नीलोत्पल ::






























1
एक बबूल उग आया है मेरे भीतर भी


तुम्हें देखा वर्षों के बाद

लगा एक बबूल उग आया है
मेरे भीतर भी

तुम्हारी बारीक छोटी पत्तियां झरती हैं

याद आते हैं कई चेहरे
जिन्हें छोड़ आया समय की धूल में
उन्हें प्यार करता हूं
अपनी इस खामोश आवाज़ के लिए

जैसे कहीं से भी उग आती है

तुम्हारे भीतर टहनियां,
पत्तियां, पीले फूल, कांटे,
छाल, रंग, गंध, गोंद , लोच और जड़ें

मैं भी कई जगह से कांटेदार हूं, पत्तेदार हूं

यह पृथ्वी रिसती है मुझमें
जगह-जगह से टपकता है लसा
तुम्हारे उग आए झरनेदार रूप की तरह

तुम्हारी ढेरों पत्तियां झरती है दिन-रात

जैसे वे तैरती हैं नदी के ऊपर
ढेरों बगुले उन्हें चीरते हुए निकल जाते हैं
जैसे वे पृथ्वी पर खिलखिलाती है उनमुक्त
यह इतना कंपनदार अहसास
कि हर एक पेड़ बजता है
तुम्हारी अकंपन आवाज़ में

तुम्हारी लम्बी छितरायी टहनियां

उसी तरह छूती हैं आकाश
जैसे चिड़ियाएं बादलों पर उतरती हैं
और एक लकीर उभर आती है खालीपन के दरमियान

तुम्हारी कुरूपता एक शब्द, एक रंग रचती है

जब कोई तुमसे डरता है
मैं देता हूं तुम्हारे माध्यम से
एक खुला निमंत्रण
आसपास की सोयी, सहमी चीज़ों और लोगों को

2.

मेरी छाती धड़कती है निर्वस्त्र मन को छूने पर


वे अनियमितताएं और असभ्यता पसंद है मुझे

जहां रखना नहीं होता ख़ुद को इस तरह
कि तख़्ती लगाकर घूमना पड़े अपने चरित्र की
छोड़ना पड़े अपना बनाया हुआ आकाश
जहां साधु और तंत्र चरितार्थ नहीं होते

ये एक समय की बानगी है कि

कोई भी ढंग, बेढंगा कहा जा सकता है

मेरे पास वे शब्द भी हैं

जिन्हें निर्लज्जता से छूता हूं
वे जीवन जिनकी धरती नहीं
उनमें रखता हूं कदम

मेरी छाती धड़कती है

निर्वस्त्र मन को छूने पर
यहां नहीं होता किसी तरह का मान या अपमान

बस यह घूमती पृथ्वी

और उनमें घोले हुए हमारे रंग
जिनकी सूरतें दिखती हैं आईने के पार भी

मैं जिस सूरज को देखता हूं

वह आज भी रोशनी डालता है
उन अंधेरी जगहों में
जहां नैतिकता और सच नहीं पहुँचते

जब भी यह बात ध्यान आती है

कि जीवन में कवि होने का अर्थ ही
चढ़ा दिया जाना है अपने बनाए सलीब पर
तब दर्द हमारे भीतर आता है इस तरह
जैसे हम उतार रहे हों उलझी पतंगें  पेड़ों से

अंततः हम सफल नहीं होते


क्योंकि हम सफल होने नहीं आए हैं

हम लौट जाते हैं अपने बनाए जंगलों में
जहां हम शुरुआत करते हैं पत्थरों से
और पत्थर कहीं से भी अनैतिक और असभ्य नहीं ।


3

तुम जो मेरी प्रेमिका नहीं हो

तुम जो छत पर हाथ

टिकाए खड़ी हो
तुम्हारे हाथ और बाल ढंके हैं
शाल के भीतर
धूप सेंकते हुए तुम्हारा चेहरा
तपता है
अलाव में सेंके हुए अनाज की तरह

