरह
मेरी छुवन महसूस होती है
सिर्फ शब्दों में हुए प्रेम के उद्गार से...
क्या इसलिए
'मैं तुम्हे चाहती हूँ'
यह एक वाक्य
तुम बार बार सुनने की हठ करते हो?
'मैं चाहती हूँ तुम्हे'
यह कहना भर
जोड़ देता है
मेरे मन को
तुम्हारी इच्छाओं से
मेरे हाथों की रेखाओं को
तुम्हारी हथेलियों से
मेरी देह को
तुम्हारी छाया से....
और पीपल के पत्ते सी
डोलने लगती है मेरी कायनात
जैसे डोलती है पृथ्वी
प्यासे आकाश के लिए
चषक में भरकर
अपने आंच की तराई....
बोलो
क्या तुम्हे भी इसी तरह
मेरी छुवन महसूस होती है
सिर्फ शब्दों में हुए प्रेम के उद्गार से...
क्या इसलिए
'मैं तुम्हे चाहती हूँ'
यह एक वाक्य
तुम बार बार सुनने की हठ करते हो?
मुझे मालूम है-
जवाब देंहटाएंउसके मन में गांठें नहीं हैं...
इसलिए वह मेरे सपने सम्हाल लेगा
kamal hai... emotive and passionate.
BADHAI.
यूँ ही..
जवाब देंहटाएंकि अगर
किनारे मिल गए
तो हमारे इश्क की नदी
कहाँ जाएगी
बता??? यूँ ही..
कि अगर
किनारे
बता???
अद्भुत भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति !
सारी रचनाएँ बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंजया की अभिव्यक्ति और उस पर शब्दों का चयन, दोनों ही बेजोड़ हैं, आग्रह है की कविता पिरोने के अंतराल को जरा कम कर दें, शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएं'मैं तुम्हे चाहती हूँ'
जवाब देंहटाएंयह एक वाक्य
तुम बार बार सुनने की हठ करते हो?
ek pagal premi ke sabse priy shabd.........
bahut khub likha hai aapne.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्तियाँ , सब की सब - इश्क की नदी कहाँ जाएगी - बेहद मौलिक रचनाएँ. बधाई. लीना मल्होत्रा http://lee-mainekahablogspot.com/
जवाब देंहटाएंphir padhi . bahut achhi lagi. leena
जवाब देंहटाएंप्रेम कैसा तो सलोना सा शब्द है..और आपकी कवितायेँ झुरझुरी सी पैदा करती हैं..जया जी..शुभकामनायें..
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