प्यार: एक उम्मीद::
अमलतास के फूलों से
धरती पीली हो गई थी
गाड़ी का कोई पहिया उनको रौंद गया था
अजब मौसम हो गया था
कि हवा तक चुपचाप थी
पत्तों की आवाज़ भी नहीं सुनाई देती थी
मैं मौन था
कि कह रहा था प्यार
तुमने सुना नहीं
शायद...
दूर काले बादल दिखने लगे
तुमने मेरी ओर देखा
मैंने दूर घर की तरफ
दोनों चल पड़े थे
मैंने तुम्हारी ओर देखा और नज़रें
झुका ली थीं
प्यार...
तुमने पढ़ा नहीं शायद...
कितना कुछ पीछे छूट गया था
या हम आगे निकल आये थे
साथ-साथ चलते
तुमने पूछा
घर है साथ है
लेकिन प्यार...
दूर शहर में रोशनी के जुगनू
जगमगाने लगे थे
झिलिर-मिलिर
अँधेरा पीछे छूट रहा था
मैंने कहा था
उम्मीद...
कहने को कुछ रहा नहीं::
कहता तो
शब्दों की तरह झूठा
हो जाता
इसीलिए कहा नहीं
क्या जाने कौन सुन लेता
तुम तक पहुँचने से पहले
इतनी भीड़-भाड़ थी
कि अपने से कहने में भी
जी डरता था
तुमसे भला कैसे कहता
इतना शोर-गुल था
भागमभाग
आपाधापी
कि कहना फ़िज़ूल लगा
जब एकांत मिला
संग मिला
साथ मिला
तुमने मुझे देखा
मैंने तुम्हें
लगा
कहने को कुछ रहा नहीं...
वापसी::
शाम का धुंधला अँधेरा था
गहरी उदासी सी छाई थी
मन में कितना कुछ ठहरा था
मौन पसरा था...
प्यार में सिर्फ कहना नहीं
सुनना भी पड़ता है
जानता था मैं
मगर कितना कह पाया कितना सुन पाया
अब तो लगता है बहुत दूर निकल आया
मौन के सहज सहारे
पास रहने से नहीं दूर रहने से
बचा रहता है प्यार
तुमने दूर से कहा था
मैंने उस दिन तुमको
सबसे पास जान था
कितनी दूरी हो गई है
कि बरसों बरस चलने पर भी
पास नहीं आए
न तुम न प्यार
दूर होते गए
कि कभी प्यार के साथ
वापस आयेंगे...
चाहने से होता क्या है::
मैंने कब चाहा था
बरसों पुरानी यादों की धुंध
के पीछे से निकलकर
कोई सामने आ जाए
करीब…
करीब…
बहुत करीब...
धुंध फट पड़ती है
पीले पड़ते कागजों के
मुड़े-तुड़े
टुकड़ों पर
धुंधली पड़ती
स्याही दमकने क्यों लगी है
मैंने तो नहीं चाहा था...
अक्षर हैं कि तुम्हारी आँखें
गोल-गोल
कुछ भी समझ में नहीं आता है
कभी-कभी कुछ समझ पाना
इतना मुश्किल क्यों होता है?
बदलते मौसम की दहलीज़ पर
कौन रोप गया है हरसिंगार का पेड़
कल अगर धरती फूलों से भर जाए...
मैंने सचमुच नहीं चाहा था
कुछ हो जाए
वैसे एक बात है
चाहने से होता क्या है?
प्यार में डूबी वह::
क्या है
बदहवासी
नामालूम उदासी
न सोना न जागना
सब कुछ करना कुछ भी नहीं की तरह
इस आदमकद आईने के पार से
कोई देखता दिखाई देता है क्या
क्या देखती रहती हूँ
देर-देर तक
कोई तो नहीं है दूर-दूर तक
दूर-दूर की चीज़ें
पास क्यों दिखाई देने लगी हैं
आईने में...
परछाईं इतनी साफ क्यों दिखने लगी है...
क्या है
कोई है जो अच्छा लगने लगा है
कि सब कुछ अच्छा लगने लगा है
मन होता है सब कुछ कह दूं किसी से
कि किसी से कुछ न कहूँ
इस भागती-दौड़ती दुनिया में
क्या कोई आकर मन में ठहर गया है
न न किसी से न कहना
आजकल किसका भरोसा बचा है
फिर ये किसका भरोसा बढ़ता जा रहा है
कितना भी टूट जाए समय का भरोसा
भरोसा फिर भी बढ़ता जा रहा है
क्या है?
ऐसा भी होता है क्या
आखिर पहली बार तो नहीं है
क्या हर बार पहली बार की तरह होता है
प्यार...
वाह-वाह-वाह...इश्क सबको कवि बना देता है...चाहे कहानीकार हो या आलोचक! प्रभात भाई को ढेरों शुभकामनाएँ...लगता है अब आप वीरेंद्र जी को निराश करके ही मानेंगे :)
जवाब देंहटाएंexcellent! accentuating d vry abtruse subject so called love in a vry personal n natural mien............vry well written.
जवाब देंहटाएंपारस्परिकता का गहरा आत्मीय स्वर इन कविताओं की अपनी खूबी है, आत्मिक लगाव, आशाएं, उम्मीदें और विश्वास प्रभात की कविता के केन्द्रीय भाव हैं, अपने समय के बाह्य यथार्थ और मानवीय संबंधों पर पड़ने वाले असर के प्रति भी वे सचेत हैं, यही सजगता इन कविताओं को वृहत्तर सरोकारों से भी जोड़ती हैं। अच्छी कविताएं हैं, प्रभात को हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएं"न न किसी से न कहना
जवाब देंहटाएंआजकल किसका भरोसा बचा है
फिर ये किसका भरोसा बढ़ता जा रहा है
कितना भी टूट जाए समय का भरोसा
भरोसा फिर भी बढ़ता जा रहा है"
*
कामनिकालू समय की तेज बेरहम धार संबंधों को चाहे जितनी सफाई से काट दे, इंसान सम्बन्धहीन जीवन जी नहीं सकता. और ऐसी स्थिति को ये पंक्तियाँ खूब उजागर कर रही हैं.
