कुछ कविताएं
मलयज, शमशेरजी, निर्मल वर्मा और नवीन सागर की याद को समर्पित
1
बड़ी- बी और अली मियाँ
एक दिन की बात है
कि कहानी है
बड़ी-बी इस उम्र में
लगा रही आँखों में सुरमा
पाँवों में महावर
मेंहदी हाथों में
अली मियाँ पहन रहे शेरवानी
बरसों सहेजी कशीदे की टोपी
तेल पी जूतियाँ
हाथ में सौदे का थैला पुराना
एक दिन की बात है
कि कहानी है
दोनों ने देखे
दो जनाजे
2
बड़ी-बी
बड़ी-बी दरवाजा खोलो
तुम्हारा पान
घुँघरू, खत लाने में हुई मुझसे देरी बहुत
'हम नहीं जानते तुम कौन हो
बड़ी-बी हाथ में खत लिये
मुंँह में पान चबाए
छमछम करती दहलीज पर आ
हैरान थी
'हमने अपने मरने का दिन तय कर रखा था
हमने समझा वह आ गया है
कहती बड़ी-बी मेरी आँखों में झांक रही थी
'ठीक है गडढा ठीक ही खुदा है
कहती वे उतरीं और एक मुट्ठी मिट्टी
हमें दे गयीं
3
अली मियाँ::
सीढियों पर चिड़िया के पंख
सूखी हड्डियाँ
लम्बी तानें
इस कदर निश्चल
जैसे
अली मियाँ आने को है
अपनी पतंग पर इन सबको
जगह देने को है
फिर सूखे तालाब में
उड़ाएंगे पतंग
और खुद कट जाएँगे
4
फ्रेम::
दीवार कोई फ्रेम है
जिसमें रंग छोड़ चुकी तस्वीर वाले आदमी की
पीठ का निशान
नहीं मगर गिर कर टूटे
आईने की किसी किरच की स्मृति
हम जो देखते हैं
हमारी पीठ को जो देखते हैं
वहाँ का फ्रेम टूटा उतना नहीं
जितना धुँधला गया है
हम दीवारों पर अँगुलियाँ फिराते
हमारी पीठ पर कैसी सिहरन होती
और जो दीवार के उस पार खड़ा है
क्या ठीक-ठीक वही है
जो कभी था तस्वीर में
उसकी पीठ पीछे फिर कोई दीवार
जहाँ किसी की पीठ का निशान
पूरा घर कोई अन्तहीन आइनों का सिलसिला
जिस पर आती जाती ठिठकती हवाएँ
शहर में नहीं अब कोई दुकान
दुकान फ्रेम हो
बिखर गयी
5
धुँए में कंधा::
सपने में वह फोन पर
बता रहा होगा
अपना अधूरा रह गया सपना
उसकी आवाज
दरांती से मेरे सपनों को
काट रही होगी
जब मैं कहूँगा
कल आधी रात बाद
अपने रो पड़ने की बात
तब वह किसी विक्रम-सा
मुझे किसी वैताल-सा कंधे पर लादे
धुँए में विलीन होता
दिखायी देगा।
6
अंतिम बार::
बरसों से सूखे
कंठ के कुए में
कोई तस्वीर धुँधली सी
है फड़फड़ाती
किसी दिन
नहीं होगी
यह भी
तब क्या मुझे ही
अंतिम बार
कूदना होगा
7
कभी कोई था::
फिर यह हुआ
साँस आखिरी
चढ़ गयी
सीढ़ी एक और
छत बन गयी
मृत होना था जहाँ मुझे
थी चारदीवारी
जाना था जिस मार्ग
कतरन सा वह अब
था लिपटा
गले आँखों पर
थी जल्दी तुम्हे
तुम गए
आकाश बताते छत को
मुझे बुलाते
कभी कोई था बीच हमारे
नहीं माना हमने
कहता है अब
था धोखा वह
ठोस
आखिरी साँस आ गयी
थम गयी
चित्र :अमृता शेरगिल
मलयज, शमशेरजी, निर्मल वर्मा और नवीन सागर की याद को समर्पित
1
बड़ी- बी और अली मियाँ
एक दिन की बात है
कि कहानी है
बड़ी-बी इस उम्र में
लगा रही आँखों में सुरमा
पाँवों में महावर
मेंहदी हाथों में
अली मियाँ पहन रहे शेरवानी
बरसों सहेजी कशीदे की टोपी
तेल पी जूतियाँ
हाथ में सौदे का थैला पुराना
एक दिन की बात है
कि कहानी है
दोनों ने देखे
दो जनाजे
2
बड़ी-बी
बड़ी-बी दरवाजा खोलो
तुम्हारा पान
