उसकी हथेली और हमारी बात
उसने हाथ बढ़ाया मेरी ओर
मैंने भी बढ़ कर हाथ मिलाय
उसकी नर्म और गर्म हथेली बच्चों की सी थी
मैंने हथेली भर कर उसका हाथ थाम लिया
हम बात कुछ और कर रहे थे,
सोच कुछ और रहे थे,
पर हम साथ साथ समझ रहे थे,
कि यूँ हाथ मिलाना अच्छा लगता है
रस्ता रोक कर यूँ बातें घुमाना अच्छा लगता है
फिर दोनों ही झेंप गये
संक्षेप में मुस्कुरा कर अपनी अपनी दिशा हो लिये
किसी बहाने से अचानक मैं पलटा,
और वह जा चुकी थी
कुछ सोच कर वह भी पलटी होगी,
और मैं जा चुका होउंगा
उस रास्ते पर अब रोज़, उसी समय मैं आता हूँ.
प्रिय
1
जैसे गर्म भाप छोड़ती है नदी,
रोज़ उसमें नहाने वालों के लिए
जैसे जाड़े की घूप
सेंकती है नन्हें पौधे को।
तुमने मुझे सेंका और पकाया है
मैंने पूरी दुनिया को भर लिया है आज अपने अंक में.
2
जब तुमने मुझे प्यार किया,
तो समझा कि दुनिया को प्यार की कितनी ज़रूरत है
हालांकि दुनिया पहले भी चल रही थी,
पर अब धड़कती है वह मेरे भीतर
मैं अक्सर सपने में देखता हूँ ख़ुद को भागता हुआ जंगल के बीच से
तुमने मुझे थाम लिया
जैसे धरती भरोसा है पेड़ों का,
जैसे पेड़ भरोसा हैं पशु-पक्षियों का,
अपने भरोसे में तुमने मुझे भर लिया
कि हम ज़रूर देखेंगे वह दिन
जब सृष्टि उतनी ही स्वाभाविक होगी
जैसी वह अपनी रचना के पहले दिन थी,
जब प्यार इतिहास नहीं बन जायेगा.
3
मैंने तुम्हारे खेत में जो धान रोपा था,
उसमें बाली आ गई है अब
वह धूप में सोने की तरह चमकती है,
और हवाओं की सरसर में वैसे ही झुकती है,
जैसे तुम झुक आती हो मुझ पर.
उसमें बाली आ गई है अब
वह धूप में सोने की तरह चमकती है,
और हवाओं की सरसर में वैसे ही झुकती है,
जैसे तुम झुक आती हो मुझ पर.
4
प्रिय, हर बार तुमसे एक होने के बाद
फिर से जन्म लेता हूँ कोमल कोंपल बन कर
हाँ, एक नई रचना ले रही है आकार
कहीं कोई अँकुर फूट रहा है.
फिर से जन्म लेता हूँ कोमल कोंपल बन कर
हाँ, एक नई रचना ले रही है आकार
कहीं कोई अँकुर फूट रहा है.
5
अगर तुम नहीं होती
तो मैं ठीक ठीक तो नहीं कह सकता
कि मुश्किल और कितनी मुश्किल हो जाती
लेकिन तुमने मेरी मुश्किल आसान कर दीं,
शायद यह न होता
कोहरे में जब हाथ को हाथ नहीं सूझता
तुम दिखती रही दीये की लौ की तरह,
और हटाती रही कोहरा
शायद यह भी न होता,
अगर तुम नहीं होती
तुमने आँखों को बीनाई बख़्शी
चली आ रही समझ के परे,
समझने को दिखाया एक नया चाँद
तुम नहीं होती,
तो शायद रौशनी नहीं होती.
तुम ओस की बूँद की तरह मुझे ठंडक और नमी देती हो,
जवाब देंहटाएंऔर मैं किसी पत्ते की तरह भीगा,
रोज़ सुबह उठता हूँ....वाह गज़ब की पक्तियां .....निजी पलों की अन्तरंग ,सहज भावपूर्ण अभिव्यक्ति और अहसास ...फरीद जी की बातें सुन्दर शब्दों में बन पड़ी ...शुक्रिया जी !!!!!!!!
तुम ओस की बूँद की तरह मुझे ठंडक और नमी देती हो,
जवाब देंहटाएंऔर मैं किसी पत्ते की तरह भीगा,
रोज़ सुबह उठता हूँ.
अद्भुत प्रेम कवितायेँ. फरीद भाई को बधाई. अपर्णा जी, आपका ब्लॉग प्रेम कविताओं का बेहतरीन ठिकाना बनता जा रहा है. दुनिया को इसकी बहुत जरूरत है.
बहुत सुन्दर ,प्रेम की चाशनी में पगी
जवाब देंहटाएंकवितायें !
बहुत ही उम्दा कविता है...मुझे अपने पुराने दिन याद आ गए..अद्भुत है..बधाई हो आपको..
जवाब देंहटाएंaur main kisi patte ki tarah bheega,
जवाब देंहटाएंroj subah uthta hoon
tum mere saamne virat vrachcha si khadi ho
main phir kisi phungi par
konpal ki tarah karvat leta hoon.....
जैसे धरती भरोसा है पेड़ों का,
जवाब देंहटाएंजैसे पेड़ भरोसा हैं पशु-पक्षियों का,
अपने भरोसे में तुमने मुझे भर लिया
कि हम ज़रूर देखेंगे वह दिन
!!!!!!!!!!!!!!!!!!
लाजवाब है फरीद जी का कहन !!!!
wah maza aa gaya... jaise dhart bharosa hai...
जवाब देंहटाएंप्रिय, हर बार तुमसे एक होने के बाद
जवाब देंहटाएंफिर से जन्म लेता हूँ कोमल कोंपल बन कर
हाँ, एक नई रचना ले रही है आकार
कहीं कोई अँकुर फूट रहा है.
लाजवाब ...बहुत अच्छा लगा पढ़ना , शुभकामनाये
जैसे गर्म भाप छोड़ती है नदी,
जवाब देंहटाएंरोज़ उसमें नहाने वालों के लिए
जैसे जाड़े की घूप
सेंकती है नन्हें पौधे को।
तुमने मुझे सेंका और पकाया है
सुंदर अभिव्यक्ति....
सुघड़-सुंदर रचनाऍं....
जवाब देंहटाएंफ़रीद साहब!.... दिल को छूती हैं आपकी पंक्तियां!
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