पुरुषोत्तम अग्रवाल ::






























::सुमन का इंतजार करते हुए ..


1.


शब्दों को नाकाफ़ी देख
मैं तुम तक पहुंचाना चाहता हूं
कुछ स्पर्श
लेकिन केवल शब्द ही हैं
जो इन दूरियों को पार कर
परिन्दों से उड़ते पहुंच सकते हैं तुम तक
दूरियां वक्त की फासले की
तय करते शब्द-पक्षियों के पर मटमैले हो जाते हैं
और वे पहुंच कर जादुई झील के पास
धोते हैं उन्हें तुम्हारी निगाहों के सुगंधित जल में।




2.


यूं बाल गर्दन के नीचे समेट कर
बांध लिए हैं तुमने
मेज के करीब सिमट कर वैसे ही खड़ी हो,
उन्हीं दिनों की तरह...
थरथरा रही है स्मरण में आकृति
सामने बैठा मैं
निस्पंद
झांक रहा हूं अतीत में
जहां तो अब भी दिखते हैं
वे नाजुक खरगोश
छोटे छोटे वादों के
वे प्रकाश-कण
बड़े -बड़े इरादों के
और वह विस्तार जिसे हम अपना हरा आकाश कहते थे
सब कुछ वैसा ही स्मरण पल में
फिर, सखी,
इस पल में क्यों इतनी स्याही है।


3.


शुभ्र रेखाओं से घिरा
एक वह जिन्दा आकाश हरा
जिस पर तैरते थे हंस अपराजेय
वह चमक जिसमे दमकता था
आक्षितिज सूरजमुखी का देश
और
आज देखता हूं
खो गया हरापन
पंख बिखर गये हंसों के
रेखाओं ने जंजीरों का बाना धरा
अतल खाई निगल गयी पूरा स्वप्न
मैं इसे भूल जाऊं?




4.


ओस से भीगी हो
या आग बरसाती
उन दिनों हर सुबह सुहानी लगती थी
क्यों लगती थी?
उत्तर मिला कुछ देर से
जाना मैंने कुछ देर से
सुहानी होती थी
वह थरथराती रोशनी
जिसे साथ लिए बिना
उन दिनों
कोई भी सुबह
न कहीं आती थी, न कहीं जाती थी।




5.


बहुत से चेहरों के बीच
वह पुख्ता चेहरा उभरता है यादों में बातों में
कदम दिशा खोजते हैं
हाथ कुछ लिखना चाहते हैं
कितनी भली लगती है
सड़क से आती बस की आवाज
कितना अच्छा लगता है लिखना


सुमन का इंतजार करते हुए।

33 टिप्‍पणियां:

  1. पुरुषोत्तम जी की कविताओं का मैं पुराना शैदाई रहा हूँ. एक साथ पांच कविताओं को देखकर सुखद लग रहा है. कुछ ईर्ष्या भी. काश जानकी पुल को यह अवसर मिला होता.

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  2. न जाने क्यों ये कविताएँ पढ़ते हुए मुझे रूसी प्रेम कविताएँ याद आईं.
    अनूठे, अभूतपूर्व , नए - अजाने स्वप्न - से गूढ बिम्ब.
    मौलिकता....अतिमौलिकता पुरुषोत्तम जी की कविताओं की विशिष्टता...जो किसी ने न सोचा, जो किसी ने न लिखा. बधाई कवि को और ब्लॉगर को. मनीषा कुलश्रेष्ठ

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  3. पुरुषोत्‍तम जी को इस रूप में पढकर अच्‍छा लगा। इससे उनकी आलोचना में और सरसता आएगी। मुझे नही पता वे मूल रूप से कवि हैं या आलोचक। लेकिन ये कविताएं उनके प्रति उत्‍सुकता पैदा करती हैं।

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  4. aapke sabdo me jadu sa hai,mujhe chhute hai ye sabd,jaise koi nirjhrni bah rahi ho,aalas bhare prem nivedan me jaise koi sfurti si aa gayee ho

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  5. बहुत से चेहरों के बीच
    वह पुख्ता चेहरा उभरता है यादों में बातों में
    कदम दिशा खोजते हैं
    हाथ कुछ लिखना चाहते हैं
    कितनी भली लगती है
    सड़क से आती बस की आवाज
    कितना अच्छा लगता है लिखना

    सुमन का इंतजार करते हुए।

    कितना अच्छा लगता है इतनी कोमल कविताएँ पढ़ना.
    आपको धन्यवाद अपर्णा जी.

