उसने तो कहा ही नहीं था प्यार !
किसी ने कहा प्यार नहीं
कि बस !
बस,अंदर बहने लगती है नदी
उसने कहा बहो
बढ़ाया आगे झोला
कहा , कुछ गम हैं इनमें
और दूसरे में क्या ? मैंने बच्चों की तरह मचल कर कहा
उसने कहा , पहले इसे खोल लो न
मैं उसके "न" पर खिंच अटकी रही , असमंजस
नीबू की पतली फाँक से चुआती रही बून्द
जीभ पर
बहती रही
सोखती रही
प्यार
फूलों को मसल कर कहा
अब?
नीबू की पत्तियों को मसल कर कहा
अब?
ये तो बड़े दिनों बाद पता चला
उसने तो कहा ही नहीं था
प्यार !
गुस्सा और कबूतर
मैं जब कहती हूँ गुस्सा
तुम समझते हो हँसी
चटक खिलता है फूल एक
कोई आग की लपट नहीं निकलती
मैं कहती हूँ प्यार तुम समझते हो गुलफाम
और कोई पत्थर नहीं गिरता पानी में
बस कोई चिड़िया उड़ जाती है फुर्र से
फिर मैं एक एक करके
आजमाती हूँ , फेंकती हूँ शब्द तुम्हारी तरफ
मोह ? माया ? सेब? कबूतर ?
ऊटपटाँग कुछ भी ...
जाँचती हूँ ,कुछ समझते भी हो ?
और तुम हँसते हुये कहते हो , अच्छा !
धूँआ ? बादल , नदी
पहाड ? है न !
मैं सिर्फ सोचती हूँ मेरे शब्द तुम्हारी समझ से
इतनी लड़ाई में क्यों हैं ?
गुलमोहर
काली डामर की सडक
अटी पडी है
झरे गुलमोहर के फूलों से
इस दोपहरी में
आओ
चुन लें इन्हें
ये मौसम
पता नहीं
कब बीत जाये
सफेद चाय की प्याली
और लाल गुलमोहर
जैसे मेरी सफेद साडी
नीचे लाल पाड
बस एक फूल
की कमी है
आओ
खोंस दो न
मेरे बालों में
बस एक गुलमोहर
तपती दोपहरी में
समय ठहर जाता है
डामर की सडक
चमकती है पीठ पर पडी
सर्पीली चोटी जैसी
फ्रॉक के घेरे में
गुलमोहर बीनती लडकी
कब बदल जाती है
मरीचिका में
तुम्हारी खुशबू
(1)
घूमती थी मैं
सडकों पर आवारा
तुम्हारे खुशबू की तलाश में
पर
सूखे पत्तों
और सरसराते पेडों
के सिवा
और कुछ
दिखा नहीं मुझे
(2)
हथेलियों से
चू जाती है
हर स्पर्श की गर्मी
आखिर कब तक
समेटे रखूँ मैं
मुट्ठियों में
चिडिया के नर्म बच्चे सी
तुम्हारी खुशबू
(3)
साँस लेती मैं
खडी हूँ
तुम्हारे सामने
और भर जाती है
मेरे अंदर
तुम्हारी खुशबू
बस एक बार
कुछ बेहद उदासी वाला गाना क्रून करना चाहती हूँ , नशे में डूब जाना चाहती हूँ । माई ब्लूबेरीनाईट्स । अँधेरे रौशन कमरों की गीली हँसी में फुसफुसाते शब्दों को छू लेना चाहती हूँ , उस धड़कते नब्ज़ को छू कर दुलरा लेना चाहती हूँ । गले तक कुछ भर आता है उसे छेड़ना नहीं
चाहती , बस रुक जाना चाहती हूँ एक बार , तुम्हारे साथ ।
चलते चलते धुँध में खो जाना चाहती हूँ एक बार । और एक बार उस मीठे कूँये का पानी चख लेना चाहती हूँ । एक बार तुमसे बात करना चाहती हूँ बिना गुस्सा हुये और एक बार प्यार ,सिर्फ एक बार । फिर एक बार नफरत । सही तरीके से नफरत , न एक आउंस कम न एक इंच ज़्यादा , भरपूर , पूरी ताकत से । और उसके बाद तुम्हें भूल जाना चाहती हूँ । और चाहती हूँ कितुम मेरे पीछे पागल हो जाओ , मेरे बिना मर जाओ ..सिर्फ एक बार !
