अमित::




25 वर्षीय अमित गुजरात से हैं. निरमा, अहमदाबाद से उन्होंने कंप्यूटर साइंस में बी.. किया है और आजकल कैवल्य एज्यूकेशन फाउंडेशन में कार्यरत हैं. पेंटिंग और कविता को उन्होंने अपना घर बनाया है. फूल उनका अभिनन्दन करते हैं.
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वापस आने का रास्ता

फव्वारे के आस-पास पानी के निशान ही बचे थे

नाव एक तरफ उलटी पड़ी थी

उस तालाब के पास  वापस आया हूँ

पहले आते रहने का रास्ता देखता

कल आई बारिश का पानी वही पुराने खड्डो में भरा हुआ था

कुछ कचरे से भर गए थे कुछ नए बन रहे थे, नए लोग गए थे वहां

गली मे खड़ा उस खिड़की को देख रहा हूँ जहाँ से पहले इस जगह को देखता था

वहां परदे लग गए थे जिसपे अन्दर का चित्र साफ़ दिख रहा था

आगे बढ़ते ही वह केटली दिखी

वहां चाय के कप बढ़ गए थे, चाचा की दाढ़ी की तरह

उन्होंने अपनी फुर्सत से पहचान लेने की चाय पिलाई

एक अदृश्य घडी में काँटों के ऊपर बैठ एक चक्कर पूरा करने की आवाज अलग से सुनाई देने लगी  



एक अनिश्चित रेखा पर चलता हुआ आदमी
 

सड़क के बीच लगी पीली रोशनी जले हुए काफी समय हो गया था

सड़क से हट कर लोग अपने घरों में चले गए थे अँधेरे में

रस्ते का दरवाज़ा भी जैसे बंद हो गया था,

सन्नाटे ने कुण्डी लगा ली थी

एक अनिश्चित रेखा पर चलता हुआ आदमी वह

सन्नाटे की कुण्डी खोल अन्दर गया था, सड़क पर

कंधे पे झोला एक अंग की तरह लटक रहा था, और कुछ नहीं था पास में

किसी कोने की तलाश में वह देख रहा था

जहाँ बैठ कर  खोद सके एक खड्डा

तोड़ दे वह रेखा

और अँधेरे में

छिप जाए वहां कल सुबह तक



टूटे तारों वाली कुर्सी
 

चारों तरफ दीवार से घिरी एक जगह के कोने मे एक छोटा सा घर था

घर इतना छोटा था कि वह कुर्सी बाहर ही पाई जाती

खालीपन उस कुर्सी पे जैसे पैर गडाए बैठा था भूखा- प्यासा

पीछे दीवार पर लगी बेल के पत्ते सूख रहे हैं

कुर्सी पे गिरे पत्ते खालीपन की एक और सालगिरह मना रहे थे

कुछ दिनों से घर के बाहर एक हरे रंग की साड़ी सूख रही है

आज कल एक चिड़िया कुर्सी के ऊपर से आती जाती है

उसे टूटे हुए तारों को चोरी करते देखा गया है

दिवार पे लगी बेल में चमकने लगा है नए दिनों का घोंसला

 

भैंस को खींचकर ले जा रहा आदमी
 

उसका चेहरा झुका हुआ था

थका हुआ वह

कुछ उदास दीख रहा था

वह अपनी ही बनाई पगडण्डी पर एक काली भैंस को लिए जा रहा था

कह सकते हैं वह उसकी पगडण्डी थी, निजी

वहां अब घास उगने की कोई संभावना नहीं थी

और आस पास बची हरियाली पर भैंस की नज़र थी

भैंस खुद चल सकती थी पर वह आदमी उसे खींच रहा था

और रस्सी को कस कर पकडे हुए चल रहा था, पसीने में

खुद में भैस के वज़न को मिला के चल रहा था,

उसका सबसे छोटा लड़का पीछे पीछे रहा था, उछलता कूदता

पर उसे डांट कर भैस का ध्यान रखने को कह रहा था वह आदमी, बार बार

कभी चेहरा उठाके घर की दूरी नाप लेता था

और बनाने लगा वह भैंस रखने की जगह, घर में

आदमी की पत्नी ने भैंस को स्वीकार लिया था

भैस का आधा वज़न जैसे उसने ले लिया था

वह अब उस भैंस को रोज़ चराने ले जाती थी

हालांकि उसके पास और भी अनेक काम थे

कभी भैंस को छोड़ आती थी एक लम्बी रस्सी बांधकर

और बेफिक्र अपने काम मे लग जाती थी

कभी वह दूर से हरी घास लाती थी , घर में

घास के हरे रंग में

कभी-कभार उसके दुःख झिलमिलाते थे

रंगीन ओढ़ने को गर्दन तक खींच

खिला देती थी भैंस को वह

हरी घास


21 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर कवितायेँ .........बधाई

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  2. अमित की कविताओं में उनकी चित्रकला का गहरा असर दिखाई देता है... देखने का यह तरीका ही किसी कवि को अलग बनाता है... बधाई और शुभकामनाएं।

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  3. अपनी विषय वस्तु के साथ एक तटस्थ अलगाव के साथ लिखी यह कविताए सुन्दर है, ... चित्रमय कविताए ... कवि को बधाई! अपर्णा जी आभार, इन्हे साझा करने के लिये.

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    1. शुभकामनाएं. संभावनाओं से भरे हैं अमित. अहिन्दी भाषी क्षेत्र में रहकर हिंदी में इतनी अच्छी कविताएँ लिखना अपने आप में एक बड़ी बात है. एक चित्रकार की आखों से जैसे शब्द उतर रहे हों . बधाई आप दोनों को.

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  5. 'वहां चाय के कप बढ़ गए थे, चाचा की दाढ़ी की तरह',, बहुत अदभुत,, :)

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  6. पहचानी सी ज़िन्दगी है अमित की कविताओं में .... 'भैंस को खींच कर ले जा रहा आदमी 'कविता की हर पंक्ति एक पूरी कहानी है ..वैचारिक स्तर पर रचनाएं बहुत परिपक्व हैं .

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  7. अपने आसपास से लिए गए जीवन पैनी नजर रखते हुए उनमे निहित भावनाओं पर संवेदनाओं का सैलाब बिखेर दिया कि अब बाकी नहीं रहे वो गड्ढे ..बल्कि भावनाओ का तलब और दरिया बन् गया इन कविताओं में ... सुन्दर .. अपर्णा जी को धन्यवाद और अमित को बधाई

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  8. सुन्दर कवितायेँ अपर्णा दी, अमित को बधाई! दृश्यों को शब्दों के जरिये और भावों को दृश्यों के जरिये बुनने की कला से भरी संजीदा कवितायेँ पसंद आयीं।

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  9. बेहतरीन....। नए स्‍वरों में ताजगी है। ऑब्‍ज़र्वेशन के साथ शब्‍दों की पेंटिंग अच्‍छी की है....।

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  10. Amit ji ki observation power adbhut hai.Kavitaye padate huye lagata hai ki chitra dekh raha hun.Unhe bahut bahut bhadhai.......

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