सारुल बागला ::




एक बीस वर्ष के युवा को इधर मैं जीवन के मुहावरे को जीता देख रही हूँ -जहाँ संघर्ष तो है पर उजाले की निश्चित सीमाओं से बाहर स्वावलंबन का अपना जगत भी है। सारुल में असीमित संभावनाएं हैं। मृतप्राय हो चुकी लीक से हटकर कवि सायास नए रास्तों का पथिक होना चाहता है। फूलों को इन कविताओं में यथार्थ के मौसम बड़े होते नज़र आये -जहाँ थोड़ी सी हंसी के साथ आसुंओं  की तरलता भी है। गहरी संवेदना की ये कविताएँ अपने शिल्प में भी अनूठी हैं . स्वागत सारुल का और उनके जन्मदिन पर उनको अशेष बधाई।









उजाले की सीमाएं

उजाले की निश्चित सीमाएं हैं 
और आप उजाले में बैठकर
दूर-दूर तक फैला अंधेरा
कदापि नही देख सकते हैं
हांलाकि आप
उजाले के घेरे को
वहां भी ले जा सकते हैं
जहाँ कभी उजाला न रहा हो
और उज्ज्वल कर सकते हैं
अंधेरे का वह कोना जो
सदियों से अंधकारमय था
परन्तु आप शायद ही बता सकेंगे
कि उजाले के बाद
कहाँ तक फैला है अंधेरा
जो कभी भी टूटा नही है।
      



बबूल 


सड़क के किनारे खड़ा
बबूल का ठूँठ 
जिसमें गति की असीमित सम्भावनाये हैं
अब भी खड़ा है
जंगल को जाने वाली सड़क के
बाईं ओर 
सूख चुके हैं
जिनके आँसू 
और निर्जीव हो गये हैं
तने के गालों पर
जिसके सड़े हुए पीले पत्तों की सड़ांध 
मृतप्राय हो चुकी है
अब लीक पर आने का
प्रयास कर रहा है
बबूल का ठूँठ 
और जंगल को जाने वाली
सड़क के बाईं ओर खड़ा है।
       



कल्पना के देश में


तड़पती हुयी घास पर
कुचल दो असभ्य नंगे बच्चे
रोक दो यवनिका को भेद कर 
आने जाने वाले चेहरे
अनसुनी कर दो
आकाश से आती
चीखती आवाजों को 
जलते हुये शहर में
राख कर दो
इस सदी की सारी असुन्दरता 
घृणा की दृष्टि डालकर
जला दो इन्हें
इनकी ही हवस की आग में 
तुम पथिक हो
कल्पना के देश के 
कल्पना के देश में
नहीं जा सकती घुटती साँसें 
नंगे बच्चे आहत आहटें 
इसलिए खत्म कर दो डूबते उच्छवास।
अगर तुम ये पाप न कर सको
तो गुजर जाओ
ऊपर ही ऊपर 
काँटों के देश से
कल्पना के देश में।
       




मैं बड़ा हो जाऊँगा


धीरे-धीरे मै बड़ा होता जाऊँगा

और खत्म होती जायेगी मेरी हंसी 

हंसने से पहले याद आ जाएगा  

किसी रोते हुये पेड़ का चेहरा
और जब भी मैं रोऊँगा
तो दूसरों की हंसी
मेरा कलेजा चीरने लगेेगी।
बढ़ती जायेगी मेरी गम्भीरता
और नष्ट होती जायेगी मेरी उद्दण्डता
समझ जाऊँगा मै अपना ना समझ होना
संकोच होने लगेगा जिद करने के लिए।
बढ़ती जायेगी मेरी बात की कीमत
दादी अनसुनी नही कर पायेंगी मेरी बात
धीरे-धीरे मुझमें कई परिवर्तन आ जायेंगे
और मै बड़ा हो जाऊँगा।




कविता में बारिश


आज कविता को बुखार है

और बारिश हो रही है
बाहर की बारिश के विपरीत
कविता के अन्दर भी
बारिश हो रही है।
उसके पैरों मे बादल गरज रहे है
और सिर  में बूँदें गिर रही हैं
टिप-टिप-टिप।
बाहर की बारिश के विपरीत
कविता में होने वाली बारिश से
पत्तों  के निचले पहलू
जो प्रायः अनभीगे ही सूख जाते थे
पूरी तरह भीगे रहें हैं
और मजाक कर रहें हैं
ऊपर के पहलू से।
कविता की वर्षा में
बादल धरती पर टहल रहें हैं
और गुरूत्वाकर्षण के विपरीत
आज सारा आकाश भीग रहा है
वह भी आनन्द ले रहा है

 टिप-टिप बारिश का 

       



एक घण्टे का समय


एक घण्टे में

लिखी जा सकती हैं
तीन कविताएँ 
और पढ़ा जा सकता है
भारती जी का
मर्मस्पर्शी काव्य।
एक घण्टे में चुप कराया जा सकता है
रोते हुये बच्चे को
और आंसुओ की धार  से
धुला जा सकता है
मन पर जमा
वर्षा का कलुष
और उतारी जा सकती है
हड्डियों तक पहुंच चुकी
थकान

यहाँ तक कि एक घण्टे में

जी जा सकती है
पूरी जिन्दगी
परन्तु सत्य यह है
कि एक घण्टे में 
कमाई जा सकती है
सिर्फ एक जली हुयी रोटी
यदि आपके पास वह भी न हो।