घुँघरू, खत लाने में हुई मुझसे देरी बहुत
'हम नहीं जानते तुम कौन हो
बड़ी-बी हाथ में खत लिये
मुंँह में पान चबाए
छमछम करती दहलीज पर आ
हैरान थी
'हमने अपने मरने का दिन तय कर रखा था
हमने समझा वह आ गया है
कहती बड़ी-बी मेरी आँखों में झांक रही थी
'ठीक है गडढा ठीक ही खुदा है
कहती वे उतरीं और एक मुट्ठी मिट्टी
हमें दे गयीं
3
अली मियाँ::
सीढियों पर चिड़िया के पंख
सूखी हड्डियाँ
लम्बी तानें
इस कदर निश्चल
जैसे
अली मियाँ आने को है
अपनी पतंग पर इन सबको
जगह देने को है
फिर सूखे तालाब में
उड़ाएंगे पतंग
और खुद कट जाएँगे
4
फ्रेम::
दीवार कोई फ्रेम है
जिसमें रंग छोड़ चुकी तस्वीर वाले आदमी की
पीठ का निशान
नहीं मगर गिर कर टूटे
आईने की किसी किरच की स्मृति
हम जो देखते हैं
हमारी पीठ को जो देखते हैं
वहाँ का फ्रेम टूटा उतना नहीं
जितना धुँधला गया है
हम दीवारों पर अँगुलियाँ फिराते
हमारी पीठ पर कैसी सिहरन होती
और जो दीवार के उस पार खड़ा है
क्या ठीक-ठीक वही है
जो कभी था तस्वीर में
उसकी पीठ पीछे फिर कोई दीवार
जहाँ किसी की पीठ का निशान
पूरा घर कोई अन्तहीन आइनों का सिलसिला
जिस पर आती जाती ठिठकती हवाएँ
शहर में नहीं अब कोई दुकान
दुकान फ्रेम हो
बिखर गयी
5
धुँए में कंधा::
सपने में वह फोन पर
बता रहा होगा
अपना अधूरा रह गया सपना
उसकी आवाज
दरांती से मेरे सपनों को
काट रही होगी
जब मैं कहूँगा
कल आधी रात बाद
अपने रो पड़ने की बात
तब वह किसी विक्रम-सा
मुझे किसी वैताल-सा कंधे पर लादे
धुँए में विलीन होता
दिखायी देगा।
6
अंतिम बार::
बरसों से सूखे
कंठ के कुए में
कोई तस्वीर धुँधली सी
है फड़फड़ाती
किसी दिन
नहीं होगी
यह भी
तब क्या मुझे ही
अंतिम बार
कूदना होगा
7
कभी कोई था::
फिर यह हुआ
साँस आखिरी
चढ़ गयी
सीढ़ी एक और
छत बन गयी
मृत होना था जहाँ मुझे
थी चारदीवारी
जाना था जिस मार्ग
कतरन सा वह अब
था लिपटा
गले आँखों पर
थी जल्दी तुम्हे
तुम गए
आकाश बताते छत को
मुझे बुलाते
कभी कोई था बीच हमारे
नहीं माना हमने
कहता है अब
था धोखा वह
ठोस
आखिरी साँस आ गयी
थम गयी
चित्र :अमृता शेरगिल
'' आईने की किसी किरच की स्मृति.. '' बड़ी बी और अली मियां को पढ़कर जेहन में यह ख्याल तो आया मेरे कि स्मृतियों की तह की हुई कई परतें मौजूद हैं कवि के अंतर्मन में जो बाहर आना चाहती हैं तो उसे अनिरुद्ध नितांत अपनेपने से बाहर आने देते हैं.. यह प्रयोग मेरे जैसे पाठक को बारी बारी करने के लिए पर्याप्त है.. ''एक दिन की बात है / कि कहानी है ''... ऐसा कहने में दशकों का सम्बन्ध अपनी आँखों में उतार लाये होंगे श्री अनिरुद्ध -- ''ठीक है गडढा ठीक ही खुदा है../ कहती वे उतरीं और एक मुट्ठी मिट्टी / हमें दे गयीं ''.. सभी कवितायें कोमलता से कही गयीं हैं और ठहरकर भावुकता से पढ़े जाने की मांग करती हैं.. फूलों पर भी श्री अनिरुद्ध का स्वागत..
जवाब देंहटाएंअनिरुद्ध उमट ji, bahut sunder. seene ko bedhatee ye kavitayen padh kar man bahut kuchh sochane par aatur hai.
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