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  6. कौन नहीं जानता कि प्रेम ही वह भूमि है जिसमें हर असंभव भाव संभव है...वहीं तो होना न होना है और न होना न होना...

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  7. पुरुषोत्तम अग्रवाल की कविताएँ उनकी तमाम बौद्धिकता के बावजूद बौद्धिकता से बोझिल नहीं होतीं, यह ख़ास बात है। मुझे अच्छा लगा यह जानकर कि पुरुषोत्तम ने कविता लिखना छोड़ा नहीं है। अपने छात्र जीवन में वे कविता लिखा करते थे । आज भी लिखते हैं, यह अच्छी बात है। दर‍असल नामवर जी ने एक अच्छे खासे कवि को एक आलोचक बना दिया था। अब आलोचक वापिस अपने कविता के बाने में लौट रहा है। एक पुरुष के सहज भावों को कवि पुरुषोत्तम ने बड़ि सहजता से अबिव्यक्त किया है।

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  8. "वे नाजुक खरगोश
    छोटे छोटे वादों के

    वे प्रकाश-कण
    बड़े -बड़े इरादों के"

    अविस्मरणीय!

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  9. प्रेम की उद्दात्ता और दाम्पत्य के विश्वास से महकती इन कविताओं में
    वाद -विवाद - संवाद से परे राग-तत्व का स्थाई पता मिला जिसका आभास हालाकि पहले भी होता था.
    कबीर को समझने के लिए कवि होना लाजमी है.
    प्रेम कविताओं सुंदर संचयन के लिए अपर्णा को बधाई.

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  10. "....दूरियां वक्त की फासले की
    तय करते शब्द-पक्षियों के पर मटमैले हो जाते हैं
    और वे पहुंच कर जादुई झील के पास
    धोते हैं उन्हें तुम्हारी निगाहों के सुगंधित जल में।"
    ********************************************
    "....वह चमक जिसमे दमकता था
    आक्षितिज सूरजमुखी का देश....."

    इन और इन जैसी कई पंक्तियाँ साबित करती हैं कि कवि जीवन में प्रेम के प्रति कितना चेतस् है। उनकी कविताओं में आकाश,क्षितिज,ओस,सूरजमुखी परिंदे और निगाहों का सुगंधित जल है। यादें व स्वप्न हैं। अम्बर्टों ईको ने कहा है - स्वप्न एक पवित्र पोथी है,और बहुत सी पवित्र पोथियाँ स्वप्न के सिवाय कुछ भी नहीं हैं। प्रो.पु.अग्रवाल की बात हो और भला कबीर न याद आएँ...."बालम आव हमारे गेह रे...तुम बिन दुखिया देह रे...."
    सर!बहुत सुंदर। अपर्णा जी! आभार।

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  11. बहुत सुन्दर !
    प्रेम कभी असफल नहीं होता ,
    मिलन हो या वियोग ,
    प्रमाण देती रचनाएँ !

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  12. पुरुषोत्तम जी की प्रेम कवितायेँ पढ़ कर सुखद अनुभव हुआ. एक लेखक किसी भी विधा में लिख रहा हो. हर व्यक्ति के अंदर एक कवि हमेशा उपस्थित रहता है. बधाई.

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  13. बहुत ही सुन्दर, दिल को छू लेने वाली रचनाएँ!

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  14. अद्भुत प्रेमाभिव्यक्ति ,...बहुत ही अच्छा लगा पढ़ कर

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  15. प्रकाश दीक्षित जी से आपके कवि रूप की कई बार चर्चा हुई है…पढ़ा आज पहली बार…'आक्षितिज सूरजमुखियों का देश' प्रकाश जी के कविता संग्रह का भी नाम है…और कविताओं की प्रतीक्षा रहेगी…अपर्णा का आभार

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  16. इतनी प्रशंसा पाय दोस्तन की मुदित भए, साथ ही भए भयभीत
    रूठ गयीं जो कहीं कविता देवी, न मिलने की यह प्रीत!