कि हवा तक चुपचाप थी
जवाब देंहटाएंपत्तों की आवाज़ भी नहीं सुनाई देती थी
मैं मौन था
कि कह रहा था प्यार....
vaah
ki pyaar door rahne se badhta hai. ....
man ke bheetar utrti chali jaati hai ye maun samvednaayen..kavitaaye.
"प्यार में सिर्फ कहना नहीं
जवाब देंहटाएंसुनना भी पड़ता है" जीवन की गति अपनी तेज रफ़्तार के साथ चलती जा रही है ....जीवन में कुछ पाने की चाह ,,कुछ अधिक पाने की चाह में, कुछ सामाजिक परिस्तिथियों के कारन और कुछ वेक्तिवादी आत्ममंथन के बीच हम अपनी कुछ खुशिया पीछे छोड़ आते है. "धुंधली पड़ती
स्याही दमकने क्यों लगी है
मैंने तो नहीं चाहा था...
अक्षर हैं कि तुम्हारी आँखें
गोल-गोल" ....और वही आगे हमारी स्मृतियों में आकर हमें जकझोर देती है,,, इसका बड़ा सूछ्म वर्णन इनकी कविताओ मिलता है ...अविनाश सिंह
bahut hi sunder kriti
जवाब देंहटाएंadbhut
aap bhi aaiye
Naaz
प्रभात रंजन को एक कहानीकार के रूप में जानता था .. ये कविताएँ विस्मित करती हैं. ऐसे लगता है हर रचनाकार मूल में कवि होता है.बधाई.
जवाब देंहटाएंअरुण जी से सहमत :)बधाई प्रभात रंजन जी .बहुत अच्छी कवितायेँ
जवाब देंहटाएंsir bahut he sundar kavita hai bahut he sundar
जवाब देंहटाएंप्रेम के स्वीकार और नकार के बीच ,किसी विलक्षण स्थिति को सूक्ष्मता से पहचानने का गंभीर प्रयास करती हैं ये रचनाएँ ! अद्भुत ! बधाई प्रभात जी !
जवाब देंहटाएंतुमने मेरी ओर देखा
जवाब देंहटाएंमैंने दूर घर की तरफ
+++
मन में कितना कुछ ठहरा था
मौन पसरा था...
प्यार में सिर्फ कहना नहीं
सुनना भी पड़ता है
बहुत ही गहरी अनुभूति है भाई!
मैंने कब चाहा था
जवाब देंहटाएंबरसों पुरानी यादों की धुंध
के पीछे से निकलकर
कोई सामने आ जाए
करीब…
करीब…
बहुत करीब...
मुबारक़ और शुक्रिया भी... इतनी दिलकश कविताओं के लिए
अच्छी कविताएं हैं, प्रभात को हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंप्रिय महोदय अपने बहुत अच्छा लिखा है.
जवाब देंहटाएंभगवान आपका भला करे हमेशा.
Frasat vajih
प्रेम को सहज उष्णता के साथ सरल मगर छू जाने वाले शब्दों, अभिव्यक्तियों में बयां करती ये कविताएँ दिल में सीधे उतर गयीं, आशा है कि प्रभात भाई की कहानियों के साथ-साथ सुंदर कविताएँ भी पढ़ने को मिलती रहेंगी.
जवाब देंहटाएंमैंने दूर घर की तरफ
जवाब देंहटाएंवाह... वाह..
जवाब देंहटाएं"प्यार ही प्यार बस हर सिम्त नज़र आता है"
....अपने आप से भी...बेहतर तरीके से बातें की जा सकती हैं...कहा जा सकता है ख़ुद को .... किसी और को कहते हुए ... समझा जा सकता है सब कुछ .... बिना समझाए... सच है ... कहा कैसे जा सकता है..!
जवाब देंहटाएंइस भागती-दौड़ती दुनिया में
जवाब देंहटाएंक्या कोई आकर मन में ठहर गया है
न न किसी से न कहना
आजकल किसका भरोसा बचा है
फिर ये किसका भरोसा बढ़ता जा रहा है
कितना भी टूट जाए समय का भरोसा
भरोसा फिर भी बढ़ता जा रहा है bahut sundar
’कवी’ प्रभात रंजन को पढ़ना एक अलग ही अनुभव दे रहा है मुझे....प्रेम की बारिश उनपर अनवरत होती रहे...
जवाब देंहटाएंढेरों बधाईयां...
सहज कविताएं, किंतु कहीं-कहीं तो असहज कर देने वाली। अत्यंत संवेदित कर देने वाली जीवंत रचनाएं.. कवि को बधाई और आपका आभार..
जवाब देंहटाएंतुमने दूर से कहा था
जवाब देंहटाएंमैंने उस दिन तुमको
सबसे पास जाना था
कितनी दूरी हो गई है
कि बरसों बरस चलने पर भी
पास नहीं आए
न तुम न प्यार
दूर होते गए
कि कभी प्यार के साथ
वापस आयेंगे...
बेहतरीन ...देर से ही सही , एक बार पुनः बधाई स्वीकारें
अंतिम कविता अच्छी पंक्तियाँ।मन से सच जुडी हुई हैं कवितायेँ यह तो जरूर पता चलता है।
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