कवि की कलम से::
जीवन बहुत सारे श्वेत-श्याम चित्रों का गतिमान कोलाज है। हमारी चिता या कि कब्र पर ही उसे आखिरी रोशनी या कि अंधेरा नसीब होता है। ऐसे में एक कवि के लिए कविता, जिंदगी के ना जाने कितने अंधियारे-उजले पक्षों को उजागर करती रहती है। कवि के पास एक उम्मीद होती है जो हमें निंरतर उजालों की ओर लिये चलती है। वही उम्मीद असल में जीवन का तम हरने वाली होती है... कविप्रिया तमहारिणी उसका मूर्त रूप है। इन कविताओं में उसी कविप्रिया तमहारिणी को सजाया-संवारा गया है। ये सोलह कविताएं नहीं सोलह शृंगार हैं उस तमहारिणी के। उसी कविप्रिया को समर्पित हैं ये कविताएं।
हे मेरी तमहारिणी::
1*
कितनी बार कहा तुमने
मैं तुम्हारी
मैं हरा पहनता हूं
कि तुम्हें पहनता हूं
जो तुम्हारा हो जाता हूं
हे मेरी तमहारिणी
2*
देखो
ये जितना भी हरा है
सब तुमसे ही झरा है
तुमने ही पहनाया मुझे हरा
और हर लिया मेरा सब कुछ
लोग पूछते हैं
क्यों हरिया रहे हो प्रेम
मैं कहता हूं
सब उसी की मेहर है
जिसने ढाया इश्क का कहर है...
3*
एक नहीं
दस चांद हैं
हम दोनों के पास
अपनी अंगुलियों के नाख़ून
ग़ौर से देखो
हर अंगुली में समाया है आधा चांद
आओ हाथ मिलाकर हम
इन्हें पूरा कर लें
हे मेरी तमहारिणी
4*
प्रेम का दरख्त
हरा था, हरा है
हरा ही रहेगा दोस्त
गुजर चुका है
पतझड़ का मौसम
फिर उसकी याद के नये पत्ते
फूट आये हैं मेरी देह पर
5*
कैमरे में नहीं समाती है
जो ख़ूबसूरती
वो मेरी आंखों के कैनवस पर
रच जाती है
जिंदगी के लैंडस्केप की तरह
अब मत कहना
’मेरी शक्ल ही ऐसी है कि
कोई तस्वीर अच्छी नहीं आती’
6*
तुम्हारे नाक, गाल और होठों के बीच
जो एक फिसलपट्टी है ना छोटी-सी
त्रिभुज के आकार की
जहां पानी की एक बूंद भी गिरे तो
तुम्हारे आंचल में जगह पाती है
मुझे बस वहीं थोड़ी-सी जगह दे देना
गुस्से में मुंह फुला लोगी तो
मैं वहां से गिरूंगा नहीं और
प्यार आयेगा तो आंचल से पहले मैं
अधरों से लिपट जाउंगा
और तुम कुछ नहीं कर पाओगी
सुनो
हर कोण से दो बांहें फैलाते हुए
त्रिभुज में ही तो है हमारा प्रेम
मुझे त्रिभुज में ही रहने देना
हे मेरी तमहारिणी
7*
सुनो
मेरी तबियत ठीक नहीं है
पूरा बदन दुखता है लगातार
देह तपती है जलती भट्टी की तरह
मुझे
तुम्हारी याद की लू
लग गई है देखो
हे मेरी तमहारिणी
8*
सुनो
ये तुम्हारी स्मृतियों के पलाश हैं
मेरी देह पर जलते हुए
पिछले बरस सुलगाई थी
जो आग तुमने
उससे मेरी जीवन उपत्यका
जल रही है अब तक
क्या इस बार नहीं खिला
तुम्हारी पृथ्वी पर बसंत
या कि तुम्हारी पृथ्वी
जलाती है सिर्फ दूसरों को
हे मेरी तमहारिणी
9*
नहीं थकता मैं
दुनिया से लड़ते-लड़ते
नहीं डालता हथियार किसी के सामने
बस तुम्हारे ही आगे
हार-हार जाता हूं मैं
अपनी जीत पर
ज़रा खुलकर मुस्कुराओ ना
हे मेरी तमहारिणी
10*
सब कुछ हो रहा है
जीवन में
तुम्हें भूलने के सिवा
अब बता भी दो
तुम्हें और क्या चाहिये मुझसे....
