अशोक
कुमार पाण्डेय विचारधारा के साथ कविता साधने वाले कवि हैं. अशोक कविता के
ऐसे बुनकर हैं जो जीवन के सूत से संवेदना बुनते हैं; कुछ ऐसे कि
चप्पा-चप्पा चरखा चले.अमूर्तन यहाँ नहीं है.कवि के सरोकार उदासियों में
उम्मीदें गढ़ते हैं और उन्हें विशिष्ट बनाते हैं.
यातनाओं और समय से लड़ते कवि के स्वर
अचानक कहीं प्रेम पर रुकते हैं,फिर अहिस्ता चलते हैं और पुरानी डायरी से
नीला समंदर आवेग से ऊपर उठ जाता है,लेकिन लौटना फिर उसी जीवन में होता है
जहाँ युयुत्सु जिजीविषा संघर्षरत है.
तुम
साथ हो तो ज़िंदा हैं ख्वाहिशें
सफ़र की
(एक)
आहिस्ता चलो
आहिस्ता चलो
घुटने
आँखें नहीं होते
कि
उम्र के साथ बढती जाय उनकी नमी
चलो,
एक और सफ़र
पर चलते हैं आज की रात
मैं
थामता हूँ तुम्हारी उंगलियाँ,
तुम मेरी
निगाहें थाम लो
कन्धों
पर लाद ली है मैंने तुम्हारे
हिस्से की उत्कंठा
तुम
अपने कन्धों पर मेरे हिस्से
का उल्लास लाद लो
पहन
लो मेरा भरोसा चप्पलों की तरह
मैंने
ओढ़ ली है तुम्हारे प्रेम की
शाल
चलो,
किसी समुद्र
की रेत पर चलते हैं थोड़ी दूर
लौटते
हुए लिए चलेंगे अपने निशाँ
यादों
का बक्सा लौटते ही मांगेगा
उपहार
आज
तुम मत सुनाना अपने दफ्तर के
किस्से
मैं
अपनी कोई कविता नहीं सुनाऊंगा
... वादा
बिटिया
के पुराने दस्ताने निकाल लो
उस बक्से में से
मैंने
रख ली है उसकी एक पुरानी बांसुरी
चलो,
वहां से थोड़ी
ठंढ और थोड़े सुर लिए लौटेंगे
चलो,
हम बातें
करेंगे उन दिनों की जब प्रेम
था और हम नहीं थे
हम
अपने प्रेम के किस्से सुनायेंगे
चाँद समेटने आई सीपियों को
हम
मछलियों को अपने अपने आंसुओं
का नमक दे आयेंगे
लहरों
के लिए रख लो थोड़े से सपने,
देखो अब भी
पड़े होंगे किसी दराज में
चलो,
आहिस्ता
चलो
लेकिन
थोड़ा जल्दी
देखो
माथे पर चढ़ आया हैं चाँद
और
सुबह तक लौट आना है हमें.
(Vladimir Tretchikoff)
(दो)
तुम्हारे
बालों में कुछ हंस उतर आये हैं
उत्तर दिशा के
मेरे
बालों के बीच उगी वीरानी को
मोतियों से भर दो
आओ
आज पढ़ें चेहरों पर उग आईं
अजानी
लिपि में लिखी उम्र की इबारतें
पुरानी
कोई डायरी निकाल लाओ
या
मैं ढूंढता हूँ प्रेमपत्रों
की पोटली
तुमने
रख तो दी थी न संभाल के?
