देवयानी ::



चाँद ::

उस रात देर तक जाग कर देखा मैंने 
धरती कैसे टूट कर करती रही चाँद को प्यार 
चाँद कैसे छुप गया था धरती के साये में 
खुद मिट जाने तक उसने करने दिया धरती को प्यार 

यह मैं देख नहीं पायी 
लेकिन सोच सकती हूँ कितना निखर गया होगा चाँद 
जब धरती ने हटाया होगा अपना साया 

उस दिन से धरती की रंगत भी 
कुछ बदली सी नज़र आती है 

तुम्हारे एकान्त के बीहड़ का कोई तो दरवाज़ा होगा::

तुम्हें  छूने  की हरारत है मेरे हाथों में 
थामे हुए हूँ इसे 
डर लगता है 
कहीं  मैला न हो जाए
तुम्हारा मन 

मन है कि तुम्हें छुपा लूँ
अपने बालों की छाँव में 
इतना घना और स्याह रंग देख कर 
तुम कहीं लौट ही न जाओ
बीच रास्ते से 
समझा बुझा लिया है मन को 

एक भरपूर आलिंगन 
कुछ जलते हुए चुम्बन 
प्रेम की उत्कट कामना से भरा है तन मन 
प्रिय 
तुम्हारे एकान्त के बीहड़ का 
कोई तो दरवाज़ा होगा 
कोई तो पागडण्डी जाती होगी 
तुम्हारे मन तक 

अभी अभी ::

अभी अभी 
अपने प्यार के घोड़े से 
एक बग्घी जोड़ी है मैंने

 एक संदूक में रख भेजे हैं 
असंख्य चुम्बन तुम्हारे लिए 
उसके पास ही झोले में रख भेजे हैं 
ढेरों आलिंगन 

वह जो छोटी सी डिबिया 
मिलेगी तुम्हें बक्से के सबसे नीचे वाले कोने में 
उसमे रखी हैं वासनाएं 

यादों की  गठरी को 
आगे वाले हिस्से में रखा है 

उसे हिदायत दी है मैंने 
इच्छा की गति से 
जा पहुंचे तुम्हारे पास 

गर मिल जाये सब 
सही सलामत तो खबर करना लौटती डाक से 

यदि हो सके तो 
खुद ही चले आना 
बग्घी की आगे वाली सीट पर 
वह जो रेशम की चादर है 
उसे मैंने तुम्हारे लिए ही 
बिछा के छोड़ा है 

अपना नाम ::

तुम्हें बहुत सारे प्यार के साथ
जब लिखती हूँ खतों के अंत में अपना नाम
अपने इस चार अक्षर के नाम से
होने लगता है प्यार

जब सुनती हूँ फ़ोन पर
तुम्हारी डूबती आवाज़ में
पुकारा जाना इस नाम को
लगता है मुझे
कितना सुन्दर है यह नाम
इसे इसी तरह जुड़ा होना था
मेरे होने से,
इसी तरह पुकारा जाना था इसे तुम्हारे द्वारा

चालीस की उम्र में
अपने नाम से इस तरह पड़ना प्रेम में
कब सोचा था
यह भी होना है
इस जीवन में
पर अब यह जो है
इसके होने से
होने लगता है
अपने होने से भी प्यार


प्यार ::


जब तुम खड़े हो मुंह फेर 
मैं भी नहीं पुकारूंगी 
पर इन सपनों का क्या करूँ 
जहाँ चले आते हो तुम 
हर रात 
टूट कर करते हो प्यार 
क्या ऐसा कोई दरवाज़ा है 
जिसे बंद किया जा सके 
सपनों पर 
ताकि सो सकूं मैं 
चैन की  नींद 
इन लम्बी अकेली रातों में   

:: :: 
रात के समय
सारे घर से छुपा कर
पिछवाड़े कमरे में
स्वेटर बुनती लड़की
दरअसल सपने बुनती है। 

:: :: ::
   
"तुमने क्या आँखों में काजल लगा रखा है"
"नहीं तो"
"
जब प्यार करते हो तुम
तुम्हारी पलकों का रंग कितना गहरा काला हो जाता है
तुम्हारी पुतलियाँ इस तरह चमकती हैं जैसे
अँधेरी रात में
रेत समंदर के ऊपर चमक रहा हो दूधिया चाँद"
"
पर अँधेरी रातों में तो चमकते सितारों से घिरा होता है चाँद "
"
मेरी देह पर झिलमिलाते तुम्हारे चुम्बन वे सितारे ही तो हैं
जिनसे मिल कर चाँद इतना खिला खिला नज़र आता है"

9 टिप्‍पणियां:

  1. प्यार से सराबोर इन बेहतरीन कविताओ को साँझा करने के लिए शुक्रिया अपर्णा .. रेशमी चादर इसीलिए बिछाई है कितना निर्दोष और मासूमियत से भरा है ये आह्वान .. मन खुश हो गया सुबह सुबह

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  2. कई बार अच्छी-सी लगने वाली अभिव्यक्तियों में अनायास मैं अपने ही अन्त:करण का विस्तार देखने लगता हूं और यह अहसास गहरा सुकून देता है, फूलों-सी कोमल और रातरानी की तरह महकती इन कविताओं को ढेर सारा प्यार...।

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  3. प्यार के जादू की पोटली खोल सुबह ने आज के दिन को खुशनुमां रवानगी दी है.....सच!!!!!!

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  5. वाह! बहुत ही कोमल भाषा में सुन्‍दर कविताएँ हैं. सबकी सब छू लेने वाली .

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  6. abhi abhi ki ek khas bat he ki pyar ka aakar ghode ke brabar he to iske aage vasna itni hi badi hoti he jo dibiya me sama jae.. jane-anjane baat vastavik he......... kher ye mera manna he.. thanks to share this.............

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  7. इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें.

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  8. क्या ये वही देवयानी हैं जिन्हें मैंने जयपुर में पत्रकारिता के गलियारे में देखा था? यकीन नहीं होता...या शायद मैं तब इस रूप से परिचित नहीं था।

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  9. कई रंग....कई भाव....खूबसूरत कवि‍ताएं। बाध्‍य करेंगी बार-बार आने को। बधाई आपको।

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