हे मेरी तमहारिणी
11*
तुम्हारे नाम को
कैसे करूं
मैं अपने से अलग
वो तो ऐसे जुड़ा है
जैसे बारिश
बादलों से
12*
गेस्ट हाउस के इस कमरे में
आधी रात गुज़र जाने के बाद भी
नींद नहीं आती
सोने की कोशिश में
अपनी ही सांसें लौटती हैं
छत से टकरा कर
दूर कहां हो मुझसे तुम
मेरी नींद चुराकर
मेरे ही पास लेटी हो जैसे
हे मेरी तमहारिणी
13*
तुमने तो कह दिया कि
बस सात दिन
और ये दिल है कि
बस
पल गिन
क्षण गिन
घड़ियाँ गिन
कैसे कटेंगे
मेरे दिन
तुम बिन
हे मेरी तमहारिणी
14*
तुम्हारी स्वेद गंध का फंद है यह कि
तुम्हारी मौज़ूदगी का अहसास
रचता मेरे भीतर एक नया छंद
आंखें बंद
नाक बंद
दिल-दिमाग के सब दरवाज़े बंद
सांसें मंद
आह तुम्हारी स्वेद गंध
हे मेरी तमहारिणी
15*
चांदनी रात में देखता हूं
खिला हुआ अमलतास
तुम कितने रूपों में
दूर होकर भी
मौज़ूद रहती हो
पवन के हल्के झोंकों में
कितनी ख़ूबसूरती से लहराते हैं
पीले फूल अमलतास के
क्या मैं सचमुच हवा हो गया हूं
और तुम अमलतास
हे मेरी तमहारिणी
16*
फूले-फूले हैं पलाश
फूली है अरदास
दूरी अपने बीच की
लगती कितनी पास
पलाश वन में तुम्हारी याद
जैसे पृथ्वी का अकेला चांद
हे मेरी तमहारिणी
पेंटिंग: नित्यम सिन्हा रॉय
प्रेमचंद की कविताओं में जो अनुराग और प्रणय का गहरा भाव है, वह निथरे हुए जल की तरह चमकता है और इसमें जो हरा है, वह तो और भी गहरी आत्मीयता से भरा है, प्रेम ने अपने ब्लॉग के नाम को सार्थक कर दिया - प्रेम का दरिया। बधाई और इस अमर प्रेम के प्रति हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंप्रेम , प्रेम बस प्रेम ........
जवाब देंहटाएंसचमुच सुन्दर
जीवन के श्वेत श्याम चित्रों में सिर्फ प्रेम प्रेम प्रेम ....
जवाब देंहटाएंकल 01/07/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
'प्रेम का दरख्त
जवाब देंहटाएंहरा था, हरा है
हरा ही रहेगा दोस्त'
सुन्दर कथ्य!
कोमल भावों का सुन्दर समावेश, सभी कवितायेँ बेहद सुन्दर!
बेहतरीन प्रस्तुति!
सादर!
किसको अधिक धन्यवाद दूं ये निर्णय नहीं ले पा रहा हूँ अपर्णा जी को या प्रेमचंद गाँधी जी को ..... हर शब्द हर भाव प्रेम कि गहनता को समेटे हुए कहीं से भी तो तो एक क्षण को भी तो नहीं लगा कि एक भी कविता मेरी नहीं है | अविस्मरणीय है सभी कवितायें |
जवाब देंहटाएंप्रेमचन्द गांधी की कविताएं बाजारी व्यामोह से टकराती, सामाजिक विडंबनाओं से जूझती हुई अपने समय का सच रेखांकित करती हैं। प्रेमचन्द ना तो अतीतजीवी हैं ना ही भविष्य के स्वप्नद्रष्टा होने का कोई दावा वे प्रस्तुत करते हैं, वे आज के कवि हैं, आज जो सामने है, आज जो सच है। इस तरह वे सच के पक्ष में खड़े ऐसे वकील हैं जिनका हर शब्द एक तर्क है, हर पंक्ति एक गवाही है....आपकी प्रस्तुति समय के हक में किया गया साझा है...प्रेमचन्द जी को बधाई आपको साधुवाद
जवाब देंहटाएंइस प्रस्तुति में दी गई प्रेम कविताएं प्रेमचन्द गांधी की सहज पहचान को बताने के लिए काफी हैं....