घर
का हिसाब रख दो एक ओर
खर्च
की चिंताएं किसी किताब के बीच
छिपा रख दो आलमारी में बहुत
ऊपर
पिता
की सारी दवाएं ला कर रख दी हैं
बिटिया
की फीस जमा कर दी है इस महीने
भी वक़्त पर
सब
हो गया है...अवकाश
के क्षण हैं ये
हरीतिमा
उसी तरह है धरती पर
जैसी
पंद्रह साल पहले थी
सूरज
उतना ही गर्म, उतना
ही मद्धम
हवाओं
में जो ये थोड़ी सी नमी है
किसी
पुराने समय से चली आई है हमारे
लिए हमारी ही देहगंध लिये
(तीन
)
(समंदर
के पास खड़े प्रिय अनुज पवन और
स्टेफनी की तस्वीर देखते
हुए)
देखो
देखो
उनके
होने से
कितना
नीला हो गया है समंदर
उनके
होने से
कितना
मृदुल लग रहा है सूर्य
बादलों
में कितना प्रेम भर गया है
और
बलुई धरती जैसे चांदी से भर
गयी है
देखो
उनके
होने से
पेड़ों
पर उग आई है ज़िन्दगी किस कदर
युद्धपोतों
ने पहन लिए हैं श्वेत वसन
पंक्षी
उड़ना भूल ठहर गए हैं आसमान में
देखो
उनकी
आँखें देखो
इनमें
दुनिया का सबसे पवित्र जल बह
रहा है
साथ
देखते हुए देखो
एक
समन्दर भर गया है हमारे भीतर
चलो, एक और सफ़र पर चलते हैं आज की रात
जवाब देंहटाएंमैं थामता हूँ तुम्हारी उंगलियाँ, तुम मेरी निगाहें थाम लो
कन्धों पर लाद ली है मैंने तुम्हारे हिस्से की उत्कंठा
तुम अपने कन्धों पर मेरे हिस्से का उल्लास लाद लो
पहन लो मेरा भरोसा चप्पलों की तरह
मैंने ओढ़ ली है तुम्हारे प्रेम की शाल
कितनी खूबसूरती से लिबास को रंगा है कि तू और मैं का फ़र्क ही मिट गया
आओ आज पढ़ें चेहरों पर उग आईं
अजानी लिपि में लिखी उम्र की इबारतें
पुरानी कोई डायरी निकाल लाओ
या मैं ढूंढता हूँ प्रेमपत्रों की पोटली
तुमने रख तो दी थी न संभाल के?
बस और क्या चाहिये प्रेम को इसके सिवा ………एक अहसासों की पोटली और अपनेपन का स्पर्श ………क्या जरूरत है अब भी ज़िन्दगी को सांसों की?
काँटों भारी राह पर चलते ,ख्यालों में ही सही इस तरह फूलों की ओर आना और उनके कोमल स्पर्श को अपनी आत्मा पर सरकते रेशम की तरह फ़ैल जाने देना ...बहुत अच्छा लगा ! अशोक की इन सुन्दर कविताओं के लिए बधाई !
जवाब देंहटाएंइन प्यारी और आत्मीय कविताओं के लिए आभार. अशोक पाण्डेय की कविताओं की परतों में मनुष्यता के लिए लगाव की गहन चिंता है. यहाँ यह मुखर हुआ है. बधाई.
जवाब देंहटाएंप्रेम में डूबाने वाली इन कविताओं के लिए मित्र अशोक को बधाई ..| सच है , कि जब से हमारे भीतर 'हम' मुखर हुआ है , प्रेम कहीं छीजता चला गया है | इसे याद दिलाने के लिए आपका आभार |
जवाब देंहटाएंउनके होने से
जवाब देंहटाएंकितना मृदुल लग रहा है सूर्य...
वाह अशोक जी पहली बार पढी आपकी प्रेम कविता"अद्भुत
जवाब देंहटाएंवाह !वाह ! मस्त है गुरु ...पहली वाली ( मेरा आशय कविता से है ) तो गजब ढा रही है ! सचमुच इन कविताओं को पढ़ के लग रहा है कि आपका साथ, साथ फूलों का ! आभार !
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी की तमाम तल्ख़ हकीक़तों के बीच भी एक रात की उम्र भर ही सही, प्यार को जी लेने की चाह भी जीवन में तरलता बनाये रखती है और इंसान को पत्थर नही होने देती ,एक प्रेमी युगल को देख श्वेत वसन युद्ध पोतों की कल्पना वो ही कर सकता है जिसके दिल में दुनिया के सबसे पवित्र जल के प्रति आस्था होअशोक भाई .....सुन्दर आत्मीय रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से जुड़े बिम्ब कविता से पाठक का तादात्म्य कराते हैं.....ज़िन्दगी की ऊबड़-खाबड़ ज़मीन पर अधिकारों की लड़ाई लड़ने के साथ इन सुन्दर आत्मीय कविताओं को रचने के लिए बधाई.....शुभकामनाएं....
जवाब देंहटाएंमैंने फील किया इन कविताओं को . प्रेम में डूबना सब के लिए मज़ेदार होता है. खास कर के तब जब अशोक जैसे शब्द शिल्पी ने समृद्ध किया हो उस सागर को ....... खूब लिखो दोस्त! यूँ तो जीवन भी जीने की चीज़ ही होती है, लिखने की नहीं . लेकिन जो लिख सकता है जीवन को, उसे आप रोक नही सकते. यही बात प्रेम के बारे में भी है . जो कुछ भी *जिया* जाएगा , वह सब *लिखा* भी जाएगा जब तक सम्वेदनाएं ज़िन्दा हैं और शब्द !
