विमल कुमार ::

















प्रेम क्या है?


प्रेम
दूसरे को जानना भी है
ख़ुद को पहचानना भी है
ग़लत को गलत
सही को सही
मानना भी है

प्रेम गुसलखाने में
गाना भी है
नहाना भी है
किसी को अपने घर
खाने पर बुलाना भी है
किसी का दुःख-दर्द सुनना
और अपना बताना भी है

प्रेम
अपना हाथ देकर
किसी को उठाना भी है
कांटे हों कहीं
तो उसे निकालना भी है
पत्थर है कोई रास्ते में
तो उसे हटाना भी है

प्रेम
अगर मान-मनौव्वल है
तो कुछ
उलाहना भी है

प्रेम
जिंदगी भर का हिसाब है
जोड़कर
उसमें कुछ घटाना भी है

प्रेम जितना जताना भी है
उतना छिपाना भी है

प्रेम में आंसू बहाना भी है
मुस्कराना भी है.


शब्दों का ताजमहल 

मैं शाहजहां नहीं हूं
नहीं है मेरे पास
इतनी धन-दौलत
हूं एक क्लर्क मामूली-सा
सौभाग्य से है मेरे पास
कुछ शब्द
और मैं करता हूं
कुछ काग़ज़ भी काला
मैं शब्दों का एक ताज़महल
बनाना चाहता हूं
तुम्हारे लिए
मुझे डर है और इसलिए माफ करना मुझे
कहीं मैं अपनी जिंदगी में अगर
तुम्हारे लिए
शब्दो की एक टूटी हुई
मस्जिद भी नहीं बना पाया तो तुम कितना हंसोगी
मेरे प्रेम पर
क्या तुम घर के ड्राइंगरूम में
रखोगी मेरे इस ताज़महल को
या
टूटी हुई मस्ज़िद को
जिसको लेकर काफ़ी मुकदमा भी चले
मुल्क़ में
और ख़ून-खराबे भी हुए हैं


अधूरा प्यार

कर रहा हूं
तुमसे अब तक मैं
अधूरा प्यार
नहीं जान पाया हूं
तुम्हें पूरा
अभी तो मैं
नहीं जान पाया हूं
ख़ुद को
मरने के ठीक पहले
शायद मैं कह पाऊंगा
तुम्हें कितना जान पाया
कितना तुम्हें कर पाया
प्यार
पर चाहता तो मैं हमेश था
करना पूरा प्यार
जानना तुम्हें पूरा का पूरा
लेकिन कभी भी किसी को
पूरी तरह नहीं जान सकता
कोई चीज़ नहीं होती पूरी
इसलिए मैं करता रहूंगा
तुमसे मैं हमेशा अधूरा प्यार.


अपरिवर्तित प्रेम

तुमने भी मुझसे कहा था
एक दिन
मुझे प्यार करो
तो उसी रूप में
जिस रूप में
मैं हूं
अपरिवर्तित
मुझे प्यार करो
लहरों में फंसी मेरी नाव को भी प्यार करो
उस तूफान से भी
जिसमें घिरी हूं मैं

प्यार में यह न कहो
कि मैं अपना रंग
और गंध और अपनी भाषा बदल लूं
तुम्हारे लिए
बदल दूं
अपना नजरिया
अपनी दृष्टि

तुम प्यार करो
मेरी सीमाओं से
प्यार करो
मेरी कमजोरियों से

न कहो
कि मैं अपनी रेखाओं को मिटा दूं
मिटा दूं
अपने पांचों के निशान

प्यार करो
तो मेरे दुख से भी
प्यार करो

केवल सपनों और
उम्मीदों से न करो
करो मुझसे प्यार
संपूर्णता में करो

मुझे मेरे वक्त से
काटकर
काटकर मेरे अतीत से
भविष्य से
प्यार नहीं करो

करो,
तो जरा सोच समझकर
करो,
इतनी जल्दबाजी
हड़बड़ी
और भावुकता में
प्यार नहीं करो

  
शव से प्रेम
  
मैं जानता हूं
एक ऐसी औरत को
जो करती है शव से ही प्यार
चूमती है उसके होठों को
बालों को सहलाती है
भरती है उसे अपनी बांहों में
लिखती है उसे खत भी
भेजती है आसमान के पते पर
मैंने उससे कहा
अब तुम क्यों करती हो
उस शव से प्यार
जीते जी तुमने नहीं किया
जबकि वह मर गया
तुमसे प्यार की भीख मांगता हुआ
घुट-घुट कर
उसने सिसकते हुए कहा
मैं केवल शव से
करती हूं इसलिए प्यार
मुर्दे कभी मर्द की तरह नहीं देते धोखा .




