सुमन केशरी:

































औरत रचती है एक वितान:


औरत रचती है एक वितान 
आकाश जितना अनंत 
उकेर देती है 
उसमें रेखाएं और चित्र 
गूंथ देती है उसमें कथाएँ और चित्र 

फिर वो सूरज की रश्मियों से बनी 
तूलिका से 
इन्द्रधनुष के रंगों को घोलती है 
बादलों के कटोरों में 
और रंग देती है पूरे चंदोवे को 

फिर वह 
सपनों के रुपहले -सुनहले 
डोरों के झूले में 
नीचे उतरती है 
धरती को रंगने अपने रंग में 

सूरज की किरण पर बैठ :
सूरज की किरण पर बैठ 
यात्रा पर निकली मैं 
पल भर में खुद सूरज हो गई 

चर-अचर के कोनों में झांकती 
कहीं थमक कर जा बैठेती 
तो कभी पहुँचते ही निकल भागती 
शाम होते-होते 
उस घर की मुंडेर पर जा बैठी 
जिसके आँगन के पश्चिम दिशा में
दीवाल से सटाकर रखे पलने में 
एक बच्चा खेल-खेल में 
मुंह में पाँव का अंगूठा 
देने की कोशिश में लगा था 

बच्चे की उस कोशिश में बंधकर 
मैं वहीँ थम कर रह गई 

मछली करती है प्रेम:

उसने कहा 
मछली 
करती है प्रेम पानी से 

मछली नहीं जानती प्रेम 
वह तो बस जीती है 
पानी में 
मरती है पानी में 

क्या तुमने 
पानी के बाहर 
कभी 
मछली को मछली -सा देखा है?


एक औरत को क्या चाहिए:

एक औरत को क्या चाहिए 
पात भर भात 
और अनुराग 
अपने प्रिय का 
फिर वह लांघ लेगी 
पूरी  पृथ्वी अविराम 
मथ कर रख देगी समुद्र को 
सूरज से आग ले 
जल लेगी चूल्हा 
बादलों को पतंग बना 
टांग देगी पेड़ों पर 
और चाँद उसके बच्चों का खिलौना बना 
दौड़ता रहेगा रात भर 

औरत को क्या चाहिए 
एक सच होता सपना प्रेम का 
और चुटकी भर विश्वास 
नमक सा ...

बूँदें:

बूँदें सब एक तरह से गिरती हैं 
ज़मीन पर 
चाहें वे जल की हों या लहू की 
पर लहू ज़मीन पर गिरने से पहले 
दौड़ता है देह में 
देह ज़मीन पर गिरने से पहले 
लहू की सहारा देती है 
उसी के रंग में रंग 
सुखा देती है उसे 
धारियों के रूप में 

पर हाँ 
देह भले ही सींचती हो लहू से 
सुना नहीं कभी कोई 
बीज लहू से सिंच 
अँखुआया हो 
फूला-फला हरियाया हो 


जिनकी मैं कृतज्ञ:

 

आज यह कहने का सबसे अच्छा मौका है

अश्रुपूरित नयनों से 

इनकी मैं क़तज्ञः

ओम्

माता-पिता
गुरू
पुरू
ऋत्विक-ऋतंभरा
जीजी
बहनें
मित्र
अमित्र
चचेरे-ममेरे मुँहबोले भाई
सहयोगी
साथी

और उनकी जिनके मन-आँखों  में मैं किरकिरी सी चुभती हूँ

आप सबको प्रणाम...

मैं जो हूँ आप ही लोगों के कारण हूँ....

                MF Hussain

17 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद खूबसूरत कविताएँ....

    अनु

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  2. सभी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक, सरल शब्द संयोजन, सुंदर भाव।

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  3. stri man ka marma jitne achchhe se aap samjhati hain,utne hi sunder sabd bhi de leti hain.anuthhi lagi kavitayen aapki.kalawanti,ranchi

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  4. कलावंती जी आपने सच में बड़ी बाक कह डाली...कोशिश रहेगी कि आपके मानदंडों पर खरी उतरूँ ागे भी.

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  5. यदि हम खालिस पुरुष होते तो कितने खोखले होते | इसलिए हम आभारी है उस प्रकृति के , जिसने हम सबके भीतर थोड़ी-थोड़ी स्त्री बख्शकर हमें वजन दे दिया | काश ...! हम पुरुष इस अनमोल नेमत को समझ पाते | आपकी कवितायें हमारे भीतर के उसी संवेदनशील स्त्री मन को छूती हैं , जिससे हम आदमी बनते हैं | बहुत बधाई आपको | और हां....जन्मदिन की अशेष शुभकामनाएं |

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    1. राम जी आपने इतनी मार्मिक बात कही है कि लिखना सार्थक हो गया...अब मैं फिर लिखूंगी....आप लोगों की शुभकामनाएँ मेरे रचनाशील मन में उर्वरकों का काम करे...ऐसी कामना है...कितनी गहरी बात कही आपने...वाह

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  6. एक औरत को क्या चाहिए ...प्रेम और एक चुटकी विश्वास ...ओह बहुत प्यारी लगी यह बात .. प्रेम मे मछली का यह रूप भी मन को छू गया ... और औरत खींचती है वितान .. इस वितान को औरत कितना भी सुन्दर बना दे और दूर तक ब्रह्मांड मे कही भी घूम आये पर एक बच्चे के लिए वह रुक जाति है,ठहर जाती है यही तो उसके औरत होने की सबसे बड़ी पहचान है... सुमन जी की रचनाएं मन को प्रभावित करती है ..शुक्रिया अपर्णा दी इन्हें इस ब्लॉग के माध्यम से पाठकों तक पहुँचाया आपने .. सादर

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    1. नूतन...बहुत अच्छी तरह पढ़ी आपने कविताएं..मन को छू गई अपकी टिप्पणी...कवि के तौर पर आप सा पाठक पाना मेरा सौभाग्य ही है.

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  7. वाह.....वाह....वाह............,
    कुछ कहने को अब रहा नही,
    भाव कुछ ऐसा बहा यहीं,
    क्या मैं कह दूँ जो अलग लगे,
    और मन में सबके अलख जगे।

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    1. कुछ तो कहें जो अलग लगे
      सबके मन में अलख जगे..
      शुक्रिया राजेन्द्र जी

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