शून्य - (1)
शून्य के साथ एक संकट हमेशा होता है
उसे कहीं भी उठाकर किसी खाली जगह में
रखना कठिन होता है
इसलिए कि
वहाँ जगह खाली होने के बावजूद
शून्य रखा होता है
शून्य में
शून्य के ऊपर
शून्य रखने की जगह नहीं होती है
खाली जगह खाली होने के बावजूद
शून्य से भरी होती है
हर खाली में
शून्य का भराव होता है।
शून्य - (2)
शून्य एक भरोसा है
अपने कहे के समर्थन में
मैंने एक उड़ती हुई चिड़िया की तरफ इशारा किया
चिड़िया
जिसके लिए उसका शून्य ही
आज का भरोसा
कल की आश्वासित है
अपने शून्य में ही अपना दिगन्त देखती है।
शून्य क्या है ?
उनसे पूछिए
जिनके पास शून्य भी नहीं होता।
शून्य एक भरोसा है
और यह उतना ही सच है
जितना यह कि
भरोसा एक शून्य नहीं।
शून्य - (3)
शून्य
सिर्फ शून्य नहीं होता
होता तो
यूँ लटकता हुआ दिखाई नहीं देता
माथे पर
हथौड़े की तरह
ठन-ठन चोट करता हुआ
शून्य
सिर्फ शून्य होता तो
इतिहास में कहीं भी दर्ज नहीं होता
शून्य का कोई किस्सा
और सभ्यताओं के विकास में शून्य का हिस्सा
शून्य
सिर्फ शून्य नहीं होता
होता तो चीजों को
एक से दस
दस से सौ
सौ से हजार नहीं करता
और फिर
ज्यादा उधर क्यों खड़े होते
जिधर ज्यादा शून्य होते।
शून्य - (4)
शून्य है तो क्या
शून्य की कोई परिभाषा नहीं हो सकती
शून्य है तो क्या
शून्य किसी भाषा में दर्ज नहीं हो सकता
शून्य है तो क्या
शून्य इतिहास का हिस्सा नहीं हो सकता
शून्य है तो क्या
शून्य सिर्फ शून्य ही रहेगा अंत तक
छिपकलियों के बहाने::
छिपकलियाँ जब भूखी होती हैं
तब भी उतने ही धैर्य से
साध रही होती हैं अपनी दुनिया को
जितने धैर्य के साथ
नजर आती है अमूमन
उनके बारे में यह तय करना
मुश्किल होता है कि
कब वे भरी होती हैं ?
और कब खाली ?
खाली होने की कोई छटपटाहट या
उदग्रता नहीं दिखाती
हर समय नहीं मनाती उसका स्यापा
क्योंकि वे जानती हैं
और
पूरी शिद्दत से मानती हैं
कि खाली होना
सबसे पवित्र होना है।
एक प्रेमिका का शोकगीत::
वह आता मेरे दरवाजे तक
फिर फिर लौटकर
दस्तक देता बजाता 'कालबेल
आती मैं जब तक हो जाता ओझल
ढूँढती बाहर सड़क पर
दूर तक फैली वीरानी में
चटख रंगों की नीरवता में
आकाश की फटी चादर के
ओर-छोर तक
पेड़ों की शाखों पर और
उस पर लटकती
उदास खामोशियों में भी
तलाशती उसे
यहाँ-वहाँ रहस्य की तरह
वह गुजर जाता
मेरे करीब से भी कर्इं बार
और मैं पहचान भी नहीं पाती
कुछ प्रेम कविताएँ::
(1)
ताजे पानी की बात ही कुछ और है
पिघले मोती-सी लगती है हर बूँद
चेहरा देखना कभी ताजे पानी में
उम्र से भी कम नजर आओगे
लगेगा जैसे
कोई दूसरा ही आर्द्र चेहरा
झाँक रहा है शीशे से पानी में
जाने कहाँ-कहाँ के
किस्सों-से भरी होती है ताजी हवा
कभी चिड़िया
कभी धूप
कभी बादल
कभी खेत
कभी ईश्वर
और कभी खामोशी की बातें करती है
लगभग तर्कहीन-असंगत-असम्बद्ध।
ताजी खबर का अपना ही मजा है
ताजी-ताजी रोटियाँ
कुछ ज्यादा ही खा जाते हैं हम
किसे नहीं भाती
ताजे फूलों की महक
और ताजी धूप का गुनगुना स्पर्श।
सच ही तो है,
ताजे पानी
ताजी हवा
ताजी खबर
ताजे फूल
ताजी धूप
और ताजी रोटियों-सा ही तो स्वाद देता है
ताजा प्रेम भी।
(2)
प्रेम में पड़ी लड़की
ठीक से अपनी रोटियाँ भी नहीं बेल पाती है
अक्सर भूल जाती है
दाल में नमक
चाय में चीनी
मिलते ही एकांत ताकने लगती है शून्य
जैसे उपस्थित हो वहीं रोशनी का कोई समंदर
जिसमें डूबकर पारकर ही मिल सकती है
अपनी धरती अपना आकाश।
(3)
प्रेम में पड़ी लड़की
अपने में निर्लिप्त
बतिया रही है देर से मोबाइल पर
बस स्टाप की असुविधा को ठेंगा दिखाते हुए
रास्ता उसे घूर रहा है
गोया वह घूरे पर खड़ी हो!
