1
एक अनंत प्रेम
यक्ष का प्रश्न नहीं है यह
और ना ही किसी आदिम सभ्यता में अनुत्तरित रह गया सवाल कोई
- ''तुम भी छोड जाओगी साथ मेरा
और साथ रहूंगा खुद के केवल मैं, अपनी मौत तक ! ''
प्रेम का यह अंत अनंत है क्या!
प्रेम कभी नहीं शुरू होता है इस सवाल के साथ
-''क्या साथ निभाओगे तुम मेरा आखिर सांस तक ?''
या साथ छोडते वक्त कोई सवाल पूछने का हक भी नहीं होगा तुम्हें
जैसे अपने वजूद के लिए नहीं है किंचित भी !
तमाम प्रेम बस जलजले की पूर्व पीठिका में
और अंत केवल अनंत कि साथ आजन्म एक सवाल नहीं ख्वाब भर है
केवल खुद से करते है प्रेम, मैं भी और हर कोई
कोई नहीं करता, ना कर सकता स्वयं से इतर, किसी से
प्रेम दो तरफा नहीं प्रेम है दोनों ही तरफ से इक तरफा
तुम्हारा मुझसे और मेरा तुमसे भी!
2
तुम्हारी याद
तुम्हारी याद लपेट रखी है मैंने सर्दी में
कभी भाप बनकर निकलती है दिसंबर के आखिरी दिनों में
एक धुंध से लिपटी दोपहर में
तुम आओगी तो तुम्हारी याद
तब भी क्या रहेगी मेरे जिस्म के भीतर और इर्द गिर्द
गर्मी में एक ठंडी हवा का झौंका तुम्हारी याद
और सर्दी में एक कंबल
जैसा दिया था मां ने, मेरी पहली बार हॉस्टल जाते हुए
फौजियों वाला कंबल बहुत जाडे के लिए
तुम्हारी याद कम्बख्त
सांस हो गई है मेरी जिंदगी का
तुम्हारी याद किसी दिन ले लेगी मेरी जान
और उस दिन वो तब्दील हो जाएगी मौत में
तुम्हारी याद भी सच कितनी बहरूपिया है!
3
रात भर किया प्रेम
रात भर किया
दो कुर्सियों ने प्रेम
दो पेड़ों ने
बांहें फैलाकर किया आलिंगन
घर के दरवाजे की चैखटें
करीब आकर चुंबन लेती रहीं रात भर
प्रेम में डूबी रही
पंखे की पंखुडियां चुपचाप
एक ठिठुरती जाड़े की रात में
पति पत्नी लड़ते रहे रात भर
लगभग बिना ही कारण
जो कहते नहीं थकते-
'आय एम लकी बहुत अच्छी बीवी मिली है मुझे '
और
'मेरे पति बहुत प्यार करते हैं मुझसे '
आज फिर देखूंगा
सुबह सुबह दफ्तर में दो कंम्प्यूटर पाये गए
आपत्तिजनक अवस्था में
जो आलिंगनबद्ध रहे रात भर।
4
याद
उन नितांत अकेले क्षणों में
जब ठीक आधी रात को
एक दिन विदा लेता है
और दूसरा दिन शुरू होता है,
याद करता नहीं हूं
याद आती हो तुम
जैसे कोई दीप किसी मंदिर का जल जाए चुपचाप
वो क्षण स्तब्ध से गिनते हैं
शोर के कदमों की आहटों को।
कोई खयाल तो नहीं हो तुम,
और कोई बेखयाल सी भी नहीं हो हरगिज।
प्रेम के उन नितांत अकेले क्षणों की परिधि में जो अधूरा रह गया हो
बिछड़े हुए प्रेम के दिये ही जलते हैं,
कोई मशाल नहीं।
5
ओ मेरे प्रिय !
ओ मेरे प्रिय !
रोशनी गुमसुम है और धुन जिंदगी की निस्तेज
प्रेम सूखे हुए पेड़ को सहलाना है क्या?
प्रेम रक्तबीज है
प्रेम बस प्रेम है
भोगने के लिए या भुगतने के लिए।
6
प्रेम के पल
प्रेम के पल जीवन के सुंदरतम पल हैं
जो किसी के इंतजार में गुजरते हैं
कुछ भ्रमों को जीवन में पालकर
बहुत प्यारे भ्रम!
जीवन के श्रेष्ठ क्षणों के सूत्रधार
और
प्रेम के अर्थ को व्यर्थ होने से बचाने वाले वे निर्दोष से!
बहुत सुन्दर ..प्रेमाभिव्यक्त करती हुवी कविताएँ .. दुष्यंत जी को बधाई इन सुन्दर रचनाओं के लिए.. अपर्णा जी धन्यवाद ..
जवाब देंहटाएंकल यह पोस्ट चर्चामंच के लिए चुनी है... आपका पुनः आभार ..
जवाब देंहटाएंप्रेम को अभिव्यक्त करती बेहद उत्तम रचनायें।
जवाब देंहटाएंआह...एक बार फिर कर दिया ना भावुक। उफ़, ऐसे लोग दुनियादार होने ही नहीं देते...
जवाब देंहटाएंबहुत उत्कृष्ट भावपूर्ण रचनाओं से परिचय कराने के लिये आभार...
जवाब देंहटाएंउद्दाम प्रेम की अनुभूति कराती कविताएँ...
जवाब देंहटाएंप्रेम के अर्थों को नये आयाम एवं विस्तार देतीं संवेदना से भरपूर बहुत ही सुन्दर रचनाएँ ! बधाई स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ....प्रेम को सार्थक करती हुई भीनी भाव पूर्ण रचनाये ..शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अनुभूतियां
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