शेखर मल्लिक ::


































"प्रेम कुछ इस तरह का होता है"

रात की बारिश का
महकता भीगापन
या सुबह की धूप का 
मखमल... जैसे,
सबसे सुखकर कोई अनुभव
यह प्रेम,
तुम्हारी नरम हथेलियों की
छुअन सी ताजा
और रजनीगंधा की उड़ती हुई 
महक सा प्रेम
...इस तरह इसको ढूंढा, देखा
और पाया है मैंने... कि, 
तुम्हारे और मेरे बीच
जैसे दो सिरों को जोड़ती हुई
एक सूक्ष्म डोर सा 
प्रेम ! 
सचमुच 
कुछ इसी तरह का ही तो 
घटित होता है प्रेम...  





 "तुम मुस्कराओ "


 मुस्कराओ तुम...
तुम्हारे मुस्कराने से 
मुझे लगता है
कुछ तिक्त सा था भीतर
तरल हो गया....
कुछ रिक्त सा था कहीं, 
वह भर गया !
तुम्हारे मुस्कुराने भर से 
शब्द और नाद 
व्यर्थताबोध में ओझल हो जाते हैं
और भाषा की सारी ताकतें
तुम्हारी भंगिमा के समक्ष
सकुचा सी जाती हैं...
लाचार ठिठक जाती हैं !

वह जो ओस सी टपक कर
मेरे सीने की फाँक में
जब समां जाती है
सूखती हुई टहनियाँ फिर 
हरा कर देती है.. !
है तुम्हारी मुस्कराहट... 


 मुस्कराओ  सदा ऐसे ही
कभी इसे खो मत देना...
किसी जाल में 
नहीं फंसा देना यह 
मुस्कराहट !
कहीं कभी हार मत देना यह मुस्कराहट ...

डरता हूँ कि क्यों तुम्हें पता नहीं,
क्या है तुम्हारी मुस्कराहट  ! और इसलिए...
कहीं ऐसा ना हो 
कि तुम बचा ना सको अपनी 
मुस्कराहट...

पर कोशिश करना 
कि इसे बचा सको उसी तरह 
जैसे मेरे बाद बची हुई... 
मेरी अंतिम इच्छा !
यह तुम्हारी मुस्कराहट...
 




तुम क्या जानो साथी

तुम क्या जानो साथी
कि मात्र सपनों और उम्मीदों के मलबों के सहारे
जीवन बिताना कितना कठिन है...
जब उनके पूरे होने में संशय हो 
और इसका कारण भी तुम खुद नहीं हो !

जब हवा, पानी, चाँद... मौसम और जिंदगी...
तुम्हारे सामने अपने 
सुनहले अर्थों को गंवाकर
सिर्फ़ एक उदासी भरे
लंबे अकेलेपन का हिस्सा रह जाय...
कितना कड़वा होता है 
ऐसे दिनों को जीते जाना ! लगातार...

तुम क्या जानो मेरी साथी
मैं क्या चाहता रहा
और क्यों, 
उससे महज़ थोड़े से ही फासले पर रहा ? 



प्रेम एक ऐसी नदी बनकर
हमारे बीच बहता रहा है
जिसकी धारों में हमें
उतर कर 

उसी में घुलमिल जाना था आख़िरकार
लेकिन 
आज यह है कि
इसके एक पाट पर तुम हो,
एक पाट पर मैं...
और नदी वही दरम्यान है !
हमदोनों से निस्संग 
यद्यपि हम दोनों को छूती हुई...
 




मजबूर लड़की का काव्य

लड़की आखिर में ...
अंतत:...
रो पड़ती है !
और एक मासूमियत, 
जो कहीं ज्यादा एक उलझन है,
से,
एक ही सवाल कई बार
दोहराती है -- "मैं क्या करूँ ?"...
"मैं क्या करूँ ?"..."मैं क्या करूँ ?"...
इसका जवाब भी 
खुद उस लड़की को ही 
ढूँढना है
उसी खोह में से, उसीकी तलाश में भटकती खुद
रोशनी अपनी ही आवाज़ का पीछा करना है,
जिसमें रहते हुए हजारों वर्षों की 
हमारी सभ्यता के नृशंस इतिहास
के बरक्स
निकालना है अपने लिए हल...
उसे साबित करना है
प्रेम ! 
उसे घोषित करना है
एक युद्ध !
उसे तोड़ना है
बर्फ के शिलाखंड सा 
दैन्य भाव...

उस लड़की को 
जो सिर्फ़ बीस साल की है अभी
और जिसने,
प्यार किया है...
जड़ता के सडांध मारते
चहबच्चे से उबर कर
तब्दील होना है
नदी में
उसी तरह बेकल 
उसी तरह बावरी
उसी तरह प्रेममार्गी
यदि मिलना है अंतत: सागर से...
यदि यह सफर 
आसान नहीं,
यह सफर मुमकिन जरूर है !

सिर्फ़ अपना सवाल बदलना होगा 
लड़की को...!

लड़की को,
अपने आप से दोबारा
पूछना होगा --"मैं क्या नहीं कर सकती !"
गौर कीजिये, यह एक ऐसा 
प्रश्न है, 
जिसके आगे प्रश्नवाचक नहीं, 

कौतूहल का निशान है !

लड़की को यदि स्थापित करना है
अपना प्रेम !
दर्ज़ करनी है 
अपनी नकार,
और छीन कर लेना है
अपने हिस्से का सुख,
तो उसे खुद के ही सामने अपना
रुख तय कर लेना होगा !  

17 टिप्‍पणियां:

  1. तुम क्या जानो मेरी साथी
    मैं क्या चाहता रहा
    और क्यों,
    उससे महज़ थोड़े से ही फासले पर रहा ?

    यह कविता खासतौर पर अच्छी लगी.

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  2. तुम क्या जानो साथी
    कि मात्र सपनों और उम्मीदों के मलबों के सहारे
    जीवन बिताना कितना कठिन है...कुल मिला कर कविताएं अच्छी हैं। शेष शुभकामनाएं।

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  3. गौर कीजिये, यह एक ऐसा
    प्रश्न है,
    जिसके आगे प्रश्नवाचक नहीं,
    कौतूहल का निशान है !

    बहुत ही सुंदर पंक्तियां है

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  4. शेखर की संवेदनशीलता और अभिव्यक्ति का एक दूसरा ही आयाम.
    कोमल भावानाओं से परिपूर्ण कविताएं.

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  5. शुक्रिया दोस्तों, आपकी इनायत का. आभारी हूँ अपर्णा दी का, इतना मान देने के लिए.

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  6. Behad khoobsurat...kavitaye...man se man ko chuti hue...Bina tripathi

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  7. अच्छी कविताएं....शेखर भाई को बहुत-बहुत बधाई...

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  8. वाह गज़ब की कविताये हैं एक से बढकर एक हैं।

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  9. शेखर जी..आपकी कवितायेँ कैसी महकती सी लगतीं हैं..

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  10. अच्‍छी कवि‍ताऍं...मगर थोड़ी तराश बाक़ी है...

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  11. Aparna Didi ..sundar kavitaon kaa mail dikhai de raha hai...aur kuch naam naye hain... jinse parichay ke liye dhanyvaad..

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  12. Didi jis samay maine pehli tipanni ki jaane kyoo kai post kee rachnayen aik saath dikhi atah tippani bhi vaisee hee kee laikin ab is page me sirf aik hee rachnaakaar dikhai de rahe hai...Sekhar Mallik ji...Sundar kavitayen...

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