हवा में बेपरवाही से लहरा रहा है उसका दुपêा
किसी अजान विजय पताका की तरह
और उसकी महक
अफीम के टोटे की तरह फैल रही है।
प्रेम में पड़ी लड़की नहीं जानती
उसकी अतिरिक्त सतर्कता
लापरवाही में कब हो जाती है तब्दील
दुनिया अनुभवी है
ताड़ लेती है
अगल-बगल के बंद दरवाजों वाले घरों में खिड़कियाँ हैं
दरवाजों से बड़ी खिड़कियाँ हैं
लड़की भूल गर्इ थी
क्या-क्या याद रखे प्रेम में पड़ी लड़की!
(4)
आड़ी-तिरछी, दुबली-पतली
किधर से किधर को जाती
ओर-छोर तक फैली गलियों में
जहाँ आँधियाँ भी फँसकर दम तोड़ देती है
और धूप भी रह जाती है अक्सर उलझकर
दम घुटने से हो जाती है निष्प्राण!
हड़बड़ाकर जल्दी-जल्दी अपना बोरिया-बिस्तर बाँधकर
अँधेरा भी भागने की जुगत में रहता है किसी तरह।
ऐसी ही तंग गलियों में इलाकों में
जब देखता हूँ प्रेम को अपने पाँव पसारते हुए
सच,
एक सुखद अचरज से
भर जाता है अंतर का रिक्त
इस भरोसे और आश्वस्ति के साथ
कि आज नहीं तो कल दुनिया भर में
एक ही भाषा बोली जाएगी
एक ही भाषा समझी जाएगी
एक ही भाषा में लिखा जाएगा
आदमी का इतिहास।
अनचाहा उपवास::
आज फिर
उसके हिस्से
कुछ आया नहीं
हणिडया में बचा-खुचा
चिपका हुआ भी नहीं
आज फिर
हो गया उसका
एक और उपवास
ईश्वर जाने
उसे इन अनचाहे उपवासों का पुण्य फल
मिलेगा भी या नहीं !
बहरहाल
वह खुश है
अपने बच्चों को देखकर
जो सोये हैं इत्मीनान से
कुछ खाकर ही।
कविता की चाह::
चाहती तो यह भी हूँ कि
चखकर देखूँ जायका माटी का
थोड़ा-सा असभ्य होते हुए
चाहती तो ये भी हूँ कि
रात के दु:खी चेहरे को
पारदर्शी और पवित्र हँसी की उम्मीद दूँ
चाहती तो ये भी हूँ कि
ऊब की ऊँटनी से उतरकर
चलूँ साथ तुम्हारे कुछ दूर तक
चाहती तो ये भी हूँ कि
पोत दूँ दुनिया को
किसी खिले-खिले रंग से
चाहती तो बहुत कुछ हूँ
मगर
तुम तो जानते हो
मेरे चाहने भर से अब
नींद कहाँ आती है चाँद को
रात की शीतल गोद में लेटकर भी
शून्य के आयामों को प्रकाशित करती सुन्दर कवितायेँ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन!
कवि को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं!
achi kavithayeim hai pradeep. Badhayi
जवाब देंहटाएंशुन्य की महता को समझा ... मेरे भी ब्लॉग पर आये
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावप्रणव अभिव्यक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंप्रिय प्रदीप, कमाल की कविताएं हैं... संख्याओं पर मैं एक काव्य शृंखला लिख रहा था कि शून्य वाली कविता पढ़ी... मैंने भी शून्य पर कविता लिखी है... ये पढ़ लेता तो नहीं लिखता शायद... लेकिन अब अवश्य लिखूंगा, एक चुनौती की तरह... इसका अलग मजा है भाई... आपके भीतर रचनात्मकता बहुत गहरी बसी हुई है... कवि के लिए प्रेम करना बहुत जरूरी है.. प्रेम कविता तो अपने आप आ जाती है जिंदगी में प्रेमिका की तरह... मेरी शुभकामनाएं हैं भाई।
जवाब देंहटाएंbahut sundar lagi.. prem me padi ladki.. shoony prbhavit karti hain..
जवाब देंहटाएंप्रेम मे पड-ई लड-की पढ़ने का अलग ही आनन्द है. उस की बे परवाही बेहद ताक़तवर है . प्रेम या परवाह ; दोनो मे से एक चीज़ कर सकती है वह. शायद हम सब .
जवाब देंहटाएंआप सभी का शुक्रिया
जवाब देंहटाएंकविता पढ़ने का वास्तविक आनंद मिला प्रदीप जी। शून्य तो काफी गहन और निरीक्षण भरी निगाह और सोच का परिणाम नज़र आती है और प्रेम कविता को पढ़ना प्रेम के एहसास का सफ़र तय करने जैसा ही है। बहुत सारी शुभकामनाएँ आगे भी ऐसे ही उम्दा लेखन के लिए।
जवाब देंहटाएंकविताओ ने पता नहीं कहा ले कर मन को खड़ा कर दिया ..
जवाब देंहटाएंआज आपके ब्लॉग में आकर बहुत सुख मिला , दुःख तो इस बात का है कि , मैंने पहले क्यों नहीं आ पाया .
अब आते रहूँगा .
विजय
शून्य, शोक, प्रेम, छिपकली सभी कवि की प्रतिभा का प्रमाण देते हुए...
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