मैं तुम्हे मरने नहीं दूंगा, देवी!

मैं जानता हूं
तुम हर रात थोड़ा  मर जाती हो
मैं तुम्हारे सीने पर हाथ रखकर
तुम्हारे सपनों को अपनी बांहो में लेकर
तुम्हें जिंदा करने की कोशिश करता हूं

मैं यह भी जानता हूं
तुम समुद्र की लहरों के साथ हर रोज थोड़ा डूब जाती हो
एक नाव लिए तुम्हे खोजता रहता हूं
पानी की सतह पर
फिर डुबकी लगाकर समुद्र के भीतर भी

मैं जानता हूं तुम शाम होते ही थोड़ा उदास हो जाती हो
आसमान पर बिखर जाता है
रंगों की तरह तुम्हारा दुख
मैं तुम्हारे दुख को अपनी हथेलियों में छिपाकर
अंधेरे में भागता रहता हूं मैं
चिल्लाता हुआ
पुकारता हुआ तुम्हें
मैं जानता हूं तुम शेरनी  की तरह
घायल हो जाती हो
जंगल में काम करते -करते
मैं तुम्हारे घाव पोंछता हूं
तुम्हारे खून में अपना खून ढूंढ़ता  हूं

मैं हर सुबह काम पर निकलता हूं
रात में थकाहारा लौटता हूं
मुझे पांच महीने से तनख्वाह नहीं मिली है
पर मैं तुम्हे किसी कीमत पर मरने नहीं दूंगा
नहीं दूंगा तुम्हे डूबने लहरों के साथ
न उदास होने दूंगा
न घायल होने

मैं तुम्हे अपनी सांस में से
कुछ सांस दूंगा
अपने सपनों में से
कुछ सपने
अपनी उम्मीदों में से
कुछ उम्मीदें निकालकर

मैं जानता हूं
मुझे अपने जीने के लिए
तुम्हारा जिंदा रहना कितना जरूरी है मेरे लिए
घबराओ नहीं
मैं तुम्हे मरने नहीं दूंगा, देवी!
इस बुरे वक्त में

7 टिप्‍पणियां:

  1. समस्त कविताएँ दिल को छू गईं. खास कर 'अधूरा प्यार', 'अपरिवर्तित प्रेम' और 'मैं तुम्हे मरने नहीं दूंगा, देवी!' बेहद ही अच्छी लगीं...साधुवाद श्री विमल कुमार जी ! इतनी भावागार्भित कविताएँ हम तक पहुँचाने हेतु अपर्णा जी को कोटि-कोटि धन्यवाद और आभार !

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  2. पूर्ण समर्पण असाध्य है क्योंकि इसके खतरे हैं !
    एक सामाजिक व्यावहारिकता निभाने को विवश व्यक्ति
    पूर्ण प्रेम में आत्म-विसर्जन कैसे कर सकता है ! संभवतः
    इसी लिए इन कविताओं में सीमित सामर्थ्य के व्यक्ति का
    सीमित प्रेम ,पीड़ा की झलक के साथ दिखाई देता है !
    कवितायेँ सुन्दरता से लिखी हैं !

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  3. प्रेम
    अगर मान-मनौव्वल है
    तो कुछ
    उलाहना भी है
    !!!!!!!!!!
    lajawab !!!

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  4. कोई चीज़ नहीं होती पूरी
    इसलिए मैं करता रहूंगा
    तुमसे मैं हमेशा अधूरा प्यार.

    प्रेम की पूर्णता को भी चिन्हित कर दिया आपकी इन पंक्तियों ने ...सभी रचनाये बहुत अच्छी लगी ,शुभकामनाये

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  5. bahut sundar.sari kavitaayen prem pr kendrit hai....sbhi me prem dikhta hai..........aapne inke maadhyam se hr kisi k bhitar k prem ki baat ki hai.........bada hi sahaj bhaao hai inme.........

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  6. Bhut jvant kavitaen, thik vaise hi jaise tamam pratikulataon k duniya me PREM! Anoupacharik BADHAI...

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  7. बहुत ही सुन्दर कविताएँ ... प्रेम की परिभाषा जो पहली कविता में थी, से मैं तुम्हें मरने नहीं दूंगा देवी तक ... अपर्णा दीदी इन कवितों के लिए धन्यवाद ..

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