धार पर पीले पुष्पों की बारिश ::
उस देह में
एक रुकी हुई नदी थी
छूते ही उमड़ पड़ी
वर्षों के खर-पतवार कीच-क्लेश बह गए
बह गया बासीपन, उदासी
स्वच्छ जल में अपना हँसता हुआ चेहरा देखते हुए
उसे सहसा विश्वास नहीं हो रहा था
धार पर यह पीले पुष्पों की बारिश थी.
2.
दर्पण पर धूल की एक परत थी
उदासी ने लिखा था वहाँ एक शोकगीत
वर्जना के किले में उसकी आकांक्षा
जितने कि उसके बसंत
पहली दस्तक पर
धीरे से खुले भारी दरवाज़े
भीगे अँधेरे का रहस्य धीरे से अनावृत हुआ
आरक्त तलवों के पास आ बैठा सूर्य
उस खिले पुष्प की लय में
परागकण कि तरह खिलखिलाता रहा उसका कण्ठ
यह हँसी उसकी अपनी ही थी.
कोई तो जगह हो::
कहाँ हो तुम
मन के घने वन में पुकारता हूँ
यह पुकार जो अनंत कामनाओं का अक्षत जंगल है
एक कामना अपने को खो देने की
सुन रही हो
इस आवाज़ के एक सिरे पर तुम अब भी चुप हो अपने अरण्य में गुम
हम दोनों के बीच
हम दोनों के लिए कोई तो जगह होगी.
तुम अब ::
तुम्हारे साथ कोई तुम सा याद आता है
तुम्हारी हंसी में वही परिचित से फूल
प्रारम्भ से ही अन्त की आहट
तुम्हारी खुशी में उस खुशी के मुरझाए हुए दुःख
इस अपनेपन में मुझे दिखती है
बेगानेपन की वह पगडण्डी
दलदल के ऊपर कुहरे से ढकी हुई
इस प्रेम में
प्रेम के ध्वंस की उदासियाँ
पार करता हूँ वह नदी,वही नदी
तट का बालू हमारे बीच
उसके नाम से बुला बैठता हूँ तुम्हे
इस प्रेम में उस प्रेम की शुरुआत.
अभिसार ::
वहाँ मुझे एक नदी मिली धीरे धीरे बहती हुई
एक वृक्ष खूब हर भरा
अजाने पक्षिओं की चहचहाहट
खूब रसीले फल
एक फूल अपने ही मद में पसीजता हुआ
एक भौरे की इच्छा है कि वह रहे तुम्हारी पंखुडियों में
शव होने तक.
लय का भीगा कंठ::
कह रहा था मैं कुछ
ठीक उसी तरह जैसे बांसुरी के इक छोर पर कहती है हवा
और जो देर तक गूंजता रहता है
मन की बावड़ी में
जिसकी सीढ़ी पर बैठे-बैठे
भीग जाती हैं आँखें
यह किसका रुदन है
कौन सी भाषा में हिचकियाँ बुदबुदाती हैं अपने पश्चाताप
न जाने क्या कहा हवा ने
और क्या तो सुना बाँस के उस खोखले टुकड़े ने
जहां कब से बैठा था वह सघन दुःख
जो इस धरती का है
किसी दरवेश, फकीर, संत का है
कि प्रेम रत जोड़ो के सामूहिक वध पर
विलाप करते उस क्रौंच का है
जो रो रहा है तबसे
जब अर्थ तक पहुचने के लिए
शब्दों के पुल तक न थे
और तभी से भीगा है
लय का कंठ
और जिसे कहने की कोशिश में रूँध जाता है मेरा गला.
कितनी सुंदर होती हे प्रेम की पराकाष्ठा ..
जवाब देंहटाएंएक भौरे की इच्छा है कि वह रहे तुम्हारी पंखुडियों में
शव होने तक.
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर ...बधाई
गजब की सुंदर ऐन्दिक कविताएं हैं.परंपरा से जुडीं...गहरे भावबोध से सम्पन्न.अरुन को बधाई.
जवाब देंहटाएंमैं चकित हूँ इन्हें पढ कर.
जवाब देंहटाएंकह रहा था मैं कुछ
ठीक उसी तरह जैसे बांसुरी के इक छोर पर कहती है हवा
और जो देर तक गूंजता रहता है
मन की बावड़ी में
जिसकी सीढ़ी पर बैठे-बैठे
भीग जाती हैं आँखें
अरूण जी अद्भुत अनुभव रहा इन्हें पढना, लगा मेरी बात नितांत नए ढंग कर कौन कह रहा है? जो कवि स्त्री मन की बात इस सहजता से कह जाए वह सफल कवि !!
'...एक भौरे की इच्छा है कि वह रहे तुम्हारी पंखुडियों में
जवाब देंहटाएंशव होने तक...'
कमाल की अभिव्यक्ति...
तुम्हारे साथ कोई तुम सा याद आता है
जवाब देंहटाएंतुम्हारी हंसी में वही परिचित से फूल
प्रारम्भ से ही अन्त की आहट
तुम्हारी खुशी में उस खुशी के मुरझाए हुए दुःख
इस अपनेपन में मुझे दिखती है
बेगानेपन की वह पगडण्डी
बहुत ही सुंदर अनुभूति है अरुण जी!
इन रचनाओं को देख मन में यही आता है -
जवाब देंहटाएंहे मानव ! अद्भुत है ,अवक्त को व्यक्त करने की
तेरी अदम्य इच्छा और अथक प्रयत्न !
एक सीमित शब्द में कैसे असीमित भाव और अर्थ
को भरता है ! धन्य है तू !
बहुत ही मर्मस्पर्शी कविताएं हैं, अरुण, बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत कविताएँ .....
जवाब देंहटाएंकितना कुछ अनकहा-सा कह दिया है आपने......
बहुत बहुत बधाई अरुण जी!
बेहतरीन कविताएं!!वाकई अद्भुत! "धार पर पीले पुष्पों की बारिश" को पिछले सप्ताह भर में कई बार लौट-लौट कर पढ़ा और मंत्रमुग्ध हुआ हूं.
जवाब देंहटाएंअरूणजी इन खूबसूरत कविताओं के लिये बधाई के पात्र हैं. उनकी रचनाओं का और भी बेसब्री से इंतज़ार रहा करेगा अब...
शिल्प की नफासत देखने लायक है. अरुण देव की कविता गहरे प्रभाव छोड़ती हैं . फॉण्ट कुछ बड़ा नही हो सकता क्या? मेरी नज़र अब कम्ज़ोर हो रही है....
जवाब देंहटाएं