उस वक्त मैं देखता हूं तुम्हें

तुम जो मेरी प्रेमिका नहीं हो
ना ही हमनें मिलकर सपने देखे हैं
(हम कैद हैं अपने-अपने सीखचों में )

मैं देखता हूं तुम्हारी आंखों में

गुलमोहर की शांत झरती पत्तियां
तुम एक गहरी लम्बीं सांस लेती हो
तुम्हारी उदासी में ढ़ेरों पक्षी विदा लेते हैं

लेकिन हमनें कोई विदा नहीं ली अब तक

हम नहीं जानते इस बारे में
हम अस्पष्ट हैं

तुम जो मेरी प्रेमिका नहीं हो

मैंने तुम्हें कभी कोई ख़त नहीं लिखा
लेकिन हमारी आँखें जानती हैं
कि हमनें सदियों प्रतीक्षा की एक दूसरे की

हमनें वादा नहीं लिया

लेकिन मैं देखता हूं
शाम का सूरज तुम्हारे चेहरे पर चमकता है
लिखता है हमारी अस्पष्ट कहानी को
अपने महान अंतरालों के बीच

4.


मैं उनकी परछाइयाँ चीह्नता हूं


मैंने सारी नैतिकताएं ढ़ोयीं, सारे आवरण हटाए

तोड़ी पत्थरों की ख़ामोशी
सारी जड़ों को दी रोशनियां
आकाश और नमक को जगह दी भीतर
मैं दरिया लिए चलता रहा

मैं उन सारे नरकों  में गिरा

जो आवाज़ों और रोटी के टुकड़े
गंदे कपड़ों और ठसाठस भरे थे लोगों की अनिच्छाओं से

उन्हें आवाज़ देना मुमकिन नहीं

वे सच नहीं थे
सच का आभास या कुछ और

उनकी इच्छाएं शून्य में गिरती बिजलियां थीं


वे सिर्फ़ भरे जा रहे थे

कभी चूने की डिब्बियों में,
कभी चादरों में रेशम का टांका जडते अंधेरों के घरों में
कभी बोल्टों में नटों की तरह लपटे और उतारे जाते
ढीले और कसे जाते,

तंग बदबूदार गलियों में

लटके तारों की झूलती
परछाइयों  की तरह
उन्हें सुलाया नहीं जा सकता

मैं उनकी
परछाइयाँ  चीह्नता हूं
एक ख़बर, एक रिपोर्ट
अगले दिन मेज़ पर कतरन की तरह पड़ी होती है

संभव नहीं है

काग़ज़ का टुकड़ा सहलाता हो
उनकी आत्मा में धंसे हुए तीरों को
जो वे जन्म से लेकर आए थे
और कुछ उन्हें दिये गए उपहार स्वरूप

यह वास्तविकता का भ्रम नहीं

मैं उन सारे नर्को में हूं
जिन्हें बदला नहीं जा सकता

5.

पतली-से-पतली टहनी के मुड़ जाने पर
वे चौंकती नहीं
और न टूटने पर कोई आश्चर्य करतीं

वे एक टहनी छोड़ती हैं

दूसरी पर जाकर अपने पंख तोलती हैं
और तीसरी पर चुपचाप उतरकर
...

छेड़ देती हैं ख़ामोश सितार

वे हर तरह के संगीत से सम्पन्न हैं

दाने चुगती हैं और समा जाती है
पेड़ की शिराओं में रक्त की तरह

वे सभी सामूहिक रूप से उड़ती हैं आकाश में

मुक्ति के कलरव बिखेरती हुई
और पुनः छू लेती हैं धरती
अपनी आत्मीयता के इन्द्रधनुष बनाती

वे बनाती हैं अपने नीड

पेड़ की सबसे संवेदनशील जगह पर
वहाँ रखती हैं अपने हिस्से का
अछूता प्रेम

वे वसंत की सजीवता

पतझ़ड़ का उत्थान
और जीवन का जीवंत प्रयोजन हैं


 














(painting by :: Marilyn Mellencamp)

12 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद खूबसूरत....
    हर कविता लाजवाब....