जवाब देंहटाएंआपको पढ़ना एक नया अनुभव होता है हर बार .. इस बार एक दम नए बहाने से पढ़ा आपको ..
जवाब देंहटाएंढेरों शुभकामनायें
प्रेम के गहनतम और सान्द्र अनुभव की कवितायेँ हैं..
जवाब देंहटाएंअशोक भाई.. यहाँ 'वाह' कहूँगा
एक गुज़ारिश भी है (परिचय पर केंद्रित)
कवियों के सन्दर्भ में 'कविता बनाना', 'कविता साधना', 'कविता बुनना' जैसे मुहावरे न प्रयोग किये जायें तो ज्यादा ठीक रहेगा (वैसे यह मेरी अपनी राय है)
padh kar bahut hi achha laga....bahut kuchh apna sa laga
जवाब देंहटाएंabhaar
naaz
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (1-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
बहुत सुन्दर कवितायेँ....!
जवाब देंहटाएंपरिपक्व प्रेम की शानदार कवितायें ....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कवितायेँ हैं ......... बिम्ब बड़े सुन्दर और मनमोहक बन पड़े हैं .......अपर्णा जी की लिखी भूमिका से ये शब्द बिना उद्धत किया दिल नहीं मानता ....."यातनाओं और समय से लड़ते कवि के स्वर अचानक कहीं प्रेम पर रुकते हैं,फिर अहिस्ता चलते हैं और पुरानी डायरी से नीला समंदर आवेग से ऊपर उठ जाता है,लेकिन लौटना फिर उसी जीवन में होता है जहाँ युयुत्सु जिजीविषा संघर्षरत है."
जवाब देंहटाएंएक ठहराव के बाद यूँही चल पड़ना थोडा मुश्किल पर गुदगुदी होता है ......ये परिपक्व प्रेम की कवितायेँ है !
प्रेम की कमाल कवितायेँ .....प्रेम सी पुरातन और हर पल नयी भी . बेहद परिपक्व ...पर वर्जित फल सी नहीं .
जवाब देंहटाएंआपको प्रेम कविताएं और लिखना चाहिये थी ......... सर्थक है सभी
जवाब देंहटाएंbahut sunder bahut hi sunder kho gaya gaya tha roj ki aapa dhaapi men...aapne waapas bula liya...aabhaar.
जवाब देंहटाएंNISHABD....
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंप्रिय ब्लॉगर मित्र,
हमें आपको यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है साथ ही संकोच भी – विशेषकर उन ब्लॉगर्स को यह बताने में जिनके ब्लॉग इतने उच्च स्तर के हैं कि उन्हें किसी भी सूची में सम्मिलित करने से उस सूची का सम्मान बढ़ता है न कि उस ब्लॉग का – कि ITB की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगों की डाइरैक्टरी अब प्रकाशित हो चुकी है और आपका ब्लॉग उसमें सम्मिलित है।
शुभकामनाओं सहित,
ITB टीम
पुनश्च:
1. हम कुछेक लोकप्रिय ब्लॉग्स को डाइरैक्टरी में शामिल नहीं कर पाए क्योंकि उनके कंटैंट तथा/या डिज़ाइन फूहड़ / निम्न-स्तरीय / खिजाने वाले हैं। दो-एक ब्लॉगर्स ने अपने एक ब्लॉग की सामग्री दूसरे ब्लॉग्स में डुप्लिकेट करने में डिज़ाइन की ऐसी तैसी कर रखी है। कुछ ब्लॉगर्स अपने मुँह मिया मिट्ठू बनते रहते हैं, लेकिन इस संकलन में हमने उनके ब्लॉग्स ले रखे हैं बशर्ते उनमें स्तरीय कंटैंट हो। डाइरैक्टरी में शामिल किए / नहीं किए गए ब्लॉग्स के बारे में आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।
2. ITB के लोग ब्लॉग्स पर बहुत कम कमेंट कर पाते हैं और कमेंट तभी करते हैं जब विषय-वस्तु के प्रसंग में कुछ कहना होता है। यह कमेंट हमने यहाँ इसलिए किया क्योंकि हमें आपका ईमेल ब्लॉग में नहीं मिला। [यह भी हो सकता है कि हम ठीक से ईमेल ढूंढ नहीं पाए।] बिना प्रसंग के इस कमेंट के लिए क्षमा कीजिएगा।