जवाब देंहटाएंप्रेमचंद गाँधी की कविताएँ व्यक्ति के गहन अंतर्भावों की अभिव्यक्ति हैं .ये उस सत्य को उद्घाटित करती हैं जिसे आदमी कह तो देना चाहता है पर कह नहीं पाता कभी भावभिव्यक्ति के लिए सार्थक शब्दों का अभाव और कभी सामाजिक प्रतिबंधों का दबाव .गाँधी जी के पास खूबसूरत शब्दों की थाती है और प्रतिबंधों को नज़रंदाज़ करने का साहस.वे प्रेम में भी उन्मुक्त समाज देखने को प्रतिबद्ध हैं .वे वास्तव में बेहतर समाज का सपना साकार होते देखने को लालायित हैं .उनकी कोमलकांत उदात्त भावनायों को सलाम .
जवाब देंहटाएंप्रेम, निसन्देह असीम क्षितिजों के कवि हैं - मनीषा कुलश्रेष्ठ
जवाब देंहटाएंप्रेम कवितायों को ठीक ऐसा ही होना चाहिए ..........प्रेम के इत्र से महकती हुई ......... अपर्णा जी ...आभार
जवाब देंहटाएंवाह, क्या नए तेवर की रचना है !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंक्या कहने
प्रेम में डूबी बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रेममय करती अत्यंत सुन्दर रचनाए....
जवाब देंहटाएंसादर।
प्रेम रस में पगी कवितायेँ किसी और ही दुनिया में ले जाती है....ऊपर एक कमेन्ट है हाँ बिलकुल प्रेम कवितायों को ऐसा ही होना चाहिए.....प्रेममयी.....बधाई प्रेम जी....नाम को साकार करती कवितायेँ .......आभार अपर्णा दी....
जवाब देंहटाएंवाह....एक एक कविता से मानो शहद सा बरस रहा प्रेम.......बस वाह....खूब बधाई...प्रेमचंद जी आपको और अपर्णा दी का धन्यवाद इन तक पहुंचाने के लिए.....
जवाब देंहटाएंप्रेमचंद जी कितनी गहरी बातें कितनी सहजता से कह जाते हैं। प्रेम का रंग हरा है, खुदा का रंग हरा है, धरती का रंग हरा है, हमारी आँखें को हरा रंग देखने के लिए सबसे कम प्रयास करना पड़ता है। फिर भी प्रेम कितना कम है जीवन में। समाज को प्रेम के इस नए रंग की आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएंविविध विषयों पर पढता रहा हूँ प्रेमचंद जी को..गज्जब का कवित्त है इनमे.. और प्रेम पर तो बस ..अह ! १६ टुकड़ों में १६ चाँद लिख दिया या फिर १६ फूल .. मुझे कितना पसंद आया..? इतना कि मैंने छठी कविता को ख़त में भरकर मेरी प्रेयसी को भिजवा दिया है :-) :-) ..साधुवाद प्रिय कवि.. !! अपर्णा माँ'ऍम का शुक्रिया कि फूलों पर इन्ने प्यारे फूल फिर चुन लायीं :-)
जवाब देंहटाएंघडी ख़राब है फूलों की...किसी घड़ीसाज को बुलाया जाय.. :-) :-)
क्या कहूँ....
जवाब देंहटाएंबस पढ़ती चली गयी...और एक चित्र मन में गढती चली गयी.....
सुन्दर अति सुन्दर....
अनु
पृथ्वी का अकेला चाँद , अमलतास ...
जवाब देंहटाएंप्रेम को समर्पित प्रेम जी की प्रेमिल कवितायेँ अच्छी लगी !
बहुत सुंदर पहली बारिश से उठी धरती की महक जैसी कवितायें ! सलामत रहिए अपनी तमहारिणी के साथ ,यही दुआ है !
जवाब देंहटाएंसुखद अनुभव होता है इनकी रचनाओं को पढ़ते हुए
जवाब देंहटाएं