मरीना स्वेतायेवा की कविताएँ
माथे पर चुम्बन ::
माथे पर एक चुम्बन -- पोंछ देता है दुर्भाग्य
मैं चूमती हूँ तुम्हारा माथा.
आँखों पर एक चुम्बन -- हर लेता है अनिद्रा.
मैं चूमती हूँ तुम्हारी आँखें.
होंठों पर एक चुम्बन -- बुझा देता है सबसे गहरी प्यास.
मैं चूमती हूँ तुम्हारे होंठ.
माथे पर एक चुम्बन -- मिटा देता है स्मृति.
मैं चूमती हूँ तुम्हारा माथा.
1917
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धीमी है मेरे क़दमों की आहट ::
धीमी है मेरे क़दमों की आहट
-- निशानी साफ़ अंतरात्मा की --
धीमी है मेरे क़दमों की आहट,
मेरे गीत -- कानफोड़ू --
इतनी बड़ी इस दुनिया में
अकेला रखा ईश्वर ने मुझे.
-- कोई स्त्री नहीं, एक चिड़िया हो तुम,
उड़ो बहुत ऊंचे
उड़ो और गाओ.
1918
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तुमने मुझसे प्यार किया ::
तुमने मुझसे प्यार किया. और तुम्हारे झूठों में अपनी अलग सच्चाई थी.
एक सच हुआ करता था हर झूठ में.
तुम्हारा प्यार आगे निकल गया
हर संभव सीमा से, जहां तक नहीं पहुँच पाया था और किसी का प्यार.जान पड़ता था. अब तुम अपने हाथ हिला रहे हो --
अचानक तुम्हारा प्यार ख़त्म हो गया है मेरे लिए !
यही सच है पांच शब्दों में.
1923
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केवल एक सूरज है ::
केवल एक सूरज है - मगर यह हर रोज सैर करता है पूरी दुनिया की.
यह सूरज पूरा का पूरा मेरा है और मैं इसे किसी को नहीं देने वाली.
एक घंटे की भी गर्माहट नहीं लेने दूंगी किसी को, रोशनी की एक किरण भी नहीं !
शहरों को नष्ट हो जाने दूंगी निरंतर, न बदलने वाली रात से.
उसे थाम लूंगी अपने हाथों में जब तक कि वह घूमना बंद न कर दे !
मेरे हाथ, होंठ और दिल जल भी जाएं तो परवाह नहीं !
उसे गायब हो जाने दो अँधेरे में, और मैं दौडती रहूंगी उसके पीछे-पीछे...
मेरे प्रिय, मेरे सूर्य ! मैं तुम्हें कभी किसी को नहीं देने वाली !
1919
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केवल एक सूरज है - मगर यह हर रोज सैर करता है पूरी दुनिया की.
जवाब देंहटाएंयह सूरज पूरा का पूरा मेरा है और मैं इसे किसी को नहीं देने वाली.
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!लाजवाब !!!!
बड़ी गहराई है मरीना की इन कविताओं में ! मनुष्यता के स्तर पर तमाम दुर्घटनाओं के बा-वजूद जीवन की ललक दिखाई देती है !
जवाब देंहटाएंमनोज ने विश्व कविता को हमारे बहुत निकट कर दिया है... हिंदी में वे एक उपलब्धि हैं... बधाई आप दोनों को.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचनायें।
जवाब देंहटाएंमैं इन दिनों मरीना की कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ रही हूँ . यहाँ जो कवितायेँ मिलीं उनमें से कुछ एक से तो कल ही हो के गुजरी हूँ ! बहुर सुन्दर हैं . मनोज जी बहुत बढ़िया काम कर रहे हैं .
जवाब देंहटाएं-आभार
मनोज द्वारा अनूदित विश्व कविता पढ़कर कभी लगा ही नहीं कि वे अनुवाद हैं। मेरे खयाल से वे हिंदी के सूत्र को ग्लोबल फैलाव दे रहे हैं। यह एक epic-strive है जिसके लिए उनके अथक प्रयास की जितनी भी सराहना की जाय वह कम है।
जवाब देंहटाएंऊपर कितनी सुंदर-सुंदर कविताएं लगी हैं। माथे पर चुंबन पढ़िए कितनी सरल और सीधी कामनाएं हैं। प्रार्थना की पंक्तियां भी इतने आशीषों से समृद्ध नहीं होतीं। मरीना स्वेतायेवा की कविता को हिंदी-मानस के साथ अनुकूलित करने का काम जिस अनुवाद से मनोज ने किया है वह देखने लायक ही नहीं गुनने लायक भी है। कहीं कोई अधिभार नहीं;कोई स्फीति नहीं;कोई deficit भी नहीं। धन्यवाद मनोज जी।
अपर्णा जी को ढेरों बधाई। वे यशस्वी हों-दिल से कामना है। एक निवेदन उनसे कि विदेशी कवि-लेखकों का थोड़ा परिचय भी दें ताकि पाठकों को उनके देश का पता चले। कविता जिस ज़मीन पर लिखी जाती है उसकी महक अक्सर कविताओं में अनुस्यूत रहती है। अपर्णा जी धन्यवाद!!!
Sushil
मनोज जी के द्वारा किये गए विश्वस्तर पर उभरे चुनिन्दा कवितज्ञो की कविताओं का अनुवाद .. बहुत ही अच्छी लगती रही... कविताएँ भी एक से बद कर एक... यहाँ पर अपर्णा दी द्वारा साझा की गयी मरीना की कविताओं के अद्भुत संकलन ... "माथे पर चुम्बन" और "केवल एक सूरज" बहुत अच्छी लगी..
जवाब देंहटाएंmarin ki kavitaaye bejod hain aur manoj ji ne bahut sundar anuvad kiya hai..
जवाब देंहटाएंएक घंटे की भी गर्माहट नहीं लेने दूंगी किसी को, रोशनी की एक किरण भी नहीं ! vaah..
उम्दा विश्व साहित्य को हमारे लिये उपलब्ध करवाने का बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंshukriya manoj ji!
जवाब देंहटाएंमरीना कि कविता जहाँ से शुरू होती है वहीँ पाठक का हाथ अपने हाथ में थाम ले जाती है अपने साथ. माथे का दुर्भाग्य सचमुच उसके चुम्बन से मिट जाता है .
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