अर्पिता श्रीवास्तव ::


























दिल 


दिल का
एक छोटा सा हिस्सा
रोशन धूप से
भीगा जल से
पसीजा ओस से
सहेजा स्नेह से
पगा भावों से
मचला इच्छाओं से
बहका आमद से
और
फिर डूब गया
पूरा का पूरा
प्यार से...... 


प्रेम 
 
ज्यादा..................
ज्यादा-ज्यादा.......
और ज्यादा...........
और.....................
और.....................
ज्यादा..................
...........................
सीमाहीन.............
विस्फोटक............
खुद में समो
डुबोता................
तैराता................
उबारता...............प्यार. 


प्रेम में 

दान-प्रतिदान
चेतन-अचेतन
कौतुक-विस्मय से परे
एक द्वीप है छोटा-सा
झिलमिलाती किरणों का
जगमगाते संसार का.....
स्नेह की दूब में
महकते पल्लव
चहकते तरूवर
मिलते सुर आत्मा से
देते नवाचार जीवन का... 


तुम 
 
फूल में स्पर्श
पत्तियों में साँसें
टहनियों में आलिंगन
तनों में बहती नदी
नदी में लहरें
लहरों में स्वप्न
स्वप्न में तुम.....
प्रसरित रोम-रोम में......... 


चाह 
 
बरफ-सी सर्द
अगन-सी उष्मा भरी
सूर्य-किरणों-सी सुनहरी
धरती से आकाश के विस्तार में विचरती
हवा-सी मदमस्त
सागर की लहरों-सी अलमस्त
मिट्टी की सोंधी महक से भरी
जल-सी शीतल...निर्मल
पुष्पदल-सी कोमलता धरे महकूं
बहकूं....
चहकूं.....
गरजूं......
बरसूं......
छा जाऊं चहुंओर
तुम्हारे साथ..
तुम्हारे साथ!!! 


याद 
 
खामोश..
वीरान शाम के सीने से
अपनी पकड़ छुड़ा
बदहवास
जंज़ीरें तोड़ती
हाथ छुड़ाती
भागती चली आती
समा जाती देह की पोर-पोर में 
मन के कोलाहल को घोले
रिसती आँखों के रास्ते
खट्टी-मीठी, कड़वी-फीकी
नमकीन-कुरकुरे स्वाद में......
....................तुम्हारी याद!!! 


चमत्कार!! 


मूलरोमों की अनगिन कतारें
मिट्टी से पोषण, जल अवशोषित करती
पंखुरी-सा कोमल-स्निग्ध
मीठी महक का गुलाबी देश... 
पत्तियों-सी मखमली हरीतिमा
जल-थल की बयार का मीठा महुआ... 
अधखिले पुष्प-गुच्छ में
सागर-सी लहरों का जोशीला कंपन...
टेढ़े-मेढ़े भूरे तने की टहनियां
स्वप्नलोक की ऊंची उड़ान उड़ाता.... 
समेट लेता
जल-थल-आकाश
मौन-कोलाहल
राग-विराग 
सम-विषम मादक थाप
बीजों में संचित करता
अंकुआता
महकाता
सरसराता देहवन में...
थम जाती सदियां...
नतमस्तक होती धरा...
अप्रतिम उल्लास जगा
छा जाती घटा बन
शब्दहीन.....
इतिहास से परे...
अदभुत चमत्कार बनता जग का...
.................. तुम्हारा चुंबन!!!! 


याद 


आठों पहर की धड़कन में
कभी सिकुड़ती...कभी फैलती
छः ऋतुओं के रंग में
कभी सतरंगी हवा
कभी बेरंगी पतंग बन उड़ती 
धमनी-शिरा की श्वांस बन
लहू में घुलती
रग-रग को कस्तूरी-सा महकाती
मन के भूगोल को
बनाती...बिगाड़ती...सुधारती.... 
मनकूप में जमी
काई की परतें उखाड़ती
मखमली घास बिछाती
दरारों को हौले से सहलाते
कच्ची मिट्टी भर दुलराती.... 
अधुरी कविता के पंखों में
उड़ान का साहस भरती
शब्दों के आंगन में
कुलांचे भर
क्षितिज को गले लगाती....... 
मिलाप-विलाप के सम्मोहन से उमड़े
मायावी जग को
अंजुरी भर-भर
दे जाती रेत के टीले
जिसका निर्बंद्ध आकाश होता जीवन-निकष..........

15 टिप्‍पणियां:

  1. बहकूं....
    चहकूं.....
    गरजूं......
    बरसूं......
    छा जाऊं चहुंओर
    तुम्हारे साथ..
    तुम्हारे साथ!!!
    !!!!!!!!!!!!
    हार्दिक बधाई !!!!

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  2. कवितायें अच्छी लगीं लेकिन प्रेम कविताओं में जो सहजता और प्रवाह चाहिये कई बार तत्सम शब्दावली उसे बाधित करती है। भाषा पर ध्यान देना ज़रूरी है।

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  3. बहकूं....
    चहकूं.....
    गरजूं......
    बरसूं......
    छा जाऊं चहुंओर
    तुम्हारे साथ..
    तुम्हारे साथ!!!

    बढ़िया

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  4. काई की परतें उखाड़ती
    मखमली घास बिछाती
    दरारों को हौले से सहलाते
    कच्ची मिट्टी भर दुलराती....
    अधुरी कविता के पंखों में
    उड़ान का साहस भरती
    शब्दों के आंगन में
    कुलांचे भर
    क्षितिज को गले लगाती.......वाह ...क्या तो यादों का विवाचन ...बहुत खूब जी ...होली की शुभकामनायें..अर्पिता जी को भी !!!!Nirmal Paneri

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  5. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (21-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  6. प्रेम -सन्दर्भों को सुन्दरता से व्याख्यायित करती हैं कवितायेँ !

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  7. बहुत खूब ... छोटे छोटे शब्दों को कुछ ही पंक्तियाँ में इतना लंबा कर दिया .... और वैसे भी हर भाव इतना गहरा है की समा पाना आसान नही .....
    आपको और आपके पूरे परिवार को होली की मंगल कामनाएँ ...

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  8. प्रेम की अनगिन छटा बिखेरती खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  9. ओह, प्यार की एक संपूर्ण यात्रा में कविता में कहीं भावों की असीम गहराई मिली, कहीं शब्दों के चयन चमत्कृत गए, कहीं प्रचंड आवेग में खिलते पुष्पों की झलक मिली और... और... अंत में लगा कि मेरे दिल की बातें कैसे यह कविता कोई बोल गई ?

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  10. प्रेम की कविताएं .......हर पंक्ति प्रेम की नयी परिभाषा गढ़ती हुई.... एक नयी सी अनुभूति के साथ.

    प्यार से......
    उबारता...............प्यार.
    जीवन का...
    रोम-रोम में.........
    तुम्हारे साथ!!!
    ....तुम्हारी याद!!!
    .. तुम्हारा चुंबन!!!!
    आकाश होता जीवन

    अतिसुन्दर प्रस्तुति..

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  11. प्रेम को परिभाषित करती सुंदर रचनाये ...यादो ने मोहित किया ,सुंदर प्रस्तुतिकरण ...

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  12. अच्छी कविताएं...अर्पिता लागातार अच्छा लिख रही हैं...मेरी ढेर सारी बधाइयां....

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