प्रेम दिवस की शुभकामनाएं।
(पाब्लो नेरुदा)
हमेशा
मैं शक्की नहीं हूँ
उनसे जो मेरे पहले आये
तुम आओ कँधे पर
लिये उस पुरुष को
आओ अपने बालों में गुँथे
सौ पुरुषों को
आओ हज़ार पुरुषों को लिये
अपनी छाती और पैरों के बीच
आओ एक नदी की तरह
डूबे हुये पुरुषों से भरी
जो बह जाती है पागल समन्दर में
अनंत तरंगो तक , उस समय तक
उन सबको लाओ वहाँ
जहाँ मैं तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ
हम हमेशा अकेले रहेंगे
हम हमेशा तुम और मैं रहेंगे
अकेले इस पृथ्वी पर
अपना जीवन शुरु करने
(जेम्स साबीन)
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ , दस बजे , ग्यारह बजे और बारह बजे दोपहर में . मैं तुमसे अपनी समूची आत्मा और देह में प्यार करता हूँ
और कभी कभी बरसाती दोपहर में भी . लेकिन दो बजे दोपहरी में , या कभी कभी तीन बजे , जब मैं हम दोनों के बारे में
सोचना शुरु करता हूँ , और तुम तब सोचने लगती हो रात के खाने के बारे में या फिर रोज़मर्रा के काम की , या फिर मनोरंजन के अभाव की
मैं तुमसे चुपचाप नफरत करने लगता हूँ , उस आधी नफरत से जो मैं खुद के लिये बचाये रखता हूँ
बाद में मैं तुमसे प्यार पर लौटता हूँ , जब हम साथ साथ लेटे होते हैं और मैं देखता हूँ
कि तुम यहाँ सिर्फ मेरे लिये हो , कि एक खास तरह से तुम्हारे घुटने और पेड़ू मुझसे बातियाते हैं
कि मेरे हाथ मुझे ऐसा यकीन दिलवाते हैं , और ये कि ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ मैं आ जा सकता हूँ
ऐसी सहजता से जैसे कि तुम्हारी देह में . तुम मेरी तलाश पर समूची आती हो , और हम दोनों एक पल में विलीन हो जाते हैं
हम ईश्वर के मुँह में गोता लगाते है तब तक जब मैं तुम्हें अपनी भूख या अपने सपने की बाबत बताऊँ
हर दिन मैं तुमसे बेइंतिहा प्यार और नफरत करता हूँ . और ऐसे कितने दिन , कितने घँटे होते हैं , जब मैं तुम्हें बिलकुल नहीं जानता , जिसमें तुम कोई अन्य हो , उस दूसरी औरत की तरह . पुरुष मुझे चिंतित करते हैं , मैं खुद की चिंता करता हूँ ,
मेरे दुख मुझे विचलित करते हैं . मैं शायद तुम्हें बहुत नहीं सोचता . तुम जानती हो . कौन तुमसे मुझसे कम प्यार करेगा ,
मेरी प्यारी
(जेन केन्यन)
अचँभा::
वो सुझाता है मीठे चीले , पास के ढाबे में खाने के लिये
उसके बाद एक टहल मई में खिले फूलों की खोज में
जिस समय दोस्त इकट्ठा हुये हैं हमारे घर
कैसेरोल और केक लिये, उनकी गाड़ियाँ लगी हैं
सड़क के रेतीले किनारों से सटी, जहाँ कोमल फर्न खिले हैं
गड्ढों में , और इस साल के नवज़ात पत्ते धकेलते हैं
पिछले साल के मृतप्राय पत्तियों को सून के पेड़ की
टहनियों की फुनगी से . ये जलसा सिर्फ उसको अचँभित नहीं करता,
बल्कि ये कि किस सहजता से उसने झूठ बोला
धुलाई::
सारे दिन कम्बल झटकता लहराता रहा
सुखाने की तार पर , वसंत की गुनगुनी हवा में
वहाँ से गवाह हुआ पहली गौरैया का
अपने लसलसे पाँवो को उठाती सुबह की मक्खियों का
और दक्खिन को ढलती पहाड़ियों पर उस हरे कुहरे का
सँझा को बादल घिरे पर्वतों पर
मैंने कम्बल उठाया और हम सोये
बेचैन, इसके सुवासित भार के नीचे
(मार्गरेट ऐटवुड)
रिहाईश::
विवाह कोई घर नहीं
कोई तम्बू भी नहीं
ये उसके पहले की चीज़ है , और सर्द
जंगल का कगार है
रेगिस्तान का भी
पिछवाड़े की उजड़ी सीढियाँ हैं
जहाँ हम चुकु मुकु बैठे
बाहर , टूँगते हैं पॉप कॉर्न
जहाँ हम तकलीफ और अचँभे के साथ
कि हम बचे रहे अब तक
हम सीख रहे हैं अलाव जलाना
(आर्थर रिम्बो)
शाम के पाँच बजे ग्रीन इन सराय में
पूरे हफ्ते मैंने अपने जूते चटकाये थे
सड़क के पत्थरों पर
मैं शार्ले रोआ पहुँचा , ग्रीन इन सराय में
और माँगा पावरोटी के टुकड़े मक्खन के साथ
और कुछ अधपका हैम , सुखी , मैंने अपनी टाँगे
फैलाईं , हरी मेज़ के नीचे : वॉलपेपर के अनाड़ी पैटर्न का मुआयना किया
-और ये बड़ा दिलकश था जब वो लड़की जिसकी छाती बड़ी थी ,जिसकी आँखें
बोलती हुई थीं , -एक चुम्बन उसे डरा नहीं सकता था !