आजादी के बाद


आजादी के बाद

हर पीढ़ी ने
छिटकाये हैं अपने-अपने बीज
और उगी खड़ी है
खिचड़ी फसल
जिसें काट लेना चाहते हैं
हमारे प्रतिनिधि
समय से पहले।


       

17 टिप्‍पणियां:

  1. संभावनाएं हैं ..अपर्णा और सारुल बागला..दोनों बधाई के पात्र है

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  2. "फूलों को इन कविताओं में यथार्थ के मौसम बड़े होते नज़र आये -जहाँ थोड़ी सी हंसी के साथ आसुंओं की तरलता भी है। गहरी संवेदना की ये कविताएँ अपने शिल्प में भी अनूठी हैं ." युवतर कवि सारुल बागला की इन दूधिया कविताओं पर यह प्रस्‍तुति टिप्‍पणी इतनी सटीक है कि और कुछ कहने की जरूरत ही नहीं रह जाती। बीस बरस की उम्र में जिसे इस गहन सचाई को बोध हो जाए कि 'उजाले में बैठकर दूर-दूर तक फैला अंधेरा कदापि नहीं देख सकते' या कि 'धीरे धीरे मैं बड़ा होता जाउंगा और खत्‍म होती जाएगी मेरी हंसी' उसके काव्‍य बोध और सघन संवेदना पर कुछ भी अतिरिक्‍त टिप्‍पणी करते हुए संयम ही बरतना बेहतर है। सारूल को इन खूबसूरत और महत्‍वपूर्ण कविताओं के लिए सलाम ।

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  3. कविताएं भी कवि के साथ बड़े होने की राह पर हैं..
    सारूल को शुभकामनाएं और अपर्णा को धन्यवाद...

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  4. बहुत सारी संभावनाओं को जन्म देते आपके शब्द लिखते रहिये ईश्वर दयालुं हों हमेशा ...:)

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  5. बड़ी संजीदगी से लिखी गईं बहुत ही मर्मस्पर्शी कविताएं हैं। सारुल भाषा को जिस शुद्धि और लोच के साथ प्रयोग में लाते हैं, वैसा नए कवि कम ही कर पा रहे हैं। बहुत सारी शुभकामनाएं, प्रिय सारुल....खूब पढ़ो और बस लिखते रहो।

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  6. सारुल की इन कविताओं को पढ़कर हिंदी कविता के भविष्‍य के प्रति गहरी आश्‍वस्ति होती है। गहरी संवेदनाएं यूं ही कविता में आकार लेती रहें, यही शुभकामना है।

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  7. बहुत सार्थक कवितायेँ, इस उम्र में ये कवितायेँ यकीनन भविष्य के प्रति एक उम्मीद जगाती है, युवा कवि को अनंत शुभकामनायें, फूलों का शुक्रिया

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  8. ्सभी कवितायें सार्थक और गंभीर हैं …………काफ़ी संभावनायें हैं ………आज ऐसी ही कविताओ की जरूरत है और वक्त के साथ इनमे और परिपक्वता आयेगी ………निसंदेह्।

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  9. सारुल की कवितायें उसकी उम्र से बहुत बड़ी हैं,जब वो बड़ा होगा तो कहर ढायेगा, ये निश्चित है ।

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  10. ''धीरे-धीरे मै बड़ा होता जाऊँगा
    और खत्म होती जायेगी मेरी हंसी

    हंसने से पहले याद आ जाएगा
    किसी रोते हुये पेड़ का चेहरा
    और जब भी मैं रोऊँगा
    तो दूसरों की हंसी
    मेरा कलेजा चीरने लगेेगी।''..........!!!

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  11. बढ़िया कविताएं .... हिन्दी कविता के लिए शुभ संकेत , बड़े होते जाओ सारूल हिन्दी कविता का भविष्य ऐसी ही कविताओं से समृद्ध होगा । शुभकामनायें

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  12. धीरे-धीरे मै बड़ा होता जाऊँगा
    और खत्म होती जायेगी मेरी हंसी
    हंसने से पहले याद आ जाएगा
    किसी रोते हुये पेड़ का चेहरा
    और जब भी मैं रोऊँगा
    तो दूसरों की हंसी
    मेरा कलेजा चीरने लगेगी''...!!..............इतना गांभीर्य और विचारशीलता ...वो भी इस उम्र में !

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  13. आजादी के बाद
    हर पीढ़ी ने
    छिटकाये हैं अपने-अपने बीज
    और उगी खड़ी है
    खिचड़ी फसल
    जिसें काट लेना चाहते हैं
    हमारे प्रतिनिधि
    समय से पहले।
    सामयिक और प्रासंगिक भी......

    हंसने से पहले याद आ जाएगा
    किसी रोते हुये पेड़ का चेहरा
    और जब भी मैं रोऊँगा
    तो दूसरों की हंसी
    मेरा कलेजा चीरने लगेेगी।
    बढ़ती जायेगी मेरी गम्भीरता...संवेदनशील

    कवि को बधाई, ब्लोगर का धन्यवाद!

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  14. उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  15. Saarul aap ko hardik shubhkaamnain. Kavitain achchee lagi. Abhaar. - kamal jeet Choudhary ( j and k )

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