अगली ज़िंदगी अगली बार देखी जायेगी...फिर एक बार !
सिर्फ इतना , बहुत
सोचती हूँ बार बार हमारी तलाश
संसार की , नदी नाले पहाड़ की
उदात्त स्नेह और तरल इंसानियत की
तीक्ष्ण घृणा की और बहुत सारी लाचारी की
अपने होने की दुश्वारियों की
सुख के मीठे तालाब की
एक दूसरे तक आकर क्यों खत्म हो जाती है ?
मैं सुनाती हूँ तुम्हें पचास झमेलों की कहानियाँ
तुम , अपनी सुबह शाम और रात के राग
और तमाम दुनियावी बातों के बीच
अचानक
परदा गिरता है
परदा उठता है
एक फूल खिलता है
नदी में चाँदी मछलियाँ तैरती हैं
तुम्हारी आवाज़ अपने रंग बदलती
तितली बन जाती है दुलार में
कभी जँगलों में विचरते हाथी और नदी का कछुआ
सर्द रात में चमकते जुगनू
समंदर की लहर का हाहाकार
जली मिट्टी के काले झाँये सोंधे बर्तन
कभी चट पहाड़ी बंजर में उगा नन्हा कोई हरा पेड़
हमारे आसपास दीवार दुनिया विलुप्त हो जाती है
खींच ले जाते हो मुझे तुम उस लोक में जहाँ
किसी कारवाँ के पीछे नीले रेत की नदी गुबार उड़ाती है
चेहरे को नकाब में छुपाये हम देखते हैं
एक दूसरे को
चोरी से भाग गये किशोरों की चमक आँखों में
जो गुपचुप हँसते जानते हैं
रात का रहस्य
दिलरुबा की धुन
चेहरे पर हवा की तेज़ी
बदन का लचीला नृत्य
पूरी धरती
समूचा आसमान
यही है कुछ जहाँ हम खोजते खोजते
पा जाते हैं , एक साथ
इसी रोज़ की दुनिया में हर बार
तलाशने और पा जाने का
एक मीठा सुरबहार
बहुत सुन्दर संकलन कविताओं का ... एक एक कविता मोती सी सुन्दर .. कल चर्चामंच पर आपकी यह पोस्ट होगी... आपका आभार इन विशिष्ट रचनाओं के लिए जिन्हें आपने हमसे ब्लॉग मे शेयर किया ... धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसफेद चाय की प्याली
जवाब देंहटाएंऔर लाल गुलमोहर
जैसे मेरी सफेद साडी
नीचे लाल पाड
बस एक फूल
की कमी है
आओ
खोंस दो न
मेरे बालों में
बस एक गुलमोहर
............ अद्भुद, मोहक, अनुपम
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जवाब देंहटाएंsundar bhavnaon ka swaksh sangam achha ban pada hai shukriya .
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कवितायें।
जवाब देंहटाएंआप सबों का आभार !
जवाब देंहटाएंबड़े दिनो के बाद प्रत्यक्षा जी की कविताएं एक साथ पढ कर बहुत अच्छा लगा । अनूठे बिम्ब और अपने मन की बात ज्यों कि त्यों कह देने का हौसला ....
जवाब देंहटाएंआभार ...
सुंदर रचनाये ...पढ़ कर सुखद अहसास हुआ ...बधाई
जवाब देंहटाएंbahut khoobsurat, bahut arthwan kavitayen. Pratyksha ji badhai!
जवाब देंहटाएंकविताओं से प्रत्यक्ष मिलना हमेशा अच्छा होता है...
जवाब देंहटाएंप्रत्यक्षा जी की कविताओं से गुज़ारना बहुत सुन्दर लगा!