याद
(1)
हर कदम पर रही हूँ इक फासले पर
ज़िन्दगी की रफ़्तार कुछ ऐसी रही
वक़्त तो आया हरेक चीज़ का मेरा भी ए दोस्त
आया मगर बेवक्त .....मै तनहा रही
तौलती मैं देह और मन की हदें,
ग्लानि की परतों तले दबती रही!
भीड़ से रिश्तों की ,निकल आई तो हूँ ,मैं दूर बहुत
याद एक दोस्त की ,अक्सर मगर आती रही ...
(2)
एक बादल,शब्दों का
रास्ता भटक ,
घिर आया था
अवछन्न आसमा पर मेरे ,
भीगी संवेदनाएं ,
सराबोर होने तक
डूबी आकंठ, निर्दोषिता,
उग आये कुछ अर्थ
बेनाम रिश्तों के
शिराओं में
चमकता/बहता इन्द्रधनुष
समां सके जो तेरी आँखों में
बस इतना ही था आसमा मेरा !
बस तुम...
वो ऐसी ही एक
खामोश शाम थी,जब,
लौट रहे थे पक्षी,घोंसलों तक,
पशु,चारागाहों से
रौनक वापिस लौट रही थी
पेड़ों, और पत्तों की,
घर लौटते पक्षियों के
कलरव से
जल गईं थीं बत्तियां घरों की,
सूरज की रोशनी की परियां
बतियाती,खिलखिलाती
वापस घर लौटने लगीं थीं,
सभी लौट रहे थे
अपने अपने ठिकानों पर
नहीं थे तो
सिर्फ तुम!
हाँ मगर,तुम्हारी जगह,
तुम्हारी याद लौट आई थी
उस दिन भी बैठ गई थी
बगल में मेरे
देहरी पर ही,
और
बतियाती रही थी देर तक
फिर,हौले से
मेरा हाथ थाम,
लिवा लाई थी
कमरे तक
थपकियाँ दे सुला दिया था
उसने मुझे,
और फिर
जुड़ती गईं इसमें
सिलसिलेवार कड़ियाँ
बस वही
मै .....देहरी......और याद.....
बधाई .. बहुत स्वागत.
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं एवं धन्यवाद भी
जवाब देंहटाएंवंदना जी को मेरी बधईयाँ !आपकी
जवाब देंहटाएंकविताएँ बोलती हैं
मन का भेद खोलती हैं
होले से आकर मन के
भीतर डोलती हैं !
तौलती मैं देह और मन की हदें,
जवाब देंहटाएंग्लानि की परतों तले दबती रही!
भीड़ से रिश्तों की ,निकल आई तो हूँ ,मैं दूर बहुत
याद एक दोस्त की ,अक्सर मगर आती रही ...
बहुत सुंदर!!
बहुत सुन्दर रचनाएँ हैं ...
जवाब देंहटाएंhardik dhanywad aap sabhee ka :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर कवितायें…
जवाब देंहटाएं'...तौलती मैं देह और मन की हदें,
जवाब देंहटाएंग्लानि की परतों तले दबती रही!...'
क्या खूब कहा है... वंदना जी, खूबसूरत कविताएँ...
ati man bhavan ,achha laga pad ker ....badhai Vadana ji
जवाब देंहटाएं