    नीलोत्पल जी को बधाई...
    शुक्रिया आपका...
    अनु

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  2. आपका इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (10-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  3. मैं जिस सूरज को देखता हूं
    वह आज भी रोशनी डालता है
    उन अंधेरी जगहों में
    जहां नैतिकता और सच नहीं पहुँचते
    गीत गीत माधुरी लिए है रचना .पूरा एक रचना संसार है अतीत ,व्यतीत और अ -व्यतीत है कवि की रचनाओं में ,हर अंश रचना का अपनी रवायत ,प्रवाह भाव ,अनुभाव लिए है ,.

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  4. .पूरा एक रचना संसार है अतीत ,व्यतीत और अ -व्यतीत है कवि की रचनाओं में ,हर अंश रचना का अपनी रवायत ,प्रवाह भाव ,अनुभाव लिए है ,.बेहद सशक्त रचना और उसका संसार है .भावों का तराना है .

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  5. आपका रचना-संसार बहुत अनुभूति-प्रवण है !

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  6. इन दिनों के लिखने वालों में मेरे पसंदीदा हैं - नीलोत्पल.

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  7. जब भी यह बात ध्यान आती है
    कि जीवन में कवि होने का अर्थ ही
    चढ़ा दिया जाना है अपने बनाए सलीब पर
    तब दर्द हमारे भीतर आता है इस तरह
    जैसे हम उतार रहे हों उलझी पतंगें पेड़ों से

    अंततः हम सफल नहीं होते

    क्योंकि हम सफल होने नहीं आए हैं
    हम लौट जाते हैं अपने बनाए जंगलों में
    जहां हम शुरुआत करते हैं पत्थरों से
    और पत्थर कहीं से भी अनैतिक और असभ्य नहीं ।-----वाह बहुत प्रभावी पंक्तियाँ सुन्दर शब्द संयोजन ,भाव बहुत शानदार अभिव्यक्ति बधाई आपको

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  8. प्रिय ब्लॉगर मित्र,

    हमें आपको यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है साथ ही संकोच भी – विशेषकर उन ब्लॉगर्स को यह बताने में जिनके ब्लॉग इतने उच्च स्तर के हैं कि उन्हें किसी भी सूची में सम्मिलित करने से उस सूची का सम्मान बढ़ता है न कि उस ब्लॉग का – कि ITB की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगों की डाइरैक्टरी अब प्रकाशित हो चुकी है और आपका ब्लॉग उसमें सम्मिलित है।

    शुभकामनाओं सहित,
    ITB टीम

    http://indiantopblogs.com

    पुनश्च:

    1. हम कुछेक लोकप्रिय ब्लॉग्स को डाइरैक्टरी में शामिल नहीं कर पाए क्योंकि उनके कंटैंट तथा/या डिज़ाइन फूहड़ / निम्न-स्तरीय / खिजाने वाले हैं। दो-एक ब्लॉगर्स ने अपने एक ब्लॉग की सामग्री दूसरे ब्लॉग्स में डुप्लिकेट करने में डिज़ाइन की ऐसी तैसी कर रखी है। कुछ ब्लॉगर्स अपने मुँह मिया मिट्ठू बनते रहते हैं, लेकिन इस संकलन में हमने उनके ब्लॉग्स ले रखे हैं बशर्ते उनमें स्तरीय कंटैंट हो। डाइरैक्टरी में शामिल किए / नहीं किए गए ब्लॉग्स के बारे में आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।

    2. ITB के लोग ब्लॉग्स पर बहुत कम कमेंट कर पाते हैं और कमेंट तभी करते हैं जब विषय-वस्तु के प्रसंग में कुछ कहना होता है। यह कमेंट हमने यहाँ इसलिए किया क्योंकि हमें आपका ईमेल ब्लॉग में नहीं मिला। [यह भी हो सकता है कि हम ठीक से ईमेल ढूंढ नहीं पाए।] बिना प्रसंग के इस कमेंट के लिए क्षमा कीजिएगा।

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