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  17. ठीक कहा अशोकजी 'आक्षितिज सूरजमुखी का देश' यह वाक्यांश प्रकाशजी के संग्रह के शीर्षक से ही लिया गया है। आज कृतज्ञता के साथ याद करता हूं कि उन्हें मेरे कवि पर शुरु से ही भरोसा था।

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  18. font itna chhota hai ki padhne me dikkat si hoti hai, kya sambhaw hai use badha paana

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  19. इन कविताओं में पुरुषोत्तम जी का एक नया रूप देखने को मिला.मुझे यह बात बहुत भली लगी कि इन कविताओं में आक्रांत करने वाली बौद्धिकता नहीं है और न ही आतंकित करने वाला शब्द जाल! क्या सभी कविताओं को ऐसा ही नहीं होना चाहिए?

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  20. behad khoobsurt hain ye ahsaas.........aapke kavi man koo janna or unme basi in ghahraiyo ne man ko chho liya

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  21. बहुलकोणों वाले पुरुषोत्तम जी को दादा प्रभात त्रिपाठी और मेरी तरफ़ से भी बधाईयाँ ।

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  22. आज देखता हूं
    खो गया हरापन
    पंख बिखर गये हंसों के
    रेखाओं ने जंजीरों का बाना धरा
    अतल खाई निगल गयी पूरा स्वप्न
    मैं इसे भूल जाऊं?

    बहुत सुंदर...

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  23. शब्दों को नाकाफ़ी देख
    मैं तुम तक पहुंचाना चाहता हूं
    कुछ स्पर्श
    लेकिन केवल शब्द ही हैं
    जो इन दूरियों को पार कर
    परिन्दों से उड़ते पहुंच सकते हैं तुम तक

    बहुत सुंदर ..

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  24. jaise pyaas ki tripti mehsoos hoti hai, waise hi ye kavitayien bhi, sunne se jyada mehsoos hui hai. inki sundarta shabdo me avyakt hai, phir bhi mann keh ke maanega..... bahoot sundar
    mrs. rachna singh
    rachna.singh19jan@gmail.com

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  25. jaise pyaas ki tripti mehsoos hoti hai, waise hi in kavitaoo ki sundarta, mere shabd bhandar se to avyakt hai, kintu phir bhi mann keh k maanega..... bahoot sundar
    rachna singh
    rachna.singh19jan@gmail.com

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  26. mai itni saksham to nahi k virat sahitya jagat me purshottam sir ki tulna kisi se karu, kintu, jo hriday ko sundar lage, usey sundar kehna hi chahiye. sir ki ye kavitaye, jaise k maine pehle kaha pyas ki tripti k sukh ki tarah avyakt hai. aati sundar.
    sir ko dher sari shubhkamnao sahit- rachna singh, lucknow
    rachna.singh19jan@gmail.com

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  27. mai sir k sneh rooopi uttar ki prateeksha me hu, sa prem-
    mrs. rachna singh, lucknow
    rachna.singh19jan@gmil.com

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  28. उत्तर मिला कुछ देर से
    जाना मैंने कुछ देर से
    सुहानी होती थी
    वह थरथराती रोशनी
    जिसे साथ लिए बिना
    उन दिनों
    कोई भी सुबह
    न कहीं आती थी, न कहीं जाती थी।
    .........लाजवाब ....कोमल सरल भाव ....छोटी छोटी लहरें ...कितनी मूल्यवान ....यूँ भी महसूस जाता है किसी को ....पर लिखा भी कहा भी जा सकता है इतनी सरलता से ....आज इन रचनाओं ...भावनाओं को पढ़ कर महसूस किया .....

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  29. खरगोश का संगीत राग
    रागेश्री पर आधारित है
    जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें
    वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम
    का प्रयोग भी किया है, जिससे
    इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
    ..

    हमारी फिल्म का संगीत वेद
    नायेर ने दिया है.
    .. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट
    से मिलती है...
    Feel free to surf my weblog ; हिंदी

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  30. "उन दिनों की ठहरी सुबह" सरीखी ही कवि के चित्त की स्थिर, उदात्त भंगिमा ने प्रभावित किया। डॉक्ट्सा के कहन में सादगी का आकर्षण है....कविता के अर्थ की तलाश में फ़ासले तय करने का जोखिम भी नहीं। कविताएँ जिन्हें समर्पित हैं, उन्हें नमन् फिर आपको:)

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  31. इन कविताओं को पढ़ना प्रेम के अनंत राह पर चलने जैसा है...

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