मंगलेश डबराल ::















आँखें

आँखे संसार के सबसे सुंदर दृश्य हैं
इसीलिए उनमें दिखने वाले दृश्य और भी सुंदर हो उठते हैं
उनमें एक पेड़ सिहरता है एक बादल उड़ता है नीला रंग प्रकट होता है
सहसा अतीत की कोई चमक लौटती है
या कुछ ऐसी चीज़ें झलक उठती हैं जो दुनिया में अभी आने को हैं
वे दो पृथ्वियों की तरह हैं
प्रेम से भरी हुई जब वे दूसरी आंखों को देखती हैं
तो देखते ही देखते कट जाते हैं लंबे और बुरे दिन

यह एक पुरानी कहानी है
कौन जानता है इस बीच उन्हें क्या-क्या देखना पड़ा
और दुनिया में सुंदर चीज़ें किस तरह नष्ट होती चली गईं
अब उनमें दिखता है एक ढहा हुआ घर कुछ हिलती-डुलती छायाएं
एक पुरानी लालटेन जिसका कांच काला पड़ गया है
वे प्रकाश सोखती रहती हैं कुछ नहीं कहतीं
सतत आश्चर्य में खुली रहती हैं
चेहरे पर शोभा की वस्तुएं किसी विज्ञापन में सजी हुई ।



तुम्हारे भीतर

एक स्त्री के कारण तुम्हें मिल गया एक कोना
तुम्हारा भी हुआ इंतज़ार

एक स्त्री के कारण तुम्हें दिखा आकाश
और उसमें उड़ता चिड़ियों का संसार

एक स्त्री के कारण तुम बार-बार चकित हुए
तुम्हारी देह नहीं गई बेकार

एक स्त्री के कारण तुम्हारा रास्ता अंधेरे में नहीं कटा
रोशनी दिखी इधर-उधर

एक स्त्री के कारण एक स्त्री
बची रही तुम्हारे भीतर ।


तुम्हारा प्यार 

(एक पहाड़ी लोकगीत से प्रेरित)

तुम्हारा प्यार लड्डुओं का थाल है
जिसे मैं खा जाना चाहता हूँ

तुम्हारा प्यार एक लाल रूमाल है
जिसे मैं झंडे-सा फहराना चाहता हूँ

तुम्हारा प्यार एक पेड़ है
जिसकी हरी ओट से मैं तारॊं को देखता हूँ

तुम्हारा प्यार एक झील है
जहाँ मैं तैरता हूँ और डूब रहता हूँ

तुम्हारा प्यार पूरा गाँव है
जहाँ मैं होता हूँ ।


थरथर

अंधकार में से आते संगीत से
थरथर एक रात मैंने देखा
एक हाथ मुझे बुलाता हुआ
एक पैर मेरी ओर आता हुआ
एक चेहरा मुझे सहता हुआ
एक शरीर मुझमें बहता हुआ.




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