मेरे लिये , मुस्कुराती लाई कुछ पावरोटी मक्खन और
गुनगुना हैम , एक रंगीन तश्तरी में , -सफेद और गुलाबी हैम
छौंका हुआ एक लहसुन की पोट से – और भरा मेरा विशाल मग
बीयर से, जिसकी फेनिल झाग सुनहरी हो गई
साँझ की एक ढलती किरण से
धूप::
एक धूप भरी कमी थी वहाँ
आँगन में लोहे के टोप धरा पम्प
अपने लोहे को गर्माता
पानी शहद हुआ
टँगे बाल्टी में
और सूरज खड़ा
तवे जैसा
दीवार से लगा ठंडाता
हरेक दोपहर
तो , उसके हाथ रगड़ते
पकाने वाले तसले पर
सुलगती अंगीठी
छोड़ती है चिंगारी वहाँ
जहाँ वो खड़ी है
आटा लगे एप्रन में
खिड़की के पास
अब वो झाड़ती है तसला
बत्तख के पंख से
अब बैठती , चौड़े कूल्हे
सफेद पड़े नाखुनों
और बीमार पिंडलियों में
यहाँ जगह है फिर
दो घढ़ियों की टिकटिक
के साथ फूलता है बिस्कुट
और यहाँ प्यार है
लोहार के कलछे सा
मुर्चाया अपनी चमक से
बर्तनों के ढेर में
(एर्नेस्तो कास्तिल्लो)
भ्रम::
भ्रम में देखता हूँ उस औरत को
जो बिलकुल दिखती है तुम्हारी तरह
या शायद तुम ही हो
पर मैं अपनी दिल की शंका को थामे रखता हूँ
अपने धड़कते हृदय में
अपनी ज़ोरों से बजती छाती के संग
अपने हाथ में तुम्हारा हाथ थामे
इस भीड़ में धँसे
जैसे रेल रुकने को होती
मुझे लगता है भीड़ हमें
अलग धकेलती है
ओह मैं कोशिश करता हूँ
तुम्हारे साथ बने रहने का
तुम्हारे साथ बैठे रहने का
जैसे ही मैंने सुना ट्रेन की तीखी चीख
ये समय हुआ तुम्हारे जाने का
मैं तुम्हारे संग भाग खड़ा हुआ
जैसे तुम दौड़ी तुमने मुझे जता दिया
ये भ्रम है तुम्हारे मन का
ये भ्रम है तुम्हारे मन का
पाब्लो नेरुदा की कविता प्रेम के कोलाहल के बीच शांति स्थापित करती है.सेमस हीनी के बिम्ब मन में ठहर जाते हैं. विश्व के महान लेखकों को पढना हमें नम्र बनाता है और अपना सही स्थान दर्शाता है कि अगर हम बेहतरीन और सार्थक न लिखें तो चुपचाप पढ़ते रहें. हिंदी में जल्दबाजी के बेसिरपैर लेखन को पढने से बेहतर है 'गो फॉर दी बेस्ट.' दुनिया भर के लेखकों से हिंदी बुलवा दी जाये. बढ़िया चयन और अनुवाद.
जवाब देंहटाएंWaah!!
जवाब देंहटाएंकवितायेँ व् अनुवाद दौनों अच्छे शुक्रिया अपर्णा ,प्रत्यक्षा जी के इस सराहनीय प्रयास को पढवाने के लिए |सरिता जी की टिप्पणी से असहमत |पाब्लो नरूदा निस्संदेह विश्व प्रसिद्द कवी हैं लेकिन'' हिन्दी में ज़ल्दबाजी के बेसिरपैर लेखन को पढने के बाद.....इत्यादि ये कहना शायद थोड़ी ज़ल्दबाजी होगी |क्या ये निर्णय या निष्कर्ष नोबेल पुरुस्कारों में हिन्दी साहित्य की संख्या (सिर्फ टैगोर)को देखकर निकला गया है?या फेस्बुकीय कविताओं को पढने और नापसंदगी के उपसंहार स्वरुप ? यदि विदेशी कवियों में टी एस इलियट ,वीसेंते आलेक्सान्द्र (स्पेनिश कवी)सीमस हीनी (आयरलेंड),या विस्वासा ज़िम्बोर्सका (पोलिश कवियत्री)जैसे महान कवी हुए हैं तो हिन्दी साहित्य में भी कम अच्छे कवी नहीं हुए |यदि बेसिरपैर के लेखन से तात्पर्य कचरा लेखन से है तो क्या विदेशी साहित्य सिर्फ और सिर्फ उत्कृष्ट ही होता रहा है?
जवाब देंहटाएंbahut sunder anuvaaad!
जवाब देंहटाएंSundar!
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