नरेश चंद्रकर ::


























उपस्थिति::

(प्रेयसी पत्नी प्रबीता के लिये )

तुम उपस्थिति को अर्थ देती हो

फिल्टर से छ्न कर टपकती बूंदों का सजल मद्यम स्वर

तुम्हारी धड़कनों से उठता है

नमक का स्वाद नमक की तरह नहीं लगता

कपड़ों की तह में तुम्हारे हुनर के सबूत छाये रहते हैं

तुम ग्लास भर पानी भी लाती हो

तो वह सिर्फ ग्लास भर पानी नहीं होता

तुम अपनी उपस्थिति में हज़ार-हज़ार तरह से शामिल रहती हो

पृथ्वी घूमती है तुम्हारे साथ

तुम हो तो उम्मीद बची है

मंगल ग्रह पर जीवन होगा

ब्रम्हांड में कई सूर्य चमकते होंगे !!!



मोड़ :: 

तुम गंध की तरह फैल गई हो

सैकड़ों स्पर्श पड़े हैं स्मृतियों में

खूब अगिन चुंबन फैल गये हैं

रोओं के असंख्य छुअन हमारे पास हैं अब

तुम रास्ता न था इसलिये नहीं आयी इधर तक

रास्ते तो अब बने हैं

तुम्हारे और मेरे पद-चिह्नों से
हमारी अनगिन छोड़ी इच्छाओं और अधूरी छोड़ी गयी नींदों से

तुम सच में भी

चलते हुये रास्ते को अधूरा छोड़कर नहीं आयीं इधर

बाक़ायदा मोड़ लिया है !! 



मतीरे  ::
बहुत बरस बाद

चैत की ऐन दुपहरी में दिखा वह

लंबे अंतराल बाद मिले मित्र की तरह

बातों में पीठ पर धौल जमाते हुए

बहुत घुले स्वर में

गहरी मीठी नीली भाषा में

प्रेम का इज़हार करते हुए

यकीन नहीं हुआ इतनी करूण आवाज़ मतीरे की

इतना सघन आग्रह

इतनी आत्मीय चिरौरी

ज्यों घुटने के बल बैठकर चूमता है नायक

मैं चला लिये उसे अपने साथ

रास्ते भर बीते दिन घुमड़ते रहे

याद आया....

पाठशाला से लौटकर छ्बे में रखी कटी फांकें जो दिखी थी

वे मतीरे की थीं

याद आया.......

गर्भवती पत्नी  के लिये

भुवनेश्वर के कल्पना-छ्क से ढूंढे थे मैंने मतीरे

और सुन्दर दो सुड़ौल ढूंढ भी ले आया बाद में

याद आती रही फल के साथ धुली-पुंछी पुरानी बातें

मेरे आगे वह सायकिल भी निकल आयी कबाड़ से

हैंडल पर जिसके नाम खुदा था नाना का

कैरियर पर फंसे थे दो मतीरे

और संभलते हुये घर पहुंचा था

बनती रही कुछ कृतज्ञताएं मन में

इस फल ने दिया ओक से जल पीने जैसा सुख

इसने दिखाये नदियों से भेजे हरे रूमाल

यह मेरे साथ रहा पृथ्वी के प्रतीक-चिह्न सा

हरी-हरी धारियों के भीतर से

लाल-लाल मीठी रसीली हंसी के साथ

आज जब कटा मेरे घर मतीरा

किसी फल ने पहली बार कहा मुझ से

इतने बरस तुम क्यों भूल चुके थे मुझे ! ! 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अलग बात! सुंदर अनुभूति

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  2. वाह! अति सुन्दर व प्यारी रचनाएं!
    नरेश जी,
    "आप हैं तो उम्मीद बची है
    मंगल ग्रह पर जीवन होगा

    कविता के ब्रह्मांड में कई सूर्य चमकते होंगे !!!"
    बहुत-बहुत बधाई!

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  3. नरेश चन्‍द्रकर की कविताओं के भीतर स्‍पंदित होती उनकी मानवीय संवेदना और चीजों के साथ उनके रिश्‍तों की मिठास कहीं अंदर से बांध लेती है। वे अपने संपर्क-सान्निध्‍य में आने वाले अपने प्रियजनों के साथ उन चीजों से भी उतना ही गहरा लगाव व्‍यक्‍त करते हैं, जो हमारे जीवन में आनंद और रस का संचार करते हैं। बेहद खूबसूरत कविताएं। बधाई।

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  4. कविता पढ कर मै जी उठा हूँ

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  5. नामवर सिंह द्वितीय29 सितंबर 2011 को 3:56 am बजे

    अरे भाई नरेश, तुम्हारी कविताएँ बड़ी प्यारी हैं , तुम तो शरद काकस से भी अच्छे कवी हो. मेरी बधाई लो और साहित्य साधना में लगे रहो मुन्ना.

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  6. वाह बाबा क्या अनुभीति है मान गये

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  7. बाबा नरेश चन्द्रकरजी आपकी कविता कहन चोखी है। मतीरा गीत